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सोमवार, 5 जनवरी 2015

नैनीताल जू में बढ़ा मुर्दा वन्य जीवों के बुतों का कुनबा


-चार नए बुत आए, कुल संख्या छह हुई
नैनीताल (एसएनबी)। मुख्यालय स्थित उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान की पहचान उच्च हिमालयी क्षेत्रों के वन्य जीवों के लिए होती है, लेकिन भविष्य में कहीं यह मुर्दा वन्य जीवों के लिए ही ना पहचाना जाए। चिड़ियाघर में मुर्दा वन्य जीवों के खास वैज्ञानिक तकनीक-टैक्सीडर्मी विधि से बुत बनाने का लंबा सिलसिला चल पड़ा है। पूर्व में यहां देश के आखिरी बताए गए साइबेरियन टाइगर कुणाल और नैनीताल जू के इकलौते स्नो लैपर्ड के टैक्सीडर्मी बुत बने तो उसे सराहना भी मिली, लेकिन इधर चिड़ियाघर में सोमवार को चार वन्य जीवों के टैक्सीडर्मी बुत पहुंचे हैं। यह बुत यहां पिछले वर्ष २०१३ व २०१४ में मरे हिमालयन भालू, चीड़ फीजेंट, ब्राउन वुड आउल (उल्लू) और लिनेटिड कलीज पक्षियों के हैं। चिड़ियाघर प्रशासन का तर्क है कि यह सभी प्राणी देश के विलुप्तप्राय प्राणियों की श्रेणी-एक के हैं, लिहाजा इनके टैक्सीडर्मी बुत बनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन विभागीय सूत्र ही इससे इंकार कर रहे हैं। बताया गया है कि बीते वर्ष पिथौरागढ़ से लाए गए करीब दो माह के भालू के बच्चे को चिड़ियाघर प्रशासन बचा नहीं पाया। यह भी दिलचश्प है कि भालू के बच्चे का बुत, चिड़ियों के बुतों से छोटा नजर आ रहा है, जबकि कहा जाता है कि टैक्सीडर्मी वास्तविक जीव के कंकाल को ही प्रयोग करके वैज्ञानिक तरीके से बनाए जाते हैं। बताया गया है कि चिड़ियाघर प्रशासन ने मुंबई के संजय गांधी राष्टी्रय पार्क के टैक्सीडर्मी विशेषज्ञ डा. संतोष गायकवाड़ से इन सभी टैक्सीडर्मी बुतों को बनवाया है।

लाखों खर्च पर नहीं मिल रहा सैलानियों को लाभ

नैनीताल। नैनीताल चिड़ियाघर में टैक्सीडर्मी बुतों की संख्या दो से बढ़कर छह हो गई है। इन्हें चिड़ियाघर के सभागार में रखा गया है। बताया गया था कि लाखों रुपए खर्च कर बनाए गए इन टैक्सीडर्मी बुतों को वन्यजीव प्रेमियों और शोध छात्रों के दर्शनार्थ रखा जाएगा। लेकिन जबकि पूर्व की दो टैक्सीडर्मियों को यहां रखे करीब दो वर्ष का वक्त बीत गया है, लेकिन कमरे में बंद होने की वजह से यह चिड़ियाघर आने वाले सैलानी इनका अवलोकन नहीं कर पा रहे हैं।
चित्र परिचय: ०५एनटीएल-४: नैनीताल: नैनीताल चिड़ियाघर में सोमवार को पहुंचे चार नए टैक्सीडर्मी, जिसमें चिड़ियों से छोटा दिखता है भालू के बच्चे का बुत।

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

आपदा के कारण आबादी क्षेत्रों में बढ़ रहे गुलदार !


