मंगलवार, 24 सितंबर 2013

आपदा के कारण आबादी क्षेत्रों में बढ़ रहे गुलदार !


बाघों की घटती संख्या भी है बड़ा कारण : हरीश धामी
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में हालिया दिनों में गुलदारों के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में आने, आदमखोर बनकर मानव-वन्य जीव संघर्ष बढ़ाने के पीछे प्रदेश में गत दिनों आई आपदा बड़ा कारण है, जबकि देश में बाघों की लगातार घटती संख्या प्रमुख कारण है। यह मानना है नैनीताल जनपद को पांच दिनों के अंदर दो आदमखोर गुलदारों से निराभय करने वाले शिकारी, क्षेत्र पंचायत सदस्य हरीश धामी का। गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही रामनगर में आदमखोर को केवल एक गोली से 40 मीटर की दूरी से मारकर ढेर करने वाले धामी का मानना है कि मानव के जीवन के दुश्मन बनने वाले गुलदारों और कृषि को नुकसान पहुंचा रहे जंगली सुअरों से निजात दिलाना एक तरह की समाज सेवा ही है। हालांकि वह ईश्वर से यह प्रार्थना भी करते हैं कि काश उन्हें वन्य जीवों के खिलाफ हथियार उठाने की जरूरत ही न पड़े। 
जनपद के देवीधूरा ग्राम निवासी धामी जन्मजात शिकारी कहे जा सकते हैं। हिंसक वन्य जीवों के करीब तक निडरता से पहुंचना और उसे एक गोली में ढेर कर देना धामी को विरासत से मिला है। उनके दादा धनसिंह धामी को अंग्रेजों के दौर से जारी वन्य जीवों से सुरक्षा के मद्देनजर हिंसक जीवों को मारने का अधिकार मिला हुआ था। हालांकि पिता की मौत के बाद उनके परिवार पर एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें अपने दादा की यही बंदूक बेचनी पड़ गई। लेकिन बाद में हालात सुधरने पर वह वापस 12 बोर की एक लाइसेंसी बंदूक ले आए, जिससे उन्होंने गत छह सितम्बर को वन विभाग की टीम से लगातार 57 दिन जंगलों की खाक छानने के बाद जिले के जंतवालगांव, सूर्याजाला व लमजाला क्षेत्रों में चार लोगों को जिंदा खा जाने वाले आदमखोर गुलदार को ढेर कर दिया था, और चार दिन के बाद ही रामनगर के काब्रेट टाइगर रिजर्व के सांवल्दे गांव क्षेत्र में पेड़ पर शिकार की तलाश में बैठे गुलदार को भी इसी बंदूक से मौत की नींद सुलाकर क्षेत्रवासियों के बीच हीरो बन गए। "राष्ट्रीय सहारा" से एक भेंट में धामी बताते हैं गुलदार पेड़ पर चढ़ने की क्षमता रखने वाला व स्वभाव से बेहद शातिर व धूर्त किस्म का जानवर होता है। यह छुपकर किसी पर भी हमला बोल सकता है। बीते दिनों प्रदेश में आई आपदा के बाद इसकी आबादी क्षेत्रों में अधिक उपस्थिति हुई है। रानीखेत और अल्मोड़ा शहरों में घरों के अंदर गुलदारों के घुसने की घटनाएं भी बीते माह प्रकाश में आई। संभव है कि आपदा में उसके प्राकृतिक भोजन हिरन प्रजाति के वन्य जीवों के हताहत हो जाने जैसे कारणों से वह आबादी क्षेत्रों की ओर आ रहे हों। देश- प्रदेश में बाघों की घटती संख्या भी गुलदारों की तेजी से बड़ी संख्या के पीछे बड़ा कारण हो सकता है। धामी बताते हैं कि उनकी सफलता के पीछे नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते, उप प्रभागीय वनाधिकारी यूसी तिवारी, रानीबाग के वन दरोगा आनंद लाल आर्य और दैनिक श्रमिक मुन्ना आदि के सहयोग की उनकी सफलता में मुख्य भूमिका रही।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

