गुरुवार, 15 मई 2014

एनडी-उज्ज्वला की शादी को शास्त्र सम्मत नहीं मानते विद्वान


कहा, 75 वर्ष की उम्र से शुरू होता है संन्यास आश्रम, इसके बाद विवाह शास्त्र सम्मत नहीं
नैनीताल (एसएनबी)। लखनऊ में पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता एनडी तिवारी के डा. उज्ज्वला शर्मा से विवाह करने के समाचार पर उनके गृह जनपद में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। सामाजिक रूप से जहां तिवारी के साथ अब तक ‘लिव-इन’ संबंधों में रह रही डा. शर्मा के साथ संबंधों को देर से ही सही स्वीकारने और संबंधों को सामाजिक मान्यता दिलाने की प्रशंसा हो रही है, वहीं 86 वर्ष की उम्र में हैदराबाद कांड होने और अब 89 वर्ष की उम्र में युवा रोहित शेखर को लंबी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान पुत्र स्वीकारने के बाद उसकी माता को स्वीकारने को लेकर तरह-तरह की चुटकियां भी ली जा रही हैं। फेसबुक सरीखी सोशल साइटों पर इस मामले में पुत्र रोहित शेखर और कांग्रेस के दूसरे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को शादी के मामले में तिवारी द्वारा पछाड़ने जैसे व्यंग्यों के साथ जमकर कटाक्ष किए जा रहे हैं।
कुमाऊं के चंद वंशीय राजपुरोहित पं. दामोदर जोशी ने कहा कि तिवारी की उम्र विवाह की नहीं सन्यास आश्रम की है। इस उम्र में उन्हें इंद्रियों से संबंधित समस्त मानवीय वृत्तियों का न्यास यानी त्याग करना चाहिए था और त्याग व दान आदि श्रेष्ठ कर्मो के साथ अपने जीवन को ईर तथा देश के लिए समर्पित करना चाहिए था। वहीं आचार्य पं. जगदीश लोहनी का लखनऊ को केंद्र मानकर बने अंतर्राष्ट्रीय भाष्कर पंचांग के आधार पर कहना था कि धर्म शास्त्रों के अनुसार 75 की उम्र के बाद मनुष्य का संन्यास आश्रम शुरू हो जाता है। इस उम्र में विवाह शास्त्र सम्मत नहीं माना गया है। उधर, इस शादी को लेकर उत्तराखंड में दिन भर र्चचाओं का दौर शुरू हो गया है। इस शादी को लेकर एनडी समर्थकों व उनकी निजी जिंदगी की आलोचना करने वाले लोगों के बीच में बहस का विषय बना हुआ है कि क्या इस उम्र में शादी करना सही है। समर्थक व विरोधी दोनों ही अपनी- अपनी दलील दे रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस अनूठी शादी को लेकर आम लोगों में भी गहरी रुचि पैदा हो गयी है। इसके अलावा सोशल साइटों पर भी एनडी-उज्ज्वला को लेकर बहस छिड़ी है और कई कंमेंट्स लिखे जा रहे हैं। कई चुटकियां तो दोनों के भविष्य को लेकर भी हो रही हैं।

मंगलवार, 6 मई 2014

बिना पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र के ही हो रहे लोक सभा चुनाव !


चुनाव में अब तक जुबानी खर्च ही करते रहे प्रत्याशी, 
प्रचार के आखिरी दिन तक नहीं पहुंचे भाजपा-कांग्रेस सहित किसी भी राष्ट्रीय दल के चुनाव घोषणा पत्र
नवीन जोशी, नैनीताल। चुनावों के लिए पेश किये जाने वाले घोषणा पत्र राजनीतिक दलों के लिए खास होते हैं। जनता अपनी चुनी हुई सरकार से उसके चुनाव पूर्व प्रस्तुत घोषणा पत्र के आधार पर ही जवाब-तलब करती है, मगर संभवत: यह पहली बार होगा कि कुमाऊं मंडल और जिला मुख्यालय में लोकसभा चुनाव की समय सीमा समाप्त होने के दिन तक भाजपा व कांग्रेस सहित किसी दल के घोषणा पत्र नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दल जनता को अपने घोषणा पत्र नहीं दिखा रहे हैं और हवा-हवाई आरोप- प्रत्यारोपों के आधार पर ही वोट व समर्थन जुटा रहे हैं और संभवत: जनता भी जुबानी वादोंदा वों में ऐसे उलझी है कि वह भी राजनीतिक दलों से चुनाव घोषणा पत्र पढ़ने-संभालने को नहीं मांग रही है। गुजरे दौर में खासकर राजनीतिक दल अपने ही नहीं अन्य पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र अपने चुनाव कार्यालयों में रखते थे, ताकि जनता को दोनों की नीतियों और वादों का अंतर समझाया जा सके। ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने सोमवार को लोकसभा चुनाव में प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के दिन मुख्यालय में राजनीतिक दलों के चुनाव कार्यालयों का जायजा लिया, मगर किसी दल के चुनाव कार्यालय में पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र उपलब्ध नहीं थे। इस बारे में पूछने पर कहा गया कि इंटरनेट पर घोषणा पत्र उपलब्ध है यह जानते हुए कि देश-प्रदेश में इंटरनेट की उपलब्धता सीमित है। इसके साथ ही घोषणा पत्र किस यूआरएल पते या वेबसाइट पर उपलब्ध हैं इसकी जानकारी भी पार्टी के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नहीं है।
लगा प्रचार शुरू ही नहीं हुआ
नैनीताल। इस लोकसभा चुनाव में सही मायनों में पहाड़ पर और खासकर नैनीताल सीट व कुमाऊं मंडल तथा जिले के मुख्यालय में चुनाव प्रचार ठीक से शुरू ही नहीं हुआ था और यह सोमवार को प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के साथ खत्म भी हो गया। इस दौरान स्टार प्रचारक कहने भर को यहां केवल भाजपा की ओर से शक्ति कपूर व आप की ओर से भगवंत मान और कांग्रेस के लिए सीएम हरीश रावत ही पहुंचे।

