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बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

देश में अग्रणी है उत्तराखंड का राज्य निर्वाचन आयोग

नैनीताल। मुख्य सूचना आयुक्त नृप सिंह नपलच्याल ने बताया कि उत्तराखंड का राज्य निर्वाचन आयोग देश का अग्रणी आयोग है। आयोग अपने पास आई 93 फीसद द्वितीय अपीलों और 98 फीसद शिकायतों का निस्तारण कर चुका है। राज्य में वर्ष 2005 में आरटीआई शुरू होने के बाद से जनवरी माह तक साढ़े चार लाख से अधिक सूचनाओं के आवेदन आ चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा सूचनाएं राजस्व विभाग से संबंधित तथा इसके बाद विद्यालयी शिक्षा एवं गृह विभाग से संबंधित होती हैं। उन्होंने बताया कि सूचना मिलने में किसी तरह की शिकायत सीधे आयोग को की जा सकती है। शिकायतों पर दोषी को दंडित करने का प्राविधान है। नृप सिंह ने बताया कि सूचना अधिकारियों को सहयोग न करने वाले विभागीय कर्मचारियों के खिलाफ दंडनीय कार्रवाई का प्रावधान है।

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आयोग ने मांगी वीडियो कान्फ्रेंसिंग की सुविधा

नैनीताल। राज्य सूचना आयोग ने सरकार से अपने राज्य कार्यालय में वीडियो कान्फ्रेंसिंग की सुविधा देने की मांग की है, ताकि राज्य की जनता को आयोग के समक्ष अपनी बात रखने के लिए देहरादून के चक्कर न लगाने पड़ें। इस तरह अपने जिला मुख्यालय आकर वह आयोग से संवाद कर पाएं। प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त नृप सिंह नपलच्याल ने बताया कि इस बाबत राज्य सरकार से अनुरोध किया गया है। उन्होंने खुलासा किया कि राज्य की एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली सरकार के दौर से सरकार से राज्य निर्वाचन आयोग की दो पीठें अल्मोड़ा व श्रीनगर में गठित करने की मांग की थीं, पर आज तक सरकार से इस पर अनुमोदन न मिलने के बाद आयोग को यह अनुरोध करना पड़ा है। बुधवार को मुख्यालय स्थित उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में नपलच्याल ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ से वार्ता करते हुए यह खुलासा किया। उन्होंने बताया कि सूचना मांगने वालों को धमकी मिलने संबंधी मामलों के लिए सभी डीएम को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ कार्य करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि आयोग अधिक सूचनाएं मांगे जाने वाले कार्यालयों में सूचना अधिकार के जवाब देने के लिए अलग से पटल स्थापित किए जाने का पक्षधर हैं।