गुरुओं का हो रहा 'पलायन', चेले भगवान भरोसे

नवीन जोशी, नैनीताल। चेलों यानी छात्रों के ज्ञान अर्जित कर बेहतर अवसरों के लिए 'प्रतिभा पलायन' की खबरें तो आपने खूब सुनी होंगी, लेकिन गुरुजनों का भी 'प्रतिभा पलायन' होता है। विश्वविद्यालय अधिनियम में उपलब्ध 'असाधारण छुट्टी' की व्यवस्थाओं का लाभ उठाकर कुमाऊं विवि के आधा दर्जन से अधिक प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर तीन से पांच वर्ष की लंबी छुट्टी पर चले गए हैं, और बेहतर सुविधाओं की मौज उड़ा रहे हैं। वहीं कुविवि में अपने मूल पदों पर भी उनका कब्जा बरकरार है। विवि की मजबूरी है कि इन पदों को रिक्त मानकर नई नियुक्तियां भी नहीं की जा सकतीं, लिहाजा मात्र 10 से 25 हजार के मानदेय पर उन्हें छह-छह माह के सीमित समय के लिए रखा जा रहा है। इससे यह संविदा भी अपना भविष्य अनिश्चित होने के मानसिक दबावों में हैं, और छात्रों को स्तरीय शिक्षा मिल पा रही है। देश के अन्य विवि सहित कुविवि में भी व्यवस्था है कि उच्च शिक्षा लेने जैसी 'असाधारण' परिस्थितियों में पहले तीन और दूसरी बार और दो यानी कुल पांच वर्ष के लिए विवि कार्य परिषद का अनुमोदन प्राप्त कर बिना वेतन के लंबे अवकाश पर जा सकते हैं। इस व्यवस्था का लाभ उठाकर विवि के अनेक प्रोफेसर लंबे अवकाश पर चले गए हैं और आईआईएम काशीपुर, उत्तराखंड मुक्त विवि व बनारस हिंदू विवि सरीखे अन्य संस्थानों में अधिक वेतन-सुविधाओं की मौज उड़ा रहे हैं। ऐसे में स्थिति यह है कि कुमाऊं विवि का तीन वर्ष पूर्व तक विवि के लिए बेहद लाभदायक रहा स्ववित्त पोषित आधार पर चलने वाला आईपीएसडीआर संस्थान यहां के तत्कालीन निदेशक डा. आरसी मिश्रा के जाने के बाद से अस्तित्वहीन हो गया है, और विवि की आय का एक बड़ा हिस्सा भी प्रभावित हुआ है। प्रोफेसरों के विवि छोड़कर जाने के पीछे विवि की अंदरूनी राजनीति भी एक बड़ा कारण बतायी जा रही है, जिसके तहत विरोधी विचारधारा के शिक्षकों को विवि छोड़ने को मजबूर कर दिया जाता है, और बाद में चहेतों को संविदा पर रखा जाता है। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी का कहना है कि विवि अधिनियम में ऐसी व्यवस्था है, लिहाजा वह इससे अधिक कुछ नहीं कह सकते। एबीबीपी के जिला संयोजक निखिल का कहना है कि शिक्षकों का बेहतर सुविधाओं के लिए अपने मूल छात्रों को उनके बेहतर शिक्षा के अधिकार से वंचित कर जाना भले विवि अधिनियम में गलत न हो, पर यह नैतिक रूप से गलत है। बेहतर हो कि ऐसे शिक्षक त्यागपत्र देकर ही अन्यत्र जाएं।

कुमाऊं विवि में 23 पदों को संविदा शिक्षकों से भरने की नौबत

नैनीताल। कुमाऊं विवि में प्रोफेसरों के लंबे अवकाश पर जाने के कारण रिक्त सहित कुल 23 पदों पर संविदा पर शिक्षकों की नियुक्तियां की जा रही हैं। विवि के कुलसचिव की ओर से जारी विज्ञप्ति में साफ किया गया है कि यह नियुक्तियां नितांत अस्थायी तौर पर केवल 31 दिसम्बर 2013 तक के लिए ही की जा रही हैं। इनमें डीएसबी परिसर नैनीताल के लिए संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, जंतु विज्ञान व सांख्यिकी विभागों में एक-एक, फार्मेसी व भूविज्ञान विभाग में दो-दो व भौतिकी विभाग में तीन सहित कुल 15 पद तथा एसएसजे परिसर अल्मोड़ा के लिए समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, वनस्पतिविज्ञान, गणित, सांख्यिकी व सूचना प्रोद्योगिकी में एक-एक तथा शिक्षा विभाग में दो सहित कुल आठ पद शामिल हैं।

लंबे अवकाश पर जाने वाले शिक्षक


  1. डा. केएन बधानी-एसोसिएट प्रोफेसर-वाणिज्य विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल।
  2. डा. आरसी मिश्रा-प्रोफेसर- वाणिज्य विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल। 
  3. डा. गिरिजा प्रसाद पांडे-एसोसिएट प्रोफेसर-इतिहास विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल।
  4. डा. एचएस अस्थाना-एसोसिएट प्रोफेसर-मनोविज्ञान विभाग, एसएसजे अल्मोड़ा परिसर। 
  5. डा. दुर्गेश पंत- प्रोफेसर-कम्प्यूटर विभाग, एसएसजे परिसर, अल्मोड़ा। 
  6. डा.एचएस झा, प्रोफेसर-समाजशास्त्र, डीएसबी परिसर, नैनीताल। 
  7. डा. विजय जुयाल- प्रोफेसर-फाम्रेशी, भीमताल परिसर। 
  8. प्रो.एचपी शुक्ला- अंग्रेजी विभाग, डीएसबी परिसर नैनीताल।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