गुरुवार, 1 मई 2014

हिमालयी राज्यों के लिए बने सतत विकास की नीति

संसद में हिमालय को लेकर कभी गंभीरता से नहीं हुई चर्चा, राजनीतिक दल हिमालय पर करें मंथन जलवायु परिवर्तन होने के दुष्प्रभावों पर भी राजनीतिक दल हों गंभीर हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण करने की अत्यंत आवश्यकता
हिमालय को वाटर टावर ऑफ एशिया कहा जाता है। भारत में उत्तराखंड सहित 12 राज्य हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। भारत की 60 करोड़ आबादी हिमालय से सीधे या परोक्ष तौर पर प्रभावित होती है, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों का दुर्भाग्य है कि देश के 16 फीसद भूभाग में फैले होने के बावजूद यहां देश की केवल चार फीसद जनसंख्या ही वास करती है। शायद इसीलिए हिमालयी क्षेत्र देश और राजनीतिक दलों के एजंेडे में कभी प्रमुखता नहीं रहा है। देश की संसद में 50 यानी करीब 10 फीसद सांसद हिमालयी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अफसोस कि कभी भी हिमालय के बारे में बात संसद में उस गंभीरता के साथ नहीं रखी गई और न ही वहां अपेक्षित आयामों पर बहस ही हुई। 
वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने ‘जलवायु परिवर्तनों के दुष्प्रभावों से निपटने’ के लिए जो आठ ‘मिशन’ योजनाएं बनाई थीं, उनमें ‘नेशनल मिशन आफ सस्टेनिंग हिमालयन ईको सिस्टम’ यानी हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास की राष्ट्रीय योजना भी शामिल है। अल्मोड़ा जनपद के कोसी में स्थित गोविंद बल्लभ पंत हिमालयन पर्यावरण विकास संस्थान कोसी-कटारमल ने इस मिशन के तहत काफी कार्य किया। हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास के लिए शासन नाम से गाइडलाइन तैयार की गई। इसमें बताया गया कि किस तरह विकास और पर्यावरण को एक-दूसरे का पूरक बनाया जाए। हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता का संरक्षण कैसे किया जाए, किस मात्रा में हिमालयी क्षेत्र से जड़ी-बूटियों व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाए, और कैसे उनका संरक्षण किया जाए। साथ ही कैसे हिमालय की जैव विविधता, उसकी खूबसूरती, खनिजों, जल, जंगल, जमीन और अन्य आयामों को बिना नुकसान पहुंचाए यहां के निवासियों की आजीविका से भी जोड़ा जाए। इन गाइड लाइन में ‘ग्रीन रोड’ यानी ऐसी सड़कें बनाने की बात कही गई है जो प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण करते हुए व उसे बिना छेड़े हुए बनाई जा सकती हैं। साथ ही सामान्यतया कहा जाता है कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के साथ नहीं चल सकते। यदि आज की तरह का विकास होगा, तो उससे निश्चित ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, और यदि पर्यावरण का ही संरक्षण किया जाएगा, तो इससे विकास वाधित होगा। लेकिन विकास मनुष्य की आवश्यकता है, इसलिए विकास जरूरी है और हमें ‘पर्यावरण सम्मत’ विकास की बात करनी होगी। विकास के वैकल्पिक उपाय, जैसे सड़कों के स्थान पर रोप-वे, परंपरागत ऊर्जा के साधनों के स्थान पर सौर व वायु ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा के साधन, वष्ा जल संग्रहण, सिंचाई के लिए स्प्रिंकुलर विधि आदि का प्रयोग करना होगा। हिमालयी क्षेत्र इतना बृहद है। खासकर पूरे भारत वर्ष को हिमालय प्रभावित करता है, इसलिए हिमालय के बारे में देश को अलग से सोचना पड़ेगा। हिमालय के लिए सतत विकास की अलग नीति बनानी होगी। इस मुद्दे को राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए। (नवीन जोशी से बातचीत पर आधारित)