बाघों की घटती संख्या भी है बड़ा कारण : हरीश धामी
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में हालिया दिनों में गुलदारों के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में आने, आदमखोर बनकर मानव-वन्य जीव संघर्ष बढ़ाने के पीछे प्रदेश में गत दिनों आई आपदा बड़ा कारण है, जबकि देश में बाघों की लगातार घटती संख्या प्रमुख कारण है। यह मानना है नैनीताल जनपद को पांच दिनों के अंदर दो आदमखोर गुलदारों से निराभय करने वाले शिकारी, क्षेत्र पंचायत सदस्य हरीश धामी का। गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही रामनगर में आदमखोर को केवल एक गोली से 40 मीटर की दूरी से मारकर ढेर करने वाले धामी का मानना है कि मानव के जीवन के दुश्मन बनने वाले गुलदारों और कृषि को नुकसान पहुंचा रहे जंगली सुअरों से निजात दिलाना एक तरह की समाज सेवा ही है। हालांकि वह ईश्वर से यह प्रार्थना भी करते हैं कि काश उन्हें वन्य जीवों के खिलाफ हथियार उठाने की जरूरत ही न पड़े। 
जनपद के देवीधूरा ग्राम निवासी धामी जन्मजात शिकारी कहे जा सकते हैं। हिंसक वन्य जीवों के करीब तक निडरता से पहुंचना और उसे एक गोली में ढेर कर देना धामी को विरासत से मिला है। उनके दादा धनसिंह धामी को अंग्रेजों के दौर से जारी वन्य जीवों से सुरक्षा के मद्देनजर हिंसक जीवों को मारने का अधिकार मिला हुआ था। हालांकि पिता की मौत के बाद उनके परिवार पर एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें अपने दादा की यही बंदूक बेचनी पड़ गई। लेकिन बाद में हालात सुधरने पर वह वापस 12 बोर की एक लाइसेंसी बंदूक ले आए, जिससे उन्होंने गत छह सितम्बर को वन विभाग की टीम से लगातार 57 दिन जंगलों की खाक छानने के बाद जिले के जंतवालगांव, सूर्याजाला व लमजाला क्षेत्रों में चार लोगों को जिंदा खा जाने वाले आदमखोर गुलदार को ढेर कर दिया था, और चार दिन के बाद ही रामनगर के काब्रेट टाइगर रिजर्व के सांवल्दे गांव क्षेत्र में पेड़ पर शिकार की तलाश में बैठे गुलदार को भी इसी बंदूक से मौत की नींद सुलाकर क्षेत्रवासियों के बीच हीरो बन गए। "राष्ट्रीय सहारा" से एक भेंट में धामी बताते हैं गुलदार पेड़ पर चढ़ने की क्षमता रखने वाला व स्वभाव से बेहद शातिर व धूर्त किस्म का जानवर होता है। यह छुपकर किसी पर भी हमला बोल सकता है। बीते दिनों प्रदेश में आई आपदा के बाद इसकी आबादी क्षेत्रों में अधिक उपस्थिति हुई है। रानीखेत और अल्मोड़ा शहरों में घरों के अंदर गुलदारों के घुसने की घटनाएं भी बीते माह प्रकाश में आई। संभव है कि आपदा में उसके प्राकृतिक भोजन हिरन प्रजाति के वन्य जीवों के हताहत हो जाने जैसे कारणों से वह आबादी क्षेत्रों की ओर आ रहे हों। देश- प्रदेश में बाघों की घटती संख्या भी गुलदारों की तेजी से बड़ी संख्या के पीछे बड़ा कारण हो सकता है। धामी बताते हैं कि उनकी सफलता के पीछे नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते, उप प्रभागीय वनाधिकारी यूसी तिवारी, रानीबाग के वन दरोगा आनंद लाल आर्य और दैनिक श्रमिक मुन्ना आदि के सहयोग की उनकी सफलता में मुख्य भूमिका रही।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