रविवार, 11 जनवरी 2015

'नमामि गंगे' प्रोजेक्ट में शामिल होंगे उत्तराखंड के निकाय


नैनीताल (एसएनबी)। गंगा नदी को साफ करने के राष्ट्रव्यापी ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए उत्तराखंड ने भी प्रयास शुरू कर दिए हैं। प्रदेश के अपर सचिव एवं निदेशक शहरी विकास वी षणमुगम ने कहा है कि हरिद्वार से लेकर गंगा की सहायक नदियों अलकनंदा व भागीरथी के तट पर बसे सभी नगर पालिका व नगर पंचायतों का कूड़ा व सीवर गंगा नदी में न जाने पाए, इसके लिए एक विस्तृत डीपीआई तैयार की जा रही है। बताया कि इस प्रोजेक्ट के तहत सभी संबंधित नगर निकायों में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट और ठोस कूड़ा अपशिष्ट निवारण के प्रबंध किए जाएंगे। उन्होंने नैनीताल में एडीबी के माध्यम से दुर्गापुर के 4.47 लाख रुपये की लागत से 96 आवास बनाए जाने की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हल्द्वानी व नैनीताल में एडीबी द्वारा किए जा रहे अधिकांश कार्य पूर्ण होने की स्थिति में हैं। सितंबर तक सभी कार्य पूर्ण हो जाएंगे। कुछ काम स्वीकृत राशि से भी कम में किए जा रहे हैं। नैनीताल में पेयजल आपूर्ति के लिए जनरेटर लगाने का प्रस्ताव न होने की बात मानते हुए उन्होंने इसके लिए जल संस्थान से वार्ता करने की बात कही।
षणमुगम रविवार (11.01.15) को मुख्यालय में एडीबी सहायतित योजनाओं का मौके पर जाकर जायजा लेने के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने बताया कि नैनीताल में प्रथम फेज के तहत स्वीकृत 39 करोड़ के काम करीब 35 करोड़ में ही पूरे किए जा रहे हैं। चिल्ड्रन पार्क में प्रस्तावित 13 में सात पंपों व एक दो हजार की क्षमता की जगह 2500 एलपीएम आपूत्तर्ि दे रहे टय़ूबवेल ने कार्य करना शुरू कर दिया है। वहीं सूखाताल में 1700 एलपीएम क्षमता के दो टय़ूबवेल व छह पंप सहित पंपिंग स्टेशन बनकर तैयार है। पुराने पंप हाउस में 16 में से 13 पंप लग चुके हैं, वहीं दूसरे फेज के तहत 64 किमी में 47 किमी वितरण लाइन तैयार हो गई है। अब मई और जून माह से 14 हजार घरेलू संयोजनों को जोड़ने का काम शुरू होगा। हल्द्वानी में 20.23 करोड़ की लागत से प्रस्तावित 16 में से नौ ओवरहेड टैंक पूरा होने की स्थिति में हैं और मई तक सभी पूरे हो जाएंगे। 10 किमी मुख्यलाइन में से 8.5 किमी बन चुकी है। इस दौरान डीएससी के टीम लीडर केबी सिंह, पालिका ईओ रोहिताश शर्मा, निर्माण अभियंता जेएस नयाल, प्रोजेक्ट मैनेजर भूपेंद्र कोठारी, संजय कुमार और भूपेश पांगती आदि भी साथ थे। हरिद्वार से अलकनंदा व भागीरथी के तटों पर बसे पहाड़ के सभी नगर पालिका, पंचायतों में कूड़े और सीवर को नदी में न जाने देने के लिए होंगे प्रबं ध नैनीताल-हल्द्वानी में एडीबी के अधिकतर कार्य पूर्ण होने की स्थिति में नैनीताल : रविवार को मल्लीताल चिल्ड्रन पार्क पंप हाउस का जायजा लेते अपर सचिव एवं निदेशक शहरी विकास वी षणमुगम।

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

प्रधान पतियों के ठेंगे पर सरकारी फरमान


महिला जनप्रतिनिधियों ने कहा लगातार हों पंचायतों, बीडीसी की बैठकें, मिले मानदेय
नैनीताल (एसएनबी)। महिला जनप्रतिनिधियों ने बताया कि अब सरकारी फरमान के बाद पंचायतों एवं बीडीसी बैठकों में प्रधानपतियों का बैठकों में तो प्रवेश रुक गया है, लेकिन अब भी वह अधिकारियों के साथ बैठकों के बाहर से साठगांठ जारी रखे हुए हैं। जनप्रतिनिधियों का कहना है कि विभागों में अधिकांश अधिकारी पुरु ष हैं, जो विकास कायरे में भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी के बारे में महिला जनप्रतिनिधियों से बातें नहीं कर पाते, लेकिन उनके पतियों के माध्यम से अपनी कारगुजारियां जारी रखे हुए हैं। उन्होंने इस पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत जताई है तथा बीडीसी एवं ग्राम पंचायत आदि की बैठकें नियमित अंतराल पर आयोजित किए जाने को जरूरी बताया है, ताकि वह भी कुछ सीख सकें तथा विकास कायरे को गति दे सकें। इसके अलावा उन्होंने सम्मानजनक मानदेय दिये जाने की भी जरूरत जताई है।तल्लीताल धर्मशाला में सरल संस्था के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में ग्राम प्रधान, उप प्रधान एवं गांवों की वार्ड सदस्य आदि महिला जनप्रतिनिधि पत्रकारों से अपनी समस्याओं पर बात की।उनका कहना था कि अनेक ग्राम प्रधान अधिक सक्रिय नहीं हैं, जबकि अन्य उप प्रधानों एवं वार्ड सदस्यों को टीम के रूप में साथ लेकर नहीं चलते, तथा उन्हें योजनाओं व बजट आदि की जानकारी नहीं देते हैं। निर्वाचित होने के छह माह हो गए हैं, लेकिन अब तक एक भी बैठक नहीं हुई है। ऐसे में एक ओर उन पर उन्हें चुनने वाली जनता का विकास कायरे को लेकर दबाव होता है, वहीं वह कहीं अपनी बात नहीं रख पाते। कार्यशाला में सरल संस्था की प्रमुख हेमा कबडवाल, भगवती सुयाल, नीतू राजपूत, शोभा देवी, ममता कुल्याल, नीमा देवी, रजनी देवी, राजकुमारी, जयंती ढैला, रत्ना पंत, जया रावत, चंपा मेलकानी, सरिता कार्की, गंगा टम्टा, हेमा नेगी आदि मौजूद रहीं। 