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

पहाड़ में नहीं लोकतंत्र के ’महापर्व‘ जैसा माहौल

पहाड़ के बजाय मैदान में ही जोर लगा रहे प्रत्याशी और समर्थक अब तक किसी पार्टी के स्टार प्रचारक का कार्यक्रम भी तय नहीं
नवीन जोशी नैनीताल। कहने को प्रदेश के पर्वतीय अंचलों में भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े यानी लोकसभा चुनावों के ‘महापर्व’ का मौका है, मगर इसे चुनाव आयोग की सख्ती का असर कहें कि पहाड़वासियों की मैदानों की ओर लगातार पलायन की वजह से लगातार क्षीण होती राजनीतिक शक्ति का प्रभाव, राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी पर्वतीय क्षेत्रों को चुनावों में भी भाव नहीं दे रहे हैं। कुमाऊं मंडल का जिला एवं मंडल मुख्यालय पर्वतीय क्षेत्रों की कहानी बयां करने के लिए काफी है, जहां पूरे शहर में कहने भर को केवल एक होर्डिग और गिनने भर को कुछ दीवारों पर केवल दो पार्टियों भाजपा व कांग्रेस के चुनाव कार्यालय खुले हैं और उनके ही पोस्टर चिपके हुए हैं। वहीं राज्य और देश के सत्तारूढ़ दल की उपेक्षा का यह आलम है कि उनका मुख्यालय में न ही अब तक चुनाव कार्यालय खुला है और न ही पूरे शहर में कहीं एक भी होर्डिग, बैनर या पोस्टर ही लगे हैं। ऐसे में बैनर-पोस्टर लिखने छापने और चिपकाने वाले चुनावी रोजगार से वंचित हो गए हैं, तो वे लागे महापर्व का अहसास कैसे करें। गौरतलब है कि नए परिसीमन में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय सीट पर पर्वतीय मतों का प्रतिशत करीब 35 और मैदानी मतों का प्रतिशत 65 है। ऐसे में उम्मीदवार मैदानी क्षेत्रों में ही जोर लगाकर अपनी जीत सुनिश्चित करने की जुगत में हैं। राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों के भी अभी पर्वतीय क्षेत्रों के लिए कोई कार्यक्रम तय नहीं बताए जा रहे हैं। ऐसे में खासकर नैनीताल में लोकसभा चुनावों से अधिक आसन्न ग्रीष्मकालीन पर्यटन सीजन पर अधिक र्चचाएं हो रही हैं।

इंटरनेट पर लगा चुनावी मेला

नैनीताल। बदलते दौर में जहां लोकतंत्र का महापर्व पूरी तरह धरातल से नदारद है, वहीं इंटरनेट की दुनिया में पूरा मेला लगा हुआ है। शहर में चुनावों पर कोई राजनीतिक विमर्श न होने की वजह से नगर के आमजन टीवी, अखबार या इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किग साइटों पर बन रही प्रत्याशियों की बन-बिगड़ रही हवा पर ही आश्रित होकर अपनी राय बना या बदल रहे हैं। इंटरनेट पर जोरों से पार्टियों के पक्ष या विरोध में खूब जोशो-खरोश से र्चचाएं हो रही हैं। यहां राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों, प्रत्याशियों व राष्ट्रीय नेताओं के बारे में पूरा मेले जैसा माहौल है। ऐसे में लोग यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि हर डंडा कमजोर तबकों पर ही पड़ता है। निचले तबके के चुनाव प्रचार में अपना रोजगार जुटाने वाले लोग जरूर बेरोजगार कर दिये गए हैं, लेकिन इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों की चुनावी महापर्व पर खूब ‘पौ-बारह’ हो रही है।