आदमखोरों की होगी डीएनए सैंपलिंग

पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के प्रयोग असफल रहने के बाद उठाया जा रहा कदम 
नैनीताल वन प्रभाग से होगी शुरुआत, मल से लिये जाएंगे डीएनए के नमूने
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक आदमखोर बाघों व गुलदारों की पहचान उनके पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के जरिए की जाती रही है, लेकिन इन प्रविधियों की असफलता और अब गांवों के बाद शहरों में भी अपनी धमक बना रहे आदमखोरों की त्रुटिहीन पहचान के लिए वन विभाग अत्याधुनिक डीएनए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग इनकी पहचान के लिए करने जा रहा है। इसकी शुरुआत नैनीताल वन प्रभाग से होने जा रही है। इस नई तकनीक के तहत वन विभाग ग्रामीणों के सहयोग से वन्य पशुओं के मल (स्कैड) को एकत्र करेगा। मल का हैदराबाद की अत्याधुनिक सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण कर डाटा रख लिया जाएगा और आगे इसका प्रयोग आदमखोरों की सही पहचान में किया जाएगा। 
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार कोई भी हिंसक वन्य जीव अपने जीवन पर संकट आने जैसी स्थितियों में ही आदमखोर होते हैं। बीते दिनों में नैनीताल जनपद के चोपड़ा, जंतवालगांव क्षेत्र में चार लोगों को आदमखोर गुलदार अपना शिकार बना चुके हैं। रामनगर के जिम काब्रेट पार्क से लगे क्षेत्रों में आदमखोर बाघों से अक्सर मानव से संघर्ष होता रहा है। दिनों-दिन ऐसी समस्याएं बढ़ने पर वन विभाग ने पहले इन हिंसक वन्य जीवों के पदचिह्नों की पहचान की तकनीक निकाली, लेकिन बेहद कठिन तकनीक होने के कारण कई बार बमुश्किल प्राप्त किए पदचिह्न किसी अन्य वन्य जीव के निकल जाते हैं और उनके इधर- उधर आने-जाने की ठीक से जानकारी नहीं मिल पाती। इससे आगे निकलकर निश्चित स्थानों पर थर्मो सेंसरयुक्त कैमरे लगाकर इनकी कैमरा ट्रैपिंग का प्रबंध किया गया, किंतु यह प्रविधि भी कुछ ही स्थानों पर कैमरे लगे होने की अपनी सीमाओं के कारण अधिक कारगर नहीं हो पा रही है। नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते का दावा है कि इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने सीसीएमबी हैदराबाद जाकर अध्ययन किया है व वहां के डीएनए सैंपलिंग विशेषज्ञों ने हिंसक जीवों के आतंक से निजात दिलाने के लिए यह नया तरीका खोज निकाला है। डा. धकाते बताते हैं कि नई विधि के तहत शीघ्र ही आदमखोरों की अधिक आवक वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों व विभागीय कर्मियों को एक दिवसीय 'कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम' चलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। ग्रामीणों को विभाग प्लास्टिक के थैले उपलब्ध कराएगा, जिसमें ग्रामीण कहीं भी जानवर का मल मिलने पर थोड़ा सा एकत्र कर लेंगे। बाद में विभाग इसे सीसीएमबी हैदराबाद भेजेगा और त्रुटिहीन तरीके से उस क्षेत्र में सक्रिय हिंसक जीव की पहचान एकत्र कर ली जाएगी। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर निदेशक व जंतु विज्ञानी प्रो. बीआर कौशल ने भी डीएनए सैंपलिंग के इस तरीके के बेहद प्रभावी होने की संभावना जताते हुए कहा कि मल में जानवर की लार, सलाइवा, हड्डी या पेट की आंतों के अंश होते हैं, जिनसे उस जानवर का डीएनए सैंपल प्राप्त हो जाता है।

बाघों की मौत के वैज्ञानिक अन्वेषण के निर्देश दिए

नैनीताल । नैनीताल उच्च न्यायालय ने काब्रेट पार्क में बाघों की मौत मामलों में वन अफसरों की लापरवाही को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने निदेशक सीटीआर को बाघों की मृत्यु का वैज्ञानिक अन्वेषण करने के निर्देश दिये हैं। खंडपीठ ने गौरी मौलखी की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि काब्रेट पार्क में बाघों की मौत का सही अन्वेषण नहीं किया जा रहा है। वन अफसर जांच में बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्धारित मापदंडों का सरासर उल्लंघन कर रहे हैं।

रविवार, 11 अगस्त 2013

द्वितीय विश्व युद्ध के सेनानी देवी दत्त जोशी नहीं रहे



Amar Ujala-Almora edition- 10 Aug. 2013
कपकोट। द्वितीय विश्व युद्ध के सेनानी (The 12th Frountier Force Regiment, Sialkot में 03.05.1945 से 16.07.1946 तक कार्यरत रहे) तोली निवासी देवीदत्त जोशी (सिपाही 3429418) का करीब 100 साल की आयु में बृहस्पतिवार रात निधन हो गया। शुक्रवार को  पैत्रिक गांसू श्मशान घाट में पवित्र सरयू नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। विश्व युद्ध के दौरान वह सियालकोट क्षेत्र में तैनात रहे। स्व. जोशी युद्ध के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने वाले सैनिकों में भी शामिल थे।
कपकोट ब्लाक के सुदूरवर्ती तोली गांव में स्व. दत्त राम जोशी के घर में जन्मे देवी दत्त जोशी बचपन से ही जुझारू प्रवृति के थे। वह ब्रिटिश भारतीय सरकार की सशस्त्र सेना में भर्ती हुए और द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने बहादुरी के साथ मित्र देशों की सेनाओं के साथ मिलकर कर्तव्यनिष्ठा और बहादुरी का परिचय दिया। वह अधिकतर समय सियालकोट क्षेत्र में तैनात रहे। परिजनों के अनुसार 1946 के आसपास ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वातावरण बनने लगा तो सेना में भी विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई। 
Rashtriya Sahara-10 August 2013
भारतीय सैनिक ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ बगावत करने लगे। इसके बाद सरकार ने 120 रुपये की पेंशन के साथ कई सैनिकों सहित श्री जोशी को भी सेवानिवृत्त कर दिया। उन्हें शांतिपुरी में 120 हेक्टेयर भूमि दी गई। श्री जोशी के परिजन तराई में बस गए किंतु वह पैतृक गांव तोली में ही रहे। बृहस्पतिवार की रात उनका निधन हो गया। आज पैत्रिक गांसू श्मशान घाट में पवित्र सरयू नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके पुत्र दामोदर जोशी, भोलादत्त जोशी, हरीश चंद्र जोशी ने चिता को मुखाग्नि दी। सबसे बड़े पुत्र केशव दत्त जोशी का पहले ही देहांत हो चुका है। श्री जोशी के पौत्र वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी ने बताया कि अंतिम संस्कार में उनके सभी सात पोते शामिल हुए। श्री जोशी के निधन पर कपकोट के विधायक ललित फर्स्वाण, एडवोकेट चामू सिंह देवली, नारायण सिंह दानू, देवेंद्र मर्तोलिया, देवेंद्र गड़िया, नरेंद्र सिंह दानू आदि ने दु:ख जताया है।