सोमवार, 22 सितंबर 2014

उत्तराखंड की नौकरशाही का भगवान ही मालिक : किशोर उपाध्याय

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा, अमित शाह नहीं संभाल सकते पूरा देश
कहा, गुजरात के तड़ीपार हैं अमित शाह गैरसैंण में राज्य की राजधानी बनाने का किया समर्थन, राज्य सरकार से वहां पार्टी कार्यालय के लिए जमीन भी मांगी
नैनीताल (एसएनबी)। अपनी ताजपोशी के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का पहली बार सरोवरनगरी आगमन अनेक विवादों को जन्म दे सकता है। यहां उन्होंने जहां कई विवादास्पद टिप्पणियां कीं। वहीं उनके स्वागत में जिस तरह बाहर से आये कार्यकर्ताओं ने अपने नाम के होर्डिग लेकर मुंह दिखाई का प्रदर्शन किया, वह भी अभूतपूर्व रहा। 
नैनीताल क्लब में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक के उपरांत मीडियाकर्मियों से बातचीत में उपाध्याय ने पहली टिप्पणी प्रदेश की नौकरशाही को लेकर की। उन्होंने कहा कि प्रदेश की नौकरशाही का भगवान ही मालिक है। राज्य इन अधिक पढ़-लिखकर आ गए लोगों के लिए नहीं बना है। उन्होंने प्रदेश के सीएम से इन पर लगाम लगाने के लिए कहा। राज्य की राजधानी के मसले पर किशोर ने कहा कि कांग्रेस पार्टी गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के पक्ष में है। पार्टी ने राज्य सरकार से गैरसैंण में अपने प्रदेश मुख्यालय के लिए जमीन दिलाने का आवेदन भी कर दिया है। केदारनाथ में राज्य सरकार द्वारा गौरीकुंड तक सड़क तैयार कर लिए जाने व सब कुछ बेहतर होने का दावा करते हुए किशोर ने 2013 की केदारनाथ आपदा से पूरे प्रदेश को प्रभावित बताने के लिए मीडिया को दोषी ठहराया। उनके शब्द थे, ‘इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया ने केदारनाथ की आपदा को इस तरह दिखाया कि पूरे प्रदेश का पर्यटन प्रभावित हो गया, जबकि आपदा केवल सीमित क्षेत्र में आयी थी।’ पत्रकारों द्वारा यह याद दिलाने पर कि तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने यात्रियों-सैलानियों से प्रदेश में न आने का बयान दिया था, किशोर बगलें झांकते नजर आए। बमुश्किल बोले, यदि ऐसा था तो गलत था। सत्तापक्ष के विधायकों द्वारा राज्य सरकार की खिंचाई किये जाने के प्रश्न पर किशोर ने कहा कि अपने हितों को जनता के हितों का नाम देकर पेश करना गलत है। सदन में मर्यादित तरीके से ही अपनी बात उठाई जानी चाहिए। उन्होंने एक बार फिर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लेकर अपनी टिप्पणी दोहराई। कहा, ‘अमित शाह अपने प्रदेश गुजरात से बाहर किए गए ‘तड़ीपार’ हैं। ऐसा व्यक्ति देश को कैसे संभाल सकता है। संभवतया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई मजबूरी है, जो वह शाह को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं।’