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

नैनीताल : पुरानी मांगें ही पूरी हो जाएं तो बन जाए बात



पिछले चुनाव में भी था केंद्रीय विश्व विद्यालय का मुद्दा झीलों के संरक्षण की योजना अब भी बचे हैं कई कार्य
नवीन जोशी, नैनीताल। 2009 में हुए पिछले लोक सभा चुनावों के बाद झीलों के नैनीताल संसदीय सीट के नैनी सरोवर सहित अन्य झीलों और नदियों में चाहे जितना पानी बह गया हो, राजनीतिक दलों के चाल, चरित्र और चेहरों के साथ नारे भी बदल गए हों, परंतु पांच वर्ष बाद भी केंद्र सरकार के स्तर के मुद्दे जहां के तहां हैं। पिछले लोक सभा चुनावों में राज्य के एकमात्र कुमाऊं विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा दिए जाने और नैनी सरोवर सहित अन्य झीलों के संरक्षण के लिए केंद्र से बड़ी योजना और तराई की प्यास बुझाने के लिए जमरानी बांध बनाए जाने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन यह मुद्दे आज भी यथावत हैं। गौरतलब है कि कुमाऊं विवि को केंद्रीय विवि बनाए जाने का मुद्दा पूरे कुमाऊं मंडल से संबंध रखने वाला है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले लोस चुनाव के दौरान घोषणा भी की थी, बावजूद इसके कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई। वहीं नैनीताल की पहचान नियंतण्र स्तर पर इसकी झीलों को लेकर है। वर्ष 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के नैनीताल राजभवन में प्रवेश के दौरान स्थानीय कार्यकर्ताओं की मांग पर बाजपेई सरकार ने वर्ष 2003 में यहां से गई 98 करोड़ रुपये की डीपीआर में से नैनीताल के लिए 46.79 तथा भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल व खुर्पाताल के लिए 16.85 सहित कुल 63.64 करोड़ की झील संरक्षण परियोजना स्वीकृत की थी। यह योजना और इसकी धनराशि 2011 में समाप्त हो चुकी है और प्राधिकरण के समक्ष इस योजना के तहत झील में किए जा रहे एरिएशन के कार्य को जारी रखने के लिए प्रतिवर्ष खर्च हो रहे करीब 40 लाख रुपये जुटाना भी मुश्किल साबित हो रहा है, वहीं नैनी झील में गंदे पानी को बाहर निकालने के सायफनिंग, झील में गिरने वाले 62 में से 23 नालों से कूड़ा झील में न जाने देने के लिए ‘ऑगर’ नाम की मशीन व नालों के मुहाने पर मिनी ट्रीटमेंट प्लांट लगाने, अन्य झीलों में ड्रेनेज व सीवर सिस्टम विकसित करने जैसे कायरे की बेसब्री से दरकार पांच वर्ष पूर्व भी थी और आज भी है। इसके अलावा जमरानी बांध का मसला तो दशकों से जहां का तहां लटका हुआ है। मजेदार बात है कि यह मुद्दे ना तो राजनीतिक दलों की जुबान पर हैं, और शायद जनता भी इन्हें उठाते-उठाते थक-हार चुप हो चुकी है। मतदाताओं का कहना है कि नई उम्मीदें क्या करें, पांच वर्ष पुरानी मांगें ही पूरी हो जाए तो इनायत होगी।
ये योजनाएं भी केंद्र के स्तर पर लंबित
नैनीताल। नैनीताल मुख्यालय की अनेक बड़ी योजनाएं केंद्र सरकार के स्तर पर लंबित हैं। इनमें पर्यटन नगरी की सबसे बड़ी यातायात की समस्या का समाधान निहित है। केंद्र को जेएलएनयूआरएम योजना के तहत सड़कों के चौड़ीकरण व पार्किगों के निर्माण की 32 करोड़ की योजना भेजी गई है। इसके अलावा लोनिवि की 20 करोड़ रुपये की नगर की धमनियां कहे जाने वाले अंग्रेजी दौर में बने 62 नालों के जीर्णोद्धार व उन्हें ढकने की योजना तथा सिंचाई विभाग ने नगर के आधार कहे जाने वाले बलियानाले की जड़ से मजबूती के लिए करीब 25 करोड़ रुपये की योजना भी केंद्र सरकार के स्तर पर लंबित है। नैनीतालवासियों को उम्मीद है कि नैनीताल को जो भी नया सांसद होगा, वह इन योजनाओं को धरातल पर उतारने व केंद्र के स्तर पर स्वीकृत कराने में पहल करे।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

नैनीताल में जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में बनती रही है सरकार