आदमखोरों की होगी डीएनए सैंपलिंग

पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के प्रयोग असफल रहने के बाद उठाया जा रहा कदम 
नैनीताल वन प्रभाग से होगी शुरुआत, मल से लिये जाएंगे डीएनए के नमूने
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक आदमखोर बाघों व गुलदारों की पहचान उनके पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के जरिए की जाती रही है, लेकिन इन प्रविधियों की असफलता और अब गांवों के बाद शहरों में भी अपनी धमक बना रहे आदमखोरों की त्रुटिहीन पहचान के लिए वन विभाग अत्याधुनिक डीएनए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग इनकी पहचान के लिए करने जा रहा है। इसकी शुरुआत नैनीताल वन प्रभाग से होने जा रही है। इस नई तकनीक के तहत वन विभाग ग्रामीणों के सहयोग से वन्य पशुओं के मल (स्कैड) को एकत्र करेगा। मल का हैदराबाद की अत्याधुनिक सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण कर डाटा रख लिया जाएगा और आगे इसका प्रयोग आदमखोरों की सही पहचान में किया जाएगा। 
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार कोई भी हिंसक वन्य जीव अपने जीवन पर संकट आने जैसी स्थितियों में ही आदमखोर होते हैं। बीते दिनों में नैनीताल जनपद के चोपड़ा, जंतवालगांव क्षेत्र में चार लोगों को आदमखोर गुलदार अपना शिकार बना चुके हैं। रामनगर के जिम काब्रेट पार्क से लगे क्षेत्रों में आदमखोर बाघों से अक्सर मानव से संघर्ष होता रहा है। दिनों-दिन ऐसी समस्याएं बढ़ने पर वन विभाग ने पहले इन हिंसक वन्य जीवों के पदचिह्नों की पहचान की तकनीक निकाली, लेकिन बेहद कठिन तकनीक होने के कारण कई बार बमुश्किल प्राप्त किए पदचिह्न किसी अन्य वन्य जीव के निकल जाते हैं और उनके इधर- उधर आने-जाने की ठीक से जानकारी नहीं मिल पाती। इससे आगे निकलकर निश्चित स्थानों पर थर्मो सेंसरयुक्त कैमरे लगाकर इनकी कैमरा ट्रैपिंग का प्रबंध किया गया, किंतु यह प्रविधि भी कुछ ही स्थानों पर कैमरे लगे होने की अपनी सीमाओं के कारण अधिक कारगर नहीं हो पा रही है। नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते का दावा है कि इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने सीसीएमबी हैदराबाद जाकर अध्ययन किया है व वहां के डीएनए सैंपलिंग विशेषज्ञों ने हिंसक जीवों के आतंक से निजात दिलाने के लिए यह नया तरीका खोज निकाला है। डा. धकाते बताते हैं कि नई विधि के तहत शीघ्र ही आदमखोरों की अधिक आवक वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों व विभागीय कर्मियों को एक दिवसीय 'कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम' चलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। ग्रामीणों को विभाग प्लास्टिक के थैले उपलब्ध कराएगा, जिसमें ग्रामीण कहीं भी जानवर का मल मिलने पर थोड़ा सा एकत्र कर लेंगे। बाद में विभाग इसे सीसीएमबी हैदराबाद भेजेगा और त्रुटिहीन तरीके से उस क्षेत्र में सक्रिय हिंसक जीव की पहचान एकत्र कर ली जाएगी। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर निदेशक व जंतु विज्ञानी प्रो. बीआर कौशल ने भी डीएनए सैंपलिंग के इस तरीके के बेहद प्रभावी होने की संभावना जताते हुए कहा कि मल में जानवर की लार, सलाइवा, हड्डी या पेट की आंतों के अंश होते हैं, जिनसे उस जानवर का डीएनए सैंपल प्राप्त हो जाता है।