सीएम को स्वस्थ होने के लिए दिया जाना चाहिए समय

नैनीताल। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय राज्य में अवरुद्ध विकास कायरे के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराते रहे, लेकिन जब वह प्रदेश सरकार के कायरे के सवालों पर घिरे तो बोले, ‘मुख्यमंत्री हरीश रावत घायल हैं, उन्हें स्वस्थ होने का समय दिया जाना चाहिए। हम सभी देवभूमि के वासी हैं, हमें ऐसे संवेदनशील मामलों में बड़ा दिल रखना चाहिए।’

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

उत्तराखंड से पहले मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत

नैनीताल (एसएनबी)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बाद मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनाए गए हैं। इस तरह वह यह दोनों उपलब्धियां हासिल करने वाले उत्तराखंड राज्य के पहले व्यक्ति भी बन गए हैं।
गत वर्ष 18 सितंबर को राष्ट्रपति की स्वीकृति पर न्याय विभाग के संयुक्त सचिव प्रवीण गर्ग की ओर से उन्हें मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति का नोटिफिकेशन उत्तराखंड उच्च न्यायालय में मिला था। इसके बाद वह दिल्ली रवाना हो गए। न्यायमूर्ति पंत उत्तराखंड के पहले निवासी हैं जो किसी प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश बने और अब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीष पद पर उनकी नियुक्ति हुई है। उनसे पूर्व न्यायमूर्ति बीसी कांडपाल को ही उत्तराखंड हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहने का गौरव प्राप्त हुआ था, जबकि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वर्तमान कार्यकारी न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीके बिष्ट भी उत्तराखंड के ही हैं।
मेघालय का मुख्य न्यायाधीष बनने पर उन्होंने अपनी उपलब्धि का श्रेय बड़े भाई चंद्रशेखर पंत को दिया था। इस मौके पर ष्राष्ट्रीय सहाराष् से बातचीत में न्यायमूर्ति पंत ने कहा कि वह ईमानदारी और निडरता से कार्य करने वाले न्यायाधीशों को ही सफल मानते हैं। पदोन्नति के बजाय मनुष्य के रूप में सफलता ही एक न्यायाधीश और उनकी सफलता है। आज भी वह 1976 में नैनीताल के एटीआई में न्यायिक सेवा शुरू करने के दौरान प्रशिक्षण में मिले उस पाठ को याद रखते हैं, जिसमें कहा गया था कि एक न्यायिक अधिकारी को ‘हिंदू विधवा स्त्री’ की तरह रहते हुए समाज से जुड़ाव नहीं रखना चाहिए। इससे न्याय प्रभावित हो सकता है।

बुधवार, 25 जून 2014

हालात के लिए पीएम या सीएम नहीं जनता जिम्मेदार : कुंजवाल



कहा, आजादी के बाद न देश के हालात बदले और न ही राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के
नैनीताल (एसएनबी)। अपने बेलाग बोलों के लिए प्रसिद्ध प्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने दो टूक कहा कि आजादी के बाद न देश में हालात बदले और ना ही अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में। आजादी के बाद भी देश में अंग्रेजी दौर की और उत्तराखंड में यूपी के दौर की पुरानी व्यवस्था ही कमोबेश लागू रही। उन्होंने मौजूदा बुरे हालातों के लिए राजनीतिज्ञों की जगह जनता को ही अधिक जिम्मेदार बताया। कहा, ‘कोई भी पीएम या सीएम नहीं वरन मतदाता दोषी हैं।’
कुंजवाल बुधवार को कुमाऊं विवि के यूजीसी अकादमिक स्टाफ कालेज में ‘इकानामिक्स, पालिटिक्स एंड सिविल सोसायटी’ विषयक कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जनता अच्छे प्रत्याशियों को वोट नहीं देती और चुनाव में धन व बाहुबल प्रदर्शित करने वाले प्रत्याशियों को पल्रोभन में आकर वोट देती है। ऐसे में सभी प्रत्याशियों को चुनाव में काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। उन्होंने कहा, जो प्रत्याशी दो करोड़ रपए खर्च कर विधायक बनेगा, उससे ईमानदारी से कार्य करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। बोले, देश में अच्छे से अच्छा नियम-कानून बनता है तो उसे भी तोड़ने के रास्ते निकाल लिए जाते हैं। आरटीआई और मनरेगा को बहुत अच्छे प्राविधान बताने के साथ ही उन्होंने स्वीकारा कि आज सर्वाधिक भ्रष्टाचार इन्हीं के द्वारा हो रहा है। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों की भी कार्य को पूरा समय न देने, मोटी तनख्वाह पर हाथ न लगाकर ऊपरी कमाई से ही परिवार चलाने की परिपाटी बनने जैसे मुद्दों को भी छुआ।