बदलाव की हर बयार में नैनीताल ने भी बदली है करवट, कइयों को राजनीति का ककहरा पढ़ाया है इस सीट ने
नवीन जोशी नैनीताल। शिक्षित संसदीय क्षेत्रों में शुमार नैनीताल ने देश में चल रही हर बदलाव की बयार में खुद भी करवट बदली है। देश में अच्छी सरकार चलती रही तो यहां के मतदाताओं ने भी अपने परम्परागत स्वरूप को बरकरार रखते हुए सत्तारूढ़ पार्टी के प्रत्याशी को ही ‘सिर-माथे' पर बिठाया है, लेकिन जहां सत्तारूढ़ पार्टी ने चूक की और नैनीताल को अपनी परम्परागत सीट मानकर गुमान में रही, उसे यहां के मतदाताओं ने जमीन भी दिखा दी। नैनीताल में आमतौर पर जिस पार्टी का प्रत्याशी जीता, उसी पार्टी की देश में सरकार भी बनती रही। इस प्रकार नैनीताल के साथ यह मिथक जुड़ता चला गया है। ऐसे में नैनीताल राजनीतिक दलों के लिए दिल्ली की गद्दी पाने का माध्यम बन सकता है। 
जी हां, नैनीताल लोकसभा सीट का अब तक ऐसा ही अतीत रहा है। वर्ष 1971 तक के चुनाव में मतदाताओं ने कुछ खास नेताओं को गले लगाया। इसके बाद उन्होंने अपना रुख बदल लिया और किसी भी नेता को दुबारा संसद पहुंचने का मौका नहीं दिया। देश की आजादी के बाद भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार और बाद में एनडी तिवारी सरीखे नेताओं की यह परंपरागत सीट रही और दोनों को संसद पहुंचने की सीढ़ी चढ़ने का ककहरा नैनीताल ने ही सिखाया। मगर यह भी मानना होगा कि यहां के मतदाताओं की मंशा को कोई नेता नहीं समझ पाया। हालांकि एनडी भी यहां से हारे और केसी पंत भी। इसी तरह कांग्रेस की परंपरागत सीट माने जाने के बावजूद कांग्रेस के नेता भी हर चुनाव में यहां असमंजस के दौर से ही गुजरते हैं, जबकि देश की सत्ता संभाल चुकी भाजपा यहां से सिर्फ दो ही बार ही जीत हासिल की है। जनता पार्टी और जनता दल के नेताओं के लिए भी यहां प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। देश में चल रही राजनीतिक हवा का असर नैनीताल सीट पर भी पड़ता रहा है। 1951 व 1957 के चुनाव में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के दामाद सीडी पांडे और 1962 से 1971 तक के तीन चुनावों में पुत्र केसी पंत यहां से सांसद रहे। मगर 1977 के चुनाव में आपातकाल के दौर में पंत को भारतीय लोकदल के नए चेहरे भारत भूषण ने पराजित कर दिया। तब देश में पहली बार विपक्ष की सरकार बनी। लेकिन विपक्ष का प्रयोग विफल रहने पर 1980 में एनडी तिवारी को उनके पहले संसदीय चुनाव में नैनीताल ने दिल्ली पहुंचा दिया। गौरतलब है कि 1984 में तिवारी सांसदी छोड़ यूपी का सीएम बनने चले तो उनके शागिर्द सतेंद्र चंद्र गुड़िया को भी जनता ने वही सम्मान दिया। 1989 के चुनाव में मंडल आयोग की हवा चली तो जनता दल के नए चेहरे डा. महेंद्र पाल चुनाव जीत गए और जनता दल की ही केंद्र में सरकार बनी। 1991 के चुनाव में यहां के मतदाता देश में चल रही राम लहर की हवा में बहे और बलराज पासी ने भाजपा के टिकट पर जीतकर इतिहास रच दिया। तब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। 1998 में बीच में एचडी देवगौड़ा और आरके गुजराल के नेतृत्व वाली जनता दल की सरकार की विफलता के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को पटखनी दी और दुबारा केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद से 2004 व 2009 के चुनावों में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा यहां से सांसद हैं और दोनों मौकों पर कांग्रेस की सरकार ही देश में बनी।

एनडी ने दो बार तोड़ा है मिथक

नैनीताल। नैनीताल में जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में सरकार बनती रही है, मगर एनडी तिवारी 1996 और 1999 में वह विरोधी पार्टियों की लहर में भी नैनीताल से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1996 में एनडी तिवारी ने कांग्रेस से नाराज होकर सतपाल महाराज शीशराम ओला व अन्य के साथ मिलकर कांग्रेस (तिवारी) बनाई और उनकी पार्टी चुनाव जीतने में सफल रही। इस चुनाव के बाद केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। 1999 के चुनाव में भी एनडी तिवारी ने फिर अपवाद दोहराया, जब कांग्रेस से तिवारी तीसरी बार चुनाव जीते, लेकिन फिर केंद्र में भाजपा की ही सरकार बनी। वर्ष 2002 में उनके उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव में जद से कांग्रेस में आए डा. महेंद्र पाल भी उनकी सीट बचाने में सफल रहे।