बाघों की मौत के वैज्ञानिक अन्वेषण के निर्देश दिए

नैनीताल । नैनीताल उच्च न्यायालय ने काब्रेट पार्क में बाघों की मौत मामलों में वन अफसरों की लापरवाही को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने निदेशक सीटीआर को बाघों की मृत्यु का वैज्ञानिक अन्वेषण करने के निर्देश दिये हैं। खंडपीठ ने गौरी मौलखी की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि काब्रेट पार्क में बाघों की मौत का सही अन्वेषण नहीं किया जा रहा है। वन अफसर जांच में बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्धारित मापदंडों का सरासर उल्लंघन कर रहे हैं।

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

मर के भी देखा जा सकेगा देश का आखिरी साइबेरियन टाइगर



टैक्सीडर्मी के रूप में नैनीताल जू लौटा कुणाल

नैनीताल (एसएनबी)। नैनीताल चिड़ियाघर में 19 नवम्बर 2011 को दुनिया से विदा हो चुके देश के आखिरी कुणाल नाम के साइबेरियन टाइगर को अब फिर देखा जा सकेगा। मंगलवार को मंडलायुक्त डा. हेमलता ढौंडियाल ने कुणाल का टैक्सीडर्मी ट्रॉफी के रूप में अनावरण किया। मंडलायुक्त ने इस दौरान कहा कि इस ट्राफी को शीघ्र चिड़ियाघर के संग्रहालय में आमजन के लिए प्रदर्शित किया जाए। साथ ही इसके साहित्य को चिड़ियाघर की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए। नैनीताल जू में कुणाल की टैक्सीडर्मी ट्राफी के अनावरण के मौके पर निदेशक डा. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क बोरीवली के टैक्सीडर्मिस्ट डा.संतोष गायकवाड़ ने कुणाल की वैज्ञानिक तरीके से हूबहू प्रतिकृति तैयार की है। यह वैज्ञानिक व शैक्षिक अध्ययन के साथ ही जू में आने वाले सैलानियों के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि फरवरी में कुणाल को पूर्व में तैयार स्नो लैर्पड-रानी की टैक्सीडर्मी के साथ स्थापित किए जा रहे संग्रहालय में आमजन के रखा जाएगा। इस दौरान जनपद के दूरस्थ बेतालघाट ब्लाक के राउमावि गरजौली की छात्राओं ने पहली बार किसी चिड़ियाघर की सैर के साथ ही ऐसे ऐतिहासिक क्षणों में उपस्थिति का अनुभव लिया। उन्होंने उपस्थित अतिथियों के स्वागत में गीत भी प्रस्तुत किया। इस मौके पर प्रशिक्षु आईएफएस डा. कोको, जू के चिकित्सक डा. एलके सनवाल, वन क्षेत्राधिकारी प्रकाश जोशी, केसी सुयाल व अतुल भगत के साथ गरजौली के शिक्षक जगदीश चुफाल व जया बाफिला आदि भी मौजूद रहे। संचालन मनोज साह ने किया।

दुनिया का दूसरा टैक्सीडर्मी रूप में संरक्षित साइबेरियन टाइगर बना कुणाल

नैनीताल। मंगलवार को टैक्सीडर्मी के रूप में मरने के बाद भी संरक्षित किया गया कुणाल दुनिया का दूसरा साइबेरियन टाइगर है। डा. धकाते ने बताया कि इससे पूर्व चीन में मार्च-11 में एक साइबेरियन टाइगर की टैक्सीडर्मी बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि दुनिया में टाइगर यानी बाघ की तीन प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है, और केवल पांच बची हैं। चीन व रूस में प्राकृतिक वास स्थल के रूप मैं पाया जाने वाला साइबेरियन टाइगर दुनिया का सबसे बढ़ा बाघ होता है। भारत का रॉयल बंगाल टाइगर दुनिया का आकार के लिहाज  से दूसरा सबसे बढ़ा बाघ है। नैनीताल जू में मौजूद कुणाल दार्जिलिंग जू में 26 अप्रेल 194 को पैदा हुआ था। चूंकि इसकी प्रजाति लुप्राय श्रेणी में है, लिाजा इसका मर के भीदिखते रहना वन्य जीव संरक्षण के लिहांज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