गुरुवार, 1 मई 2014

हिमालयी राज्यों के लिए बने सतत विकास की नीति

संसद में हिमालय को लेकर कभी गंभीरता से नहीं हुई चर्चा, राजनीतिक दल हिमालय पर करें मंथन जलवायु परिवर्तन होने के दुष्प्रभावों पर भी राजनीतिक दल हों गंभीर हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण करने की अत्यंत आवश्यकता
हिमालय को वाटर टावर ऑफ एशिया कहा जाता है। भारत में उत्तराखंड सहित 12 राज्य हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। भारत की 60 करोड़ आबादी हिमालय से सीधे या परोक्ष तौर पर प्रभावित होती है, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों का दुर्भाग्य है कि देश के 16 फीसद भूभाग में फैले होने के बावजूद यहां देश की केवल चार फीसद जनसंख्या ही वास करती है। शायद इसीलिए हिमालयी क्षेत्र देश और राजनीतिक दलों के एजंेडे में कभी प्रमुखता नहीं रहा है। देश की संसद में 50 यानी करीब 10 फीसद सांसद हिमालयी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अफसोस कि कभी भी हिमालय के बारे में बात संसद में उस गंभीरता के साथ नहीं रखी गई और न ही वहां अपेक्षित आयामों पर बहस ही हुई। 
वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने ‘जलवायु परिवर्तनों के दुष्प्रभावों से निपटने’ के लिए जो आठ ‘मिशन’ योजनाएं बनाई थीं, उनमें ‘नेशनल मिशन आफ सस्टेनिंग हिमालयन ईको सिस्टम’ यानी हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास की राष्ट्रीय योजना भी शामिल है। अल्मोड़ा जनपद के कोसी में स्थित गोविंद बल्लभ पंत हिमालयन पर्यावरण विकास संस्थान कोसी-कटारमल ने इस मिशन के तहत काफी कार्य किया। हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास के लिए शासन नाम से गाइडलाइन तैयार की गई। इसमें बताया गया कि किस तरह विकास और पर्यावरण को एक-दूसरे का पूरक बनाया जाए। हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता का संरक्षण कैसे किया जाए, किस मात्रा में हिमालयी क्षेत्र से जड़ी-बूटियों व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाए, और कैसे उनका संरक्षण किया जाए। साथ ही कैसे हिमालय की जैव विविधता, उसकी खूबसूरती, खनिजों, जल, जंगल, जमीन और अन्य आयामों को बिना नुकसान पहुंचाए यहां के निवासियों की आजीविका से भी जोड़ा जाए। इन गाइड लाइन में ‘ग्रीन रोड’ यानी ऐसी सड़कें बनाने की बात कही गई है जो प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण करते हुए व उसे बिना छेड़े हुए बनाई जा सकती हैं। साथ ही सामान्यतया कहा जाता है कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के साथ नहीं चल सकते। यदि आज की तरह का विकास होगा, तो उससे निश्चित ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, और यदि पर्यावरण का ही संरक्षण किया जाएगा, तो इससे विकास वाधित होगा। लेकिन विकास मनुष्य की आवश्यकता है, इसलिए विकास जरूरी है और हमें ‘पर्यावरण सम्मत’ विकास की बात करनी होगी। विकास के वैकल्पिक उपाय, जैसे सड़कों के स्थान पर रोप-वे, परंपरागत ऊर्जा के साधनों के स्थान पर सौर व वायु ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा के साधन, वष्ा जल संग्रहण, सिंचाई के लिए स्प्रिंकुलर विधि आदि का प्रयोग करना होगा। हिमालयी क्षेत्र इतना बृहद है। खासकर पूरे भारत वर्ष को हिमालय प्रभावित करता है, इसलिए हिमालय के बारे में देश को अलग से सोचना पड़ेगा। हिमालय के लिए सतत विकास की अलग नीति बनानी होगी। इस मुद्दे को राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए। (नवीन जोशी से बातचीत पर आधारित)