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

नैनीताल से भाजपा-कांग्रेस जो भी जीतेगा, दोनों की होगी हैट-ट्रिक

बाबा व भाजपा को तीसरी जीत की चाहत
नवीन जोशी नैनीताल। नैनीताल लोकसभा सीट पर इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। इस सीट पर यदि भाजपा जीतती है तो यह उसकी हैट्रिक होगी, और यदि कांग्रेस को जीत मिलती है तो यह केसी बाबा की लगातार तीसरी जीत होगी। भाजपा और कांग्रेस के अलावा यहां आम आदमी पार्टी भी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही है। ऐसे में इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिल सकता है। नैनीताल सीट देश की राजनीति के दो धुरंधर नारायण दत्त तिवारी और केसी पंत की परम्परागत सीट रही है। नैनीताल में हमेशा ऐसा कुछ ना कुछ होता है कि इस सीट पर बड़े राजनीतिक शूरमाओं की प्रतिष्ठा जुड़ी होती है, फलस्वरूप देश-प्रदेश की इस सीट पर नजर रहती है। इस बार यहां मुख्य मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी व मौजूदा सांसद केसी बाबा के बीच है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के टिकट पर जनकवि बल्ली सिंह चीमा भी संसद पहुंचने की होड़ में शामिल हैं। लोकसभा क्षेत्र की 14 विधानसभा सीटों में से आठ में विपक्षी भाजपा के विधायकों और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, तीन काबीना मंत्रियों और पूर्व सीएम का इसी क्षेत्र से होना भी इसे प्रदेश की वीवीआईपी सीटों में शुमार करती है। भाजपा यहां से जीतेगी, तो उसके लिए यह अब तक के संसदीय इतिहास की इस सीट से तीसरी जीत होगी, क्योंकि उनसे पहले केवल बलराज पासी और इला पंत ही भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत पाए हैं। वहीं कांग्रेस जीती तो उसके प्रत्याशी के लिए भी यह व्यक्तिगत तौर पर लगातार व तीसरी जीत होगी। बसपा उम्मीदवार लईक अहमद भी मुकाबले में आने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं।

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

नैनीताल में नैया पार लगाने को भाजपा को चाहिए मोदी, नकवी और सिद्धू

युवा, मुस्लिम और सिख वोटरों को साधने की है कोशिश
नवीन जोशी, नैनीताल। देश-प्रदेश में चल रही मोदी के पक्ष और कांग्रेस विरोधी लहर के बीच भाजपा को नैनीताल लोक सभा सीट पर अपनी नैया को पार लगाने के लिए नरेन्द्र मोदी, पार्टी के मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी और नवजोत सिंह सिद्धू की जरूरत है। पार्टी की नैनीताल लोक सभा क्षेत्र की इकाई ने अपनी इस इच्छा से पार्टी हाइकमान को अवगत करा दिया है। मोदी को हल्द्वानी, नकवी को काशीपुर, रुद्रपुर या हल्द्वानी और सिद्धू को बाजपुर या रुद्रपुर लाने की इच्छा जताई गई है। 
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भाजपा सूत्रों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता नैनीताल की सीट को लेकर काफी गंभीर हैं। कारण, कांग्रेस यहां यूपी के दौर से ही मजबूत रही है। यहां किसी भी अन्य पार्टी प्रत्याशी का कांग्रेस प्रत्याशी को हराने का रिकार्ड संयोग से कांग्रेस पार्टी की उत्तराखंड व उप्र सरकार के मुखिया रहे एनडी तिवारी के नाम पर है। तिवारी ने 1996 के चुनाव में कांग्रेस से नाराजगी के बाद बनाई अपनी कांग्रेस-तिवारी के टिकट पर भाजपा की इला पंत को 1.56 लाख वोटों से हराया था, इससे पहले 1977 में भारतीय लोक दल ने आपातकाल के बाद ‘इंदिरा हटाओ’ की लहर के दौर में कांग्रेस के केसी पंत को 85 हजार वोटों से और 1989 में मंडल आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए चुनावों में जनता दल के डा. महेंद्र पाल ने 20 हजार वोटों से यह सीट जीती थी। भाजपा के प्रत्याशी इस सीट को केवल दो बार, 1991 की राम लहर में बलराज पासी केवल 11 हजार और 1998 में इला पंत 15 हजार वोटों के अंतर से ही जीते थे। यह भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है कि पासी, इला व पाल की जीतों में बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र की बड़ी भूमिका रही थी, जो कि उत्तराखंड बनने के बाद इस लोक सभा क्षेत्र से अलग हो चुका है। हालिया दो चुनावों की बात की जाए तो मौजूदा सांसद, केसी सिंह बाबा ने 2004 में 49 हजार और 2009 में करीब 88 हजार वोटों के अंतर से जीतकर अपने जीत का अंतर बढ़ाया है। यही बिंदु भाजपा की चिंता का बड़ा कारण भी है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए भाजपा वर्गवार मतदाताओं को साधने की कोशिश में है। पार्टी की सबसे बड़ी चिंता करीब 2.75 लाख मुस्लिम और करीब 1.5-1.5 लाख सिख व अनुसूचित वर्ग के वोटों को लेकर है। पार्टी का मानना है कि 2009 के चुनाव में आखिरी दौर में धर्म विशेष के प्रचारकों के भाजपा के विरोध में माहौल बनाने व अन्य पार्टियों से कोई मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी न होने की वजह से मुस्लिम मतों और तराई क्षेत्र में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के आने से सिख मतों के कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण हो जाने की वजह से पार्टी हार गई थी। 
लेकिन इससे इतर भाजपा इस बार स्वयं को मोदी के पक्ष और कांग्रेस के विरोध की लहर, दो बार के सांसद बाबा के प्रति भी एंटी इंकमबेंसी व उनके क्षेत्र में मौजूद न रहने, बसपा से मुस्लिम प्रत्याशी घोषित होने से मुस्लिम वोटों का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण न होने की संभावना के मद्देनजर स्वयं को लाभ में मान रही है। बावजूद वह कोई जोखिम लेने के मूड में भी नहीं है। इस उद्देश्य से युवाओं व हर वर्ग को रिझाने के लिए लोक सभा क्षेत्र के केंद्र में स्थित हल्द्वानी में मोदी, मुस्लिम बहुल काशीपुर, रुद्रपुर क्षेत्र में नकवी एवं सिख बहुल बाजपुर, रुद्रपुर क्षेत्र में सिद्धू को लाये जाने की रणनीति बनाई गई है।