स्वतंत्रता सेनानी देवी दत्त जोशी का निधन

बागेश्वर (एसएनबी)। आजाद हिंन्द फौज के सेनानी रहे देवी दत्त जोशी (100) का बृहस्पतिवार रात को तोली स्थित उनके पैतृक निवास पर निधन हो गया। निधन का समाचार सुनते ही क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। कपकोट के पैत्रिक गांसू श्मशान घाट में पवित्र सरयू नदी के तट पर सैकड़ों नम आंखों के बीच दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी की अत्येष्टि संपन्न हुई। मुखाग्नि उनके बड़े पुत्र व साहित्यकार दामोदर जोशी (देवांशु) व छोटे पुत्रों भोला दत्त व हरीश जोशी ने संयुक्त रूप से दी। 
उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया था। उनके पुत्र दामोदर जोशी उत्तराखंड के साहित्यकार तथा पौत्र नवीन जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं। जोशी के निधन पर पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, विधायक ललित फर्स्वाण, पूर्व मंत्री बलवंत सिंह भौर्याल, विधायक चंदन राम दास,जिला पंचायत अध्यक्ष विक्रम सिंह शाही, ब्लॉक प्रमुख पुष्पलता मेहता के अलावा साहित्यकार व पूर्व सैनिक संगठनों के पदाधिकारियों ने शोक व्यक्त किया है।


दादाजी के अनुभवों के आधार पर लिखा गया एक आलेख, जो की उस दौर का एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है, इस लिंक पर: : http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-history-and-peoples-movement/history-of-uttarakhand-from-the-eyes-of-elders/msg70052/#msg70052 



सम्बंधित लेख: http://mankahii.blogspot.in/2013/08/blog-post.html

रविवार, 4 अगस्त 2013

कैलास मानसरोवर यात्रा रोकना गैर हिंदूवादी कदम : भाजपा

नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश भाजपा ने कैलास मानसरोवर यात्रा को निरस्त करने के लिए प्रदेश सरकार का गैर हिंदूवादी कदम और दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा कि यह देश के करोड़ों आस्थावान हिंदू समाज की भावनाओं से खिलवाड़ है। सरकार को तत्काल ही अपने निर्णय में बदलाव कर यात्रियों को मुफ्त हेलीकॉप्टर सुविधा दिलाकर यात्रा को शुरू करानी चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया दी कि आगे इस कदम के बाद उत्तराखंड के यात्रा मार्ग को असुरक्षित बताकर अरुणांचल व लद्दाख से कैलास मानसरोवर के लिए नए मार्ग खोले जा सकते हैं, इससे उत्तराखंड एक बड़ा आर्थिक श्रोत भी खो देगा। 
जोशी रविवार को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के साथ देहरादून लौटते हुए मुख्यालय स्थित राज्य अतिथि गृह में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। कहा, कैलाश यात्रा मार्ग में केवल नदी के बगल से होकर जाने वाले रास्ते में नुकसान हुआ है, जबकि नैनीताल से सौसा, जिप्ती या गुंजी तक एमजी-17 हेलीकॉप्टर के अधिकतम तीन चक्कर लगाकर श्रद्धालुओं को कैलास यात्रा कराई जा सकती है। "˜राष्ट्रीय सहारा" पूर्व में ही कैलास मानसरोवर यात्रा को इसी तरह नैनीताल से सौसा या जिप्ती तक हेलीकॉप्टर सुविधा के जरिए संचालित करने का विकल्प सुझा चुका है। जोशी ने कहा कि यात्रा के स्थगित होने से हमेशा के लिए उत्तराखंड से यह सेवा छिनने का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। इस मौके पर सांसद प्रतिनिधि मनोज जोशी व संतोष साह मौजूद थे।

निकटवर्ती वन भूमि पर तत्काल विस्थापन हो, पर सीमांत क्षेत्र खाली भी न हो : चुफाल

नैनीताल। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने सीमांत क्षेत्रों में आपदा प्रभावितों का नहीं वरन पूरे आपदा प्रभावित गांवों को विस्थापन करने की आवश्यकता जताई है। साथ ही चेताया है कि विस्थापन से सीमांत क्षेत्र के गांव खाली न हो जाएं। विस्थापितों को केवल रहने के लिए मकान ही नहीं वरन आजीविका के लिए आपदा में बरबाद हुई पूरी जमीन निकटवर्ती वन भूमि में ही देने की मांग की। उन्होंने प्रदेश सरकार पर आपदा के डेढ़ माह गुजरने के बाद सड़कें तो दूर आपदा में नष्ट हुए पैदल मार्ग भी दुरुस्त न कर पाने का आरोप लगाया। पैदल रास्ते ही बन जाएं, तो बड़ी बकरियों के जरिए भी दूरस्थ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सकता है। पत्रकारों से वार्ता करते भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल व अन्य। 

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

अब नैनीताल में फटा आफतों का बादल...