शनिवार, 11 जनवरी 2014

जलौनी लकड़ी लेने के लिए भी दिखाना होगा पैन कार्ड

कोयला-केरोसिन है नहीं अब लकड़ी को भी तरसे
प्रदेश में पड़ रही कड़ाके की सर्दी से लोग बेहाल
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में पड़ रही कड़ाके की सर्दी में प्रदेशवासियों के पास गर्मी लाने का कोई प्रबंध नहीं रह गया है। प्रदेश में राशन कार्ड पर सस्ती कुकाठ की जलौनी लकड़ी देने की व्यवस्था के तहत भी लकड़ी नहीं मिल पा रही है। अधिकारियों का कहना है कि लकड़ी उपलब्ध नहीं है। उल्लेखनीय है कि पूरे कुमाऊं मंडल में इस मौसम में कोयला उपलब्ध नहीं है। केरोसिन भी किसी दाम पर उपलब्ध नहीं है। उधर यदि कोई महंगी दरों पर बांज की जलौनी लकड़ी चाहता है तो उसे अपना पैन कार्ड दिखाना होगा। पैन कार्ड दिखाने पर उसे 2.64 फीसद का आयकर देना होगा, लेकिन यदि पैन कार्ड न हो तो 20 फीसद आयकर के रूप में अतिरिक्त चुकाना होगा। वन निगम के अनुसार बांज की जलौनी लकड़ी के मूल भाव 470 रुपये प्रति कुंतल के हैं। इस पर 2.5 फीसद मंडी शुल्क व पांच फीसद वैट के साथ ही पैन कार्ड दिखाने पर 2.64 फीसद और न दिखाने पर 20 फीसद आयकर देने का प्रावधान है। इस प्रकार पैन कार्ड दिखाने पर एक कुंतल बांज की लकड़ी 525 के भाव और पैनकार्ड न दिखाने पर 613 रुपये के भाव पर मिल रही है। वन निगम के उप लौगिंग अधिकारी आनंद कुमार ने बताया कि राशन कार्ड पर 300 रुपये प्रति कुंतल के भाव मिलने वाली कुकाठ की जलौनी लकड़ी पूरे प्रदेश में उपलब्ध नहीं है। केवल शवदाह के लिए ही उपलब्ध कराई जा रही है।

बर्फबारी ने सप्ताहांत पर किया सैलानियों का स्वागत


नगर क्षेत्र में हुई मौसम की पहली बर्फबारी, पारा 0.5 डिग्री तक गिरा
नैनीताल (एसएनबी)। शनिवार को सरोवरनगरी के निचले क्षेत्रों को भी बर्फबारी का तोहफा मिल गया। इस मौके पर नगर में मौजूद सैलानियों के लिए कुदरत की यह खूबसूरत नेमत मनमांगी मुराद की तरह रही। अनेक सैलानियों ने इसे ‘न्यू इयर व वीकेंड बोनान्जा’ कहकर पुकारा। मौसम विभाग के अनुसार शनिवार को नगर का न्यूनतम तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया और अधिकतम तापमान 13 डिग्री रहा। सरोवरनगरी में पहले 31 दिसम्बर को ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी हुई थी। शनिवार की सुबह तड़के नगर के तल्लीताल और माल रोड तक भी अच्छी बर्फबारी हुई। वहीं नगर के सूखाताल, कुमाऊं विवि, चार्टन लॉज, सात नम्बर, रैमजे, स्टोनले कंपाउंड आदि क्षेत्रों में बर्फबारी हुई। नगर में सैलानियों ने कालाढुंगी रोड पर धामपुर बैंड, लेक व्यू, हिमालय दर्शन व स्नोव्यू क्षेत्रों में जमकर बर्फबारी का आनंद लिया। स्नोव्यू क्षेत्र में बर्फबारी का आनंद लेने के लिए रोप-वे से जाने के लिए सैलानियों की कतारें लगा रहीं। वहीं शनिवार को बर्फबारी के बाद भी नगर में पूरे दिन आसमान में बादल छाये रहे और कई बार हवा के साथ हिमकणों की फुहारें गिरती रहीं लेकिन सूर्यास्त के दौरान धूप के दर्शन हुए। जिसे अगले दिन धूप खिलने का इशारा माना जाता है। मौसम विभाग ने रविवार को मौसम खुलने और अगले दो दिन बारिश और बर्फबारी की संभावना जताई है।