रविवार, 9 मार्च 2014

नैनीताल में बुलेट टैक्सी के ’नरेश‘


नवीन जोशी, नैनीताल। आपने बस, रेल, टैम्पो, टैक्सी और हवाई जहाज से सफर किया होगा। पर्यटक स्थलों पर कदाचित ‘रोपवे’ का आनंद भी उठाया हो। इसके बाद भी आपने ‘बुलेट टैक्सी’ के बारे में शायद ही देखा-सुना हो। सरोवरनगरी में सामान्य सी दिखने वाली बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार व्यक्ति सवारियां ढोते देख सैलानी अंचभित हो जाते हैं मगर स्थानीय लोगों के लिए यह नजारा आम हैं। वे एक से दूसरे स्थान जाने के लिए नरेश की बुलेट टैक्सी का बखूबी इस्तेमाल करते हैं।
अंग्रेजी शासन में नैनीताल में डांडियों का प्रचलन था। दो-चार लोग डोलीनुमा डांडियों को कंधे पर उठाकर ले जाते थे। समय बदला तो डांडियों की जगह साइकिल रिक्शा ने ले ली। मुश्किल यह थी कि साइकिल रिक्शा केवल नगर की समतल सड़क पर चल पाते थे। कार-टैक्सियां जरूर लोगों को शहर में घुमा सकती हैं मगर इनका किराया बहुत है। स्थानीय युवक नरेश बिष्ट ने इसका हल ढूंढा। उसने 2007 में बेरोजगारों के लिए मिलने वाली ऋ ण योजना से 76 हजार रुपये का लोन लिया और बुलेट मोटरसाइकिल खरीदी। मोटरसाइकिल के लिए टैक्सी का लाइसेंस लिया और मोटरसाइकिल को बुलेट टैक्सी के रूप में तब्दील कर उससे लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने लगा। शुरुआती दिक्कतों के बाद नरेश ने साढ़े तीन साल में मोटरसाइकिल का लोन चुकता कर दिया। आज बुलेट टैक्सी उसके परिवार की आजीविका है। नरेश तल्लीताल से मल्लीताल तक मामूली किराये पर मिनटों में लोगों को गंतव्य तक पहुंचा देता है। उसके पास नियमित 40-50 सवारियां हैं। सैलानी भी नरेश की बुलेट टैक्सी का प्रयोग करते हैं। शहर में नरेश की अच्छी पहचान बन गई है। उसे सवारियों की तलाश नहीं करनी पड़ती वरन लोग उसे फोन करके बुलाने लगे हैं। लोगों को मालूम हैं कि वह कब और कहां मिलेगा। अक्सर उसका रूट तय होता है। एक सवारी लेकर वह रिक्शा स्टैंड से जिला कलक्ट्रेट रवाना होता है। वहां उसे हाईकोर्ट जाने के लिए सवारी तैयार मिलती है। उसे लेकर हाईकोर्ट पहुंचता है। वहां मल्लीताल, तल्लीताल व बिड़ला जाने के लिए सवारियां इंतजार में होती हैं। इस प्रकार वह ऑफ सीजन में 300-400 व सीजन में 700-800 रुपये कमा लेता है। शहर में जहां सभी मोटरसाइकिलें पेट्रोल पीती हैं, वहीं रमेश की मोटरसाइकिल रुपये उगलती है। इस तरह नरेश युवाओं के लिए प्रेरणा स्रेत बन गया है। उसकी देखा-देखी कई अन्य युवा भी बुलेट टैक्सी लेने के इच्छुक दिखाई दे रहे हैं। नरेश का कहना है कि मेहनत करने में शर्म नहीं होनी चाहिए। यही सफलता का राज है।