  • जिले के दूरस्थ ल्वाड़ डोबा गाँव में आयी दैवीय आपदा..
  • एक घर का नामोनिशान नहीं रहा.. गृहस्वामी, उसकी पत्नी और चार बेटियां काल-कवलित, दो बछिया और 12 बकरियां भी मरीं...
  • घर का इकलौता चश्मो-चिराग (13 साल का बेटा) कहीं और होने के कारण बचा 


नैनीताल/धानाचूली (एसएनबी)। यहां करीब सवा सौ किमी दूर चंपावत जिले की सीमा से सटे ओखलकांडा ब्लॉक के ल्वाड़ डोबा ग्रामसभा में भूस्खलन के कारण एक दोमंजिला आवासीय भवन बुधवार देर रात्रि जमींदोज हो गया। इस हादसे में एक ही परिवार की चार बच्चियां व उनके माता-पिता घर के मलबे में जिंदा दफन हो गये। घर की निचली मंजिल (गोठ) में बंधी दो बछिया और 12 बकरियां भी मलबे में दबकर मर गई। घर का इकलौता चिराग दुर्घटना के समय घर पर न होने के कारण बच गया। सड़क मार्ग बाधित होने से डीएम एएस ह्यांकी व अन्य अधिकारी 15 किमी. पैदल चलकर मौके पर पहुंचे। माना जा रहा है कि बीती रात मूसलाधार बारिश के दौरान बादल फटने के कारण यह तबाही हुई। सीएम विजय बहुगुणा ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मृत लोगों की आत्मा की शांति एवं दुख की इस घड़ी में उनके परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईवर से कामना की है। सीएम ने जिलाधिकारी नैनीताल को निर्देश किया है कि इस दुर्घटना में मृत लोगों के परिजनों को शासन द्वारा अनुमन्य राशि जल्द उपलब्ध करायें। साथ ही क्षतिग्रस्त भवनों का आकलन कर निर्धारित मुआवजा भी वितरित करें। 
जानकारी के मुताबिक बृहस्पतिवार सुबह करीब 6.20 बजे ल्वाड़ डोबा ग्राम सभा की प्रधान वैष्णव देवी ने जिला आपदा कंट्रोल रूम को इस हादसे की सूचना दी। जानकारी के अनुसार बुधवार रात्रि दो से ढाई बजे के बीच ल्वाड़ डोबा गांव में हयात राम आर्या (40) का पुराना दोमंजिला भवन बारिश के दौरान भरभराकर ढह गया। जानकारी लगने पर जुटे ग्रामीणों ने मलबे से उनको निकालने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी नहीं बचाया जा सका। हादसे में हयात राम, उसकी पत्नी आनंदी देवी (35) व चार बेटियांनी लम (10), कविता (8), हिमानी (5) और डेढ़ वर्षीया निशा की मौके पर ही मौत हो गई। हयात राम का इकलौता बेटा (13) संयोगवश बच गया। बताया गया है कि वह रात्रि में अपने ताऊ के घर में सोया हुआ था। सूचना मिलते ही राजस्व विभाग, रेस्क्यू और स्वास्थ्य विभाग की टीमों को गांव की ओर रवाना किया गया। डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी भी सुबह सवा आठ बजे गांव के लिए रवाना हुए। दुर्घटनास्थल धारी तहसील मुख्यालय से करीब 85 किमी दूर खनस्यूं- पतलोट मार्ग पर स्थित है। यह मार्ग डालकन्या से आगे कई स्थानों पर मलबा आने से अवरुद्ध है। इस कारण गांव पहुंचने के लिए प्रशासन और आपदा-बचाव व स्वास्थ्य विभाग की टीमों को करीब 15 किमी पैदल चलना पड़ा। डीएम के साथ ही तहसीलदार धारी दामोदर पांडे, एसडीएम कोश्यां-कुटौली एनएस नबियाल सहित चिकित्सकों का दल भी करीब पांच घंटे पैदल चलकर मौके पर पहुंच पाया। शवों का मौके पर ही पोस्टमार्टम कराया गया।

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ताक पर नदी किनारे की मनाही, झील के मुहाने पर प्रशासन खुद ही करा रहा निर्माण !


नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में आई भीषण प्राकृतिक आपदा से सचेत होते हुए जहां प्रदेश सरकार नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित कर रही है। वहीं भूगर्भीय दृष्टिकोण से कमजोर सरोवरनगरी में बेहद संवेदनशील नैनीझील के मुहाने पर स्वयं प्रशासन ही विशालकाय व भारी-भरकम "न्यू ब्रिज कम बाईपास" का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण का मूल उद्देश्य नगर के प्रवेश द्वार डांठ पर स्थित रोडवेज स्टेशन को यहां स्थानांतरित कर वाहनों का बोझ कम करना था, लेकिन इधर बताया जा रहा है कि रोडवेज ने न्यू ब्रिज में अत्यधिक निर्माण जगह की कमी को देखते हुए वहां बस अड्डा स्थानांतरित करने का विचार बदल दिया है और पुराने बस अड्डे को जीर्णोद्धार कर चकाचक कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यह निर्माण किया ही क्यों जा रहा है। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005-06 में सर्वप्रथम हल्द्वानी व भवाली रोड के बीच डांठ से पहले "न्यू ब्रिज" बनाने की योजना बनी थी। उद्देश्य था-डांठ से वाहनों का दबाव कम करना। योजना के पहले चरण में नैनीझील के अतिरिक्त पानी को बाहर बलियानाले में प्रवाहित करने के लिए 1.81 करोड़ रुपये की लागत से दो बैरलों, बिल्डिंग स्ट्रक्चर तथा लैंड फिल का कार्य 2007 में पूरा होना था। विवादों में रहा यह कार्य 2009 में पूरा हो पाया। 2010-11 में दूसरे चरण में 90.12 लाख रुपये से फिनिशिंग, ब्यूटिफिकेशन व स्लैब डालने के कार्य नौ माह के अंदर होने थे। पहले ठेकेदार करीब 30 लाख रुपये के कार्य कर चला गया, और फिर न्यायालयों तक पहुंचे लंबे विवाद के बाद इधर एक अप्रैल 13 से नये ठेकेदार को 58.47 लाख में छह माह में कार्य पूरा करने को मिला है। इन दिनों कार्य के तहत विशाल स्लैब डालने का कार्य चल रहा है, जिसे देखते हुए एवं केदारघाटी में आई भीषण तबाही को देखते हुए यह सवाल जोरों से उठ रहा है कि नैनीझील के मुहाने पर इतना विशालकाय निर्माण बड़ी आपदा को निमंत्रित करना तो नहीं है। कुमाऊं विवि के पूर्व प्राध्यापक एवं पर्यावरणविद् डा. अजय रावत का कहना है कि निर्माण से पूर्व ईआईए (इन्वायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट) यानी पर्यावरणीय परीक्षण और जनता से ईआईएस (इन्वायरंमेंट इम्पेक्ट स्टेटमेंट) यानी जनता के विचार भी नहीं लिए गए। उन्होंने प्रदेश में सभी जलराशियों के 30 फीट की दूरी में पहले से निर्माण प्रतिबंधित होने की बात भी कही। इस बारे में झील विकास प्राधिकरण के सचिव विनोद गिरि गोस्वामी ने कहा कि नदी किनारे नए निर्माणों पर रोक लगने जा रही है, जबकि यह राज्य एवं केंद्र सरकार से पूर्व में स्वीकृत निर्माण है। उन्होंने यहां कियोस्क (दुकानें) बनाने के कारण रोडवेज स्टेशन और वाहनों के लिए जगह की कमी की बात स्वीकारी, अलबत्ता कहा कि स्थान हो जाएगा। पूर्व में रोडवेज के अधिकारी यहां स्टेशन स्थानांतरित करने की हामी भर चुके हैं, और अभी तक मना करने की औपचारिक जानकारी नहीं है। प्रदेश में नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित करने की हुई है घोषणा नैनी झील का अतिरिक्त पानी यहीं से निकलता है बाहर यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस निर्माण की शुरूआत में पूर्व में मौजूद ढांचे को तोड़ने के लिए धमाके भी किए गए थे, जिसके फलस्वरूप दरार उत्पन्न हो गई थीं, और झील से अधिक पानी का रिसाव होने लगा था। इसके निदान को बांध की तरह "नेटिंग" करने की सलाह दी गई थी, लेकिन वह कार्य भी नहीं किए गए। 

वर्ष 1898 में हुए भूस्खलन में हुई थीं 28 मौतें

नैनीताल। बलियानाला क्षेत्र नैनीताल नगर का आधार है, और बेहद कमजोर भौगोलिक व भूगर्भीय संरचना वाला है। मेन बाउंड्री के निकट स्थित इस नाले में हमेशा से भू-धंसाव होता रहता है। प्रख्यात पर्यावरणविद् डा. अजय रावत बताते हैं कि 17 अगस्त 1898 को यहां टूटा पहाड़ के पास भूकंप के साथ बेहद बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसकी वजह से ब्रेवरी (बीरभट्टी) में बियर की भट्टी में कार्यरत एक अंग्रेज समेत 28 लोग मारे गए थे। वर्तमान में भी यह क्षेत्र धंस रहा है। हरिनगर क्षेत्र को खाली कराने का प्रस्ताव है। ऐसे में डा. रावत झील के मुहाने पर इतने बड़े निर्माण को नगर के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं।

बुधवार, 3 जुलाई 2013

देवभूमि को आपदा से बचाएगा नैनीताल, एसटी और डोपलर रडार लगेंगे



  • जिला प्रशासन ने डॉप्लर रडार लगाने को स्नोव्यू में तलाशी जमीन
  • एरीज भी अपने यहां लगाने को तैयार
  • एरीज में पहले ही एसटी रडार स्थापित