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

दवाओं के लिए दो करोड़ होने के बावजूद मरने के लिए छोड़ दिए पशु


नौ माह बीते, निदेशालय नहीं कर सका फैसला, कहां से खरीदें दवाएं, दो करोड़ रुपये डम्प
नवीन जोशी नैनीताल। राज्य के सरकारी पशु चिकित्सालयों में दवाइयां नहीं हैं। पशुपालन विभाग ने पिछले नौ माह की अवधि में पशुओं के लिए एक रुपये की दवाइयों की खरीद नहीं की है। पशुओं की दवाई के लिए दो करोड़ रुपये की राशि निदेशालय में डम्प पड़ी है। पशुओं के लिए दवाइयों की खरीद न होने के पीछे निदेशालय स्तर पर हीलाहवाली होना है। निदेशालय पिछले नौ महीनों में यह तय ही नहीं कर सका है कि दवाएं खरीद कहां से की जाएं। निदेशालय की इस कोताही पर कुमाऊं के सभी छह जिलाधिकारियों ने मंडलायुक्त के समक्ष खुलकर नाराजगी व्यक्त की है। कुमाऊं मंडल में वर्तमान वित्त वर्ष में जून व सितम्बर माह में दो किस्तों में पशुओं की दवाइयों की खरीद के लिए नैनीताल जिले को 54.11 लाख, ऊधमसिंह नगर को 34.45 लाख, अल्मोड़ा को 34.61 लाख, बागेश्वर को 48.12 लाख, पिथौरागढ़ को 38.91 लाख व चंपावत को 14.69 लाख रपए मिलाकर कुल 224.89 लाख रपए स्वीकृत हुए थे। इसके बावजूद अपनी जरूरत के अनुसार खर्च कर जरूरी दवाइयां की खरीद नहीं कर पा रहे हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार इस धनराशि से दवाइयां किस कंपनी से खरीदी जाएं, इस पर निदेशक स्तर से निर्णय होना था। यह निर्णय अब तक नही हो सका है। इस कारण अब तक जिले दवाइयां खरीदने के लिए निदेशालय का मुंह ताक रहे हैं, जबकि इस दौरान मंडल में ही सैकड़ों घरेलू पशु आपदा के दौरान व बीमारियों से काल- कवलित हुए हैं। बमुश्किल बहुत जरूरी होने पर नैनीताल जिले ने पहल करते हुए डीएम से अनुमति लेकर 10.28 लाख, ऊधमसिंह नगर के 2.52 लाख, अल्मोड़ा ने 8.85 लाख, बागेश्वर ने 4.92 लाख, पिथौरागढ़ ने 7.05 लाख व चंपावत ने 58 हजार यानी कुल मिलाकर 33.3 लाख रुपयों से स्थानीय बाजार से दवाइयां खरीदीं, बावजूद विभाग के पास करीब दो करोड़ रपए की धनराशि डंप पड़ी है। कुमाऊं आयुक्त अवनेंद्र सिंह नयाल ने गत दिवस मंडलीय समीक्षा बैठक में मामला प्रमुखता से उठने के बाद पिछले यानी वर्ष 2012-13 की स्वीकृत दरों से इस वर्ष भी उपकरणों व दवाइयों की खरीद करने की संस्तुति की है। इस बाबत अपर निदेशक पशुपालन डा. बी चंद ने निदेशक को पत्र लिखकर इस बाबत अनुमति मांगी है।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