शनिवार, 8 मार्च 2014

महिला दिवस पर सुखद खबर: नैनीताल में सुधरा लिंगानुपात



  • साल 2013-14 में लिंगानुपात 945.5 से ज्यादा, पिछले साल 921 था 
  • दूरस्थ इलाकों में स्थिति अब भी चिंताजनक
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, मां नयना के साथ नंदा व सुनंदा की नगरी सरोवरनगरी में बालिकाओं के पक्ष में सुखद समाचार आया है। जहां देश व प्रदेश में छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों में लिंगानुपात वर्ष 2011-12 के 879 से नीचे गिरकर 2012-13 में 866 हो गया है, वहीं नगर में नए पैदा हुए बच्चों के मामले में 2013-14 में लिंगानुपात 945.5 से अधिक के स्तर पर पहुंच गया है, जबकि बीते वर्ष यह 921 रहा था। उल्लेखनीय है कि जीव वैज्ञानिक व प्राकृतिक दृष्टिकोण से प्रकृति में बेहतर सामंजस्य के लिए 983 को आदर्श लिंगानुपात माना जाता है, लेकिन बीते वर्षो में प्रसव पूर्व जांच व एक या दो बच्चे ही पैदा करने की प्रवृत्ति के चलते लिंगानुपात तेजी से घटते हुए चिंताजनक स्थिति में जा पहुंचा है। खासकर शून्य से छह वर्ष के बच्चों के मामले में लिंगानुपात वर्ष 2011 में 886 था जो 2012 में और घटकर 800 से नीचे आ गया। वहीं कुमाऊं मंडल व जिला मुख्यालय में पैदा हो रहे बच्चों में लिंगानुपात के आंकड़े काफी हद तक सुखद कहे जा सकते हैं। यहां वर्ष 2012-13 की बात करें तो कुल पैदा हुए 634 बच्चों में से 330 बालक और 304 बालिकाएं थीं। इस प्रकार लिंगानुपात 921 रहा है। वहीं वर्तमान वित्तीय वर्ष में अप्रैल 13 से फरवरी 14 माह तक के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार यहां पैदा हुए 607 बच्चों में से 312 बालक और 295 बालिकाएं पैदा हुई हैं। इस प्रकार लिंगानुपात 945.5 से भी अधिक रहा है, जो बेहद सुखद कहा जा रहा है। अस्पताल की सीएमएस डा. विनीता सुयाल ने भी इस पर खुशी व्यक्त की है। बताया गया है कि जिले के भीमताल, धारी व कोटाबाग जैसे अधिक शहरी इलाकों वाले ब्लॉकों में भी बच्चों में लिंगानुपात की स्थिति अच्छी है, जबकि दूरस्थ व पिछड़े इलाकों में शुमार बेतालघाट व ओखलकांडा ब्लाकों में लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बालिकाओं में ज्यादा

नैनीताल। देश-दुनिया व जनपद की बालिकाएं जहां स्कूल स्तर पर बालकों से अधिक बीमार नजर आ रही हैं, यह तथ्य भी जान लें कि प्राकृतिक तौर पर बालिकाओं में बालकों के मुकाबले अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। बीडी पांडे जिला महिला चिकित्सालय की सीएमएस डा. विनीता शाह बताती हैं कि इसी कारण प्राकृतिक व जीव वैज्ञानिक तौर पर (बायलॉजिकल सेक्स रेशियो) लिंगानुपात 983 होता है। माना जाता है कि एक हजार बालकों में से करीब 27 बालक जीवित नहीं रह पाएंगे और भविष्य में बालक व बालकों के बीच अंतर नहीं रह जाएगा, लेकिन मौजूदा लिंगानुपात लगातार घट रहा है। देश का लिंगानुपाल 940, प्रदेश का लिंगानुपात गत वर्ष के 983 से घटकर 913 और जनपद का 933 रह गया है। वहीं इससे भी अधिक चिंता की बात शून्य से छह वर्ष के बच्चों में लिंगानुपात 891 से भी घटकर 886 रह जाने को लेकर है।