मॉडल चिड़ियाघर बनेगा नैनीताल जू


कस्तूरा मृग विहार का प्रबंधन भी अब नैनीताल जू से होगा, तिब्बती भेड़ियों के प्रजनन का केंद्र भी बनेगा
नैनीताल (एसएनबी)। भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ  प्राणी उद्यान यानी नैनीताल जू को देश के 26 चिड़ियाघरों के साथ मॉडल चिड़ियाघर में तब्दील किया जाएगा। इस बाबत केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने निर्णय ले लिया है। वहीँ अगले 10 वर्षो में छोटे चिड़ियाघर (स्मॉल जू) से मध्यम स्तर के चिड़ियाघर (मीडियम जू) में तब्दील किया जाएगा। इस हेतु जू की भविष्य की 10 वर्षीय योजना का रोड मैप प्रबंधकारिणी समिति की बैठक में प्रस्तुत किया गया। धरमघर बागेश्वर स्थित कस्तूरा मृग अनुसंधान केंद्र, वन्य जंतु ट्रीटमेंट, ट्रांजिट एवं रेस्क्यू सेंटर रानीबाग, हिमालयन बॉटेनिकल गार्डन नारायण नगर व ईको पार्क हनुमानगढ़ी नैनीताल आगे से नैनीताल जू की प्रबंध सोसायटी के  में होंगे। साथ ही नैनीताल जू को तिब्बती भेड़ियों के संरक्षित प्रजनन केंद्र एवं हिमालयी क्षेत्र के पक्षियों के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में स्थापित किया जाएगा। 
सोमवार को नैनीताल जू के प्रमुख सचिव वन एस. रामासामी की अध्यक्षता में आयोजित प्रबंध सोसायटी की बैठक में जू में वन्य जीवों के प्रबंधन एवं रखरखाव में क्षमता विकास व प्रशिक्षण हेतु अन्य संस्थानों व पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार से सहयोग लेने का निर्णय भी लिया गया। जू में सैलानियों को आकषिर्त करने के लिए पर्यटक सीजन में नैनीताल के मुख्य स्थानों पर जू से संबंधित फिल्म शो व जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। जू में अंतरराष्ट्रीय स्तर की पर्यटक सुविधाएं विकसित करने, पर्यटकों के लिए पैकेज टूर विकसित करने का निर्णय भी लिया गया। बैठक में मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं परमजीत सिंह, कपिल जोशी, जू के निदेशक डा. पराग मधुकर धकाते, डीएम निधिमणि त्रिपाठी, एसएसपी डा. सदानन्द दाते, डा. भरत चन्द, विपिन तिवारी, नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश जोशी, दिनेश चंद्र साह, अपर सचिव वन सुशांत पटनायक, सतीश चंद्र उपाध्याय, उमेश तिवारी आदि मौजूद थे।


कर्मचारियों को तोहफा सैलानियों को झटका

नैनीताल। नैनीताल जू के प्रशासनिक ढांचे को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है, साथ ही यहां कार्यरत कार्मिकों के कल्याण के लिए नियम बनाने का निर्णय लिया गया। वहीं जू में आने वाले सैलानियों को बड़ा झटका देते हुए प्राणी उद्यान में प्रवेश की दरों में दो गुना तक की बढ़ोतरी कर दी गई। अब जू में प्रवेश हेतु वयस्कों को 30 की जगह 50 रुपये एवं बच्चों को 10 की जगह 20 रुपये देने होंगे। राहत की बात है कि जू में कैमरे ले जाने का शुल्क समाप्त कर दिया गया है। जू की कैंटीन व नेचर शॉप को आगे पीपीपी मोड से संचालित करने पर भी विचार किया गया। जू में घूमने के लिए बच्चों को प्राम तथा बुजुगरे व विकलांगों के लिए बैट्री चालित वाहन संचालित करने का निर्णय लिया गया।