नवीन जोशी नैनीताल। यहां एरीज में हवाओं की निगहबानी करने वाली एसटी रडार स्थापित हो चुकी है और इसके जल्द कार्य शुरू करने की उम्मीद की जा रही है, वहीं वर्ष 2004 से लंबित डॉप्लर रडार लगाने के लिए जिला प्रशासन ने नगर के स्नोव्यू में लोनिवि की छह हजार वर्ग फीट भूमि इस हेतु चिह्नित कर ली है, जबकि एरीज के अधिकारियों ने अपने यहां इसे लगाने पर भी हामी भरी है। मौसम की सटीक जानकारी के लिए एसटी और डॉप्लर रडार की भूमिका महत्वपूर्ण है। एसटी रडार जहां वायुमंडल की करीब 20 से 25 मीटर की ऊंचाई की दिशा में हवाओं की गति पर और डॉप्लर रडार 360 डिग्री के कोण पर घूमते हुए 200 किमी की परिधि में वायुमंडल में मौजूद आर्द्रता-नमी पर नजर रखती है। इन दोनों प्रकार की रडारों के समन्वय से मौसम विभाग आने वाले मौसम की सटीक भविष्यवाणी कर पाता है।
वर्ष 2004-05 से मसूरी और नैनीताल में करीब 10 करोड़ रुपए लागत के डॉप्लर रडार लगाने की योजना बनी थी, लेकिन बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस बार की भीषण आपदा से सबक लेते हुए डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी ने प्रयास किए हैं। एक ओर स्थानीय आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) से डॉप्लर रडार लगाने के बाबत वार्ता की। एरीज के स्थानीय अधिकारियों ने इसे अपने परिसर में लगाने पर उच्च प्रबंधन से आसानी से स्वीकृति मिल जाने की बात कही है। इसके साथ ही स्नोव्यू क्षेत्र में लोनिवि की छह हजार वर्ग फीट भूमि की पहचान कर शासन को जानकारी दे दी गई है, ताकि एरीज और स्नोव्यू के दोनों स्थानों का परीक्षण कर लिया जाए। डीएम ने कहा कि परीक्षण में जो भी स्थान उपयुक्त पाया जाएगा, उसका तत्काल प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया जाएगा। इधर राज्य के मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने मौसम की निगरानी के लिए डॉप्लर रडार को सबसे प्रभावी बताया। बताया कि 2004-05 से इसका प्रस्ताव लंबित था। राज्य सरकार स्थान उपलब्ध कराए तो केंद्रीय मौसम विभाग डॉप्लर रडार स्थापित करेगा।
एसटी रडार से 24 घंटे पहले तक हो सकेगी सटीक भविष्यवाणी
नैनीताल। एरीज में देश की सबसे बड़ी 206 मेगा हर्ट्ज क्षमता का एसटी रडार शीघ्र कार्य शुरू कर देगा। इससे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने, तूफान आने सहित वायुयानों के बाबत करीब 24 घंटे पूर्व तक सटीक भविष्यवाणी हो सकेगी। एरीज के वायुमंडल वैज्ञानिक व एसटी रडार विोषज्ञ डा. नरेंद्र सिंह ने बताया कि यह रडार अगस्त अंत तक कार्य करना प्रारंभ कर देंगे। यह रडार वायुमंडल में चलने वाली हवाओं के 150 किमी प्रति घंटा की गति तक जाने की संभावना का दो दिन पहले ही अंदाजा लगाने की क्षमता रखती है। साथ ही यह धरती की सतह से 25 किमी ऊपर वायुमंडल की वज्रपात, बिजली की गर्जना, वायुयानों के चलने वाली हवाओं के रुख का अनुमान भी 24 घंटे पूर्व लगा सकता है।
धाकुड़ी, बदियाकोट व मदकोट में स्थापित हुए वायरलेस स्टेशन
नैनीताल। पुलिस ने कुमाऊं मंडल में आपदा के दौरान दूरस्थ क्षेत्रों से सूचनाओं के आदान-प्रदान के मद्देनजर तीन अस्थायी वायरलेस स्टेशनों की स्थापना की है। अपर राज्य रेडियो अधिकारी जीएस पांडे ने बताया कि बागेश्वर जिले के दूरस्थ पिंडारी ट्रेकिंग रूट पर धाकुड़ी एवं बदियाकोट में तथा पिथौरागढ़ जिले के मदकोट में वायरलेस स्टेशन स्थापित किये गए हैं। इन स्टेशनों पर वायरलेस ऑपरेटरों की तैनाती भी की गई है। कोई भी व्यक्ति यहां आकर आपदा से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है। कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पहले ही पुलिस की ऐसी व्यवस्था गुंजी तक मौजूद है। इसके अलावा तीन सेटेलाइट फोन भी दूरस्थ क्षेत्रों में उपलब्ध कराए गए हैं।

बुधवार, 19 जून 2013

उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियों के बारे में जानकारी

While the Kedarnath shrine was intact, the surrounding part has been severely damaged and submerged, state minister for disaster management and rehabilitation Yashpal Arya said. Photo: Indian Army
'केदारनाथ' की घटना प्रकृति और देवता की मनुष्य को कड़ी चेतावनी है...मनुष्य ने अपने लाभ के लिए केदारनाथ जी को भी 'बेचना' शुरू कर दिया था..उनके आगे बाजार सजा दिया था..उन्हें 'पिकनिक स्पॉट' बना दिया था..फिर यह तो होना ही था...

उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियों के बारे में Latest जानकारी यहाँ क्लिक कर के देख सकते हैं :

  • राज्यों के हेल्प लाइन नंबरों की सूची: 

  • मध्य प्रदेश - 0755-2556422, 09926769808

    महाराष्ट्र (मंत्रालय संख्या) - 022-220279990, 022-22816625, 022-22854168

    आंध्र प्रदेश - 40234510

    उत्तराखंड राज्य इमरजेंसी आपरेशन सेंटर - 0135-2710334

    जनरल जांच संख्या - 0135-2710334, 0135-2710335, 0135-2710233

    आर्मी मेडिकल इमरजेंसी संख्या - 18001805558, 18004190282, 8009833388

    जोशीमठ, कर्णप्रयाग और गोविंदघाट - 01372-253785

    उत्तरकाशी - 01374-226126/161

    चमोली - 01372-251437

    रुद्रप्रयाग - 01732-1077

    टिहरी - 01376-233433

    आईटीबीपी हेल्पलाइन और नियंत्रण कक्ष - 011-24362892, 09968383478

    आपदा नियंत्रण कक्ष, पुलिस मुख्यालय, उत्तराखंड - 0135-2717300, 09411112985

    उत्तराखंड के आपदा नियंत्रण कक्षों के जरूरी फोन नंबरों की जिलावार सूची :

    पिथौरागढ़ - 05964-228050, 226326, 09412079945

    अल्मोड़ा - 05962-237874, 09319979850

    नैनीताल - 05942-231179, 09456714092

    ऊधम सिंह नगर - 05944-250719, 250823, 09410376808

    चमोली - 01372-251437, 251077, 09411352136

    रुद्रप्रयाग - 01364-233727, 09412914875, 08859504022

    उत्तरकाशी - 01374-226461, 09675082336, 09410350338

    देहरादून - 0135-2726066, 09412964935

    हरिद्वार - 01334-223999, 09837352202

    टिहरी - 01376-233433, 09412076111

    बागेश्वर - 05963-220197, 09411378137

    चम्पावत - 05965-230703, 09412347265

    पौड़ी गढ़वाल - 01368-221840, 08650922201

रविवार, 2 जून 2013

पहाड़ से ऊंचा तो आसमान ही हैः क्षमता


प्रदेश की पहली व इकलौती कामर्शियल महिला पायलट कैप्टन क्षमता बाजपेई ने कहा-पहाड़ की होने के कारण ऊंचाइयों से डर नहीं लगता, क्योंकि पहाड़ से आगे तो ‘स्काई इज द लिमिट’ (यानी असीमित आसमान की सीमाएं ही हैं)
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, सही बात ही तो है, पहाड़ों से अधिक ऊंचा तो आसमान ही है। कोई पहाड़ से भी अधिक ऊंचे जाना चाहे तो कहां जाए, आसमान पर ही नां। पर कितने लोग सोचते हैं इस तरह से ?। लेकिन पहाड़ की एक बेटी क्षमता जोशी ने 1986 के दौरान ही जब वह केवल 18 वर्ष की थीं अपने पहाड़ों की ऊंचाई से भी अधिक ऊंचा उड़ने का जो ख्वाब संजोया और उसे पूरा करने में जिस तरह परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी पूरी ‘क्षमता’ लगा दी, नतीजे में वह प्रदेश की पहली और इकलौती कामर्शियल महिला पायलट ही नहीं, एयर इंडिया में प्रोन्नति पाकर सात वर्ष से कमांडर हैं, और न केवल स्वयं बल्कि हजारों लोगों को रोज पहाड़ों से कहीं अधिक ऊंचाइयों से पूरी दुनिया की सैर कराती हैं।
क्षमता जोशी आज क्षमता बाजपेई के रूप में आज एक मां भी हैं, और एयर इंडिया के बोइंग 777 विमान को लगातार 16 से 2 घंटों तक उड़ाते हुए दुनिया के चक्कर काटना अब उनका पेशा है। क्षमता शनिवार पहली जून को नैनीताल में थीं, तो एक भेंट में उन्होंने अपने बचपन से लेकर अपने स्वप्न को साकार करने की विकास यात्रा को खुलकर बयां किया। क्षमता मूलतः प्रदेश के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय के पास स्थित चंडाक गांव की बेटी हैं। पिता एमसी जोशी दिल्ली प्रशासन में प्रधानाचार्य के पद पर थे, लिहाजा दिल्ली में ही उन्होंने पढ़ाई की। पहाड़ कुछ हद तक छूटने के बावजूद ऊंचाइयों को छूने की ललक में बीएससी की पढ़ाई और एनसीसी के दौरान ही उन्होंने 1988 में प्राइवेट पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। आगे पिता ने चार बच्चों की जिम्मेदारी के बीच उनके कमर्शियल पायलट का लाइसेंस लेने के ख्वाब के करीब तीन लाख रुपए के खर्च को वहन करने से स्वयं की लाचारगी जता दी, लेकिन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी ने उनकी काबिलियत को पचानते हुए उन्हें राजीव गांधी स्कॉलरशिप से नवाज कर नकी राह आसान कर दी। फलस्वरूप 1990 में ही उन्होंने कामर्शियल पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया। वर्ष 1997 में वह एयर इंडिया से जुड़ीं और आज सात वर्षों से यहां कमांडर के पद पर तैनात हैं। क्षमता बताती हैं कि विमान उड़ाना कठिनतम कार्यों में से एक है, इसमें अपने लक्ष्य पर अत्यधिक केंद्रित रहने की जरूरत रहती है। उनके पति सुशील बाजपेई अंतराष्ट्रीय ग्लाइडिंग इंस्ट्रक्टर हैं जबकि बेटा मेहुल शौक के तौर पर फ्लाइंग करना चाहता है। नैनीताल में वह अपने जीजा भीमताल के पांडेगांव निवासी भारत पांडे और दोनों बहनों के साथ आई थीं। वह कहती हैं-पहाड़ की होने के कारण ऊंचाइयों से डर नहीं लगता है, क्योंकि पहाड़ों की ऊंचाई के आगे तो असीमित आसमान ही होता है। 

भारत में महिला पायलट विश्व औसत से दोगुनी
प्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना में लिंगानुपात के घटने पर चिंता जताते हुए क्षमता बाजपेई बताती हैं कि महिला पायलटों का विश्व में औसत छः फीसद है, जबकि भारत में कुल पायलटों में से 12 फीसद महिला पायलट हैं, जोकि विश्व औसत का दोगुना है। उनका मानना है कि आज महिलाओं के लिए कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है। लेकिन वह मान के चलें कि उन्हें मां व पत्नी के रूप में घर भी चलाना है और समन्वय बनाते हुए ही घर के बाहर काम करना है। कहा कि वंश चलाने का मतलब अपनी जड़ों को न भूलना भी है। महिलाएं बेशक किसी और की वंशवृद्धि करती हैं, लेकिन अपने मायके को कभी नहीं भूलतीं। पहाड़ की युवतियों के लिए उनका कहना था, वह बुद्धिमान तथा मेहनती व कर्तव्यनिष्ठ हैं। अपने लक्ष्य के प्रति दृ़ढ केंद्रित हांे, और घर से बाहर निकलकर ‘एक्सपोजर’ प्राप्त करें।