नैना पीक तक पहुंची बिजली

मैदानों में कोहरा, पहाड़ों पर खिली धूप: शुक्रवार से जहां तराई-भाबर के मैदानी क्षेत्रों में पूरे दिन घना कोहरा छाने से कड़ाके की ठंड रही, इसके उलट सरोवरनगरी सहित पहाड़ों पर आसमान में बादलों का एक कतरा भी नहीं था, और यहां पूरे दिन चटख धूप खिली रही।
चित्र : नवीन जोशी

नैना पीक तक जाने वाला तीन किमी मार्ग भी स्ट्रीट लाइट से जगमगाएगा
नैना पीक स्थित वन विभाग का रिपीटर सेंटर 
नैनीताल (एसएनबी)। रात में नैना पीक जाकर सरोवरनगरी की खूबसूरती को निहारने के शौकीन पर्यटकों के लिए खुशखबरी है। नैना पीक तक बिजली पहुंच गई है। इससे वहां वन विभाग के रिपीटर सेंटर के कक्ष में बिजली के बल्ब जलने लगे हैं। जल्द ही रिपीटर सेंटर के वायरलैस व अन्य उपकरणों को बिजली से जोड़ने की तैयारी चल रही है तथा भविष्य में बिजली से किलबनी रोड स्थित नैना चुंगी से नैना पीक जाने वाले करीब तीन किमी मार्ग को स्ट्रीट लाइट से जगमगाने की योजना भी है। इससे रात में भी सैलानी सुरक्षित तरीके से नैना पीक तक आवाजाही कर सकेंगे। नैना पीक सरोवरनगरी का सर्वाधिक ऊंचाई वाला 2611 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से नैनीताल नगर के साथ ही तराई-भाबर के सैकड़ों किमी दूर के स्थानों और हिमालय पर्वत की 365 किमी से अधिक लंबाई में बदरीनाथ-केदारनाथ से लेकर नेपाल की एपी श्रृंखला की चोटियों के नजारे लिये जा सकते हैं। कई मौकों पर सैलानी व साहसिक पर्यटन के शौकीन रात्रि में बिजली की रोशनी से जगमगाते नैनीताल तथा दूर-दूर के पहाड़ों और मैदानों के नजारे लेने व फोटो खींचने के लिए यहां आते हैं। घना जंगल होने की वजह से यहां रात्रि में वन्य जीवों के हमले का खतरा रहता है। बिजली की रोशनी हो जाने से भविष्य में इस स्थान का आवागमन बेहद सुविधाजनक हो सकता है। इस स्थान पर वन विभाग का प्रदेश के गिने-चुने रिपीटर सेंटरों में से एक स्थित है, जिसकी मदद से पूरे कुमाऊं तथा आंशिक रूप से गढ़वाल में भी लीसे के इधर-उधर संचरण, वनाग्नि की घटनाओं आदि पर वायरलेस की मदद से नजर रखी जाती है। वन क्षेत्राधिकारी प्रकाश जोशी ने बताया कि इसी के लिए बिजली नैना पीक पर पहुंचाई गई है, जल्द ही कार्यदायी संस्था रिपीटर सेंटर के उपकरणों को विद्युत आपूर्ति से जोड़ने जा रही है। वहीं विद्युत विभाग के अधिशासी अभियंता शेखर त्रिपाठी ने बताया कि बिजली की लाइन नैना पीक जाने वाले पैदल मार्ग से ही होकर गुजारी गई है। शीघ्र ही इस पर स्ट्रीट लाइट लगाने की भी योजना है। 

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

नैनीताल में क्या गुल खिलायेगी बचदा और बलराज की दोस्ती !

नैनीताल। एकता संदेश यात्रा के जरिए जहां एक ओर सरदार पटेल के माध्यम से भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के पक्ष में राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, वहीं यात्रा में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के दो स्वघोषित दावेदार बची सिंह रावत ‘बचदा’ और बलराज पासी के एक साथ अगल-बगल खड़े होने के भी राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि दोनों एक- साथ खड़े होकर पार्टी पर टिकट के लिए दबाव बनाना चाहते हैं। साथ ही अन्य दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को अलग-थलग करने और एक-दूसरे के नाम पर सहमत होने का सन्देश भी दे रहे थे। 

पटेल पीएम बनते तो न होता बंटवारा: बचदा

नैनीताल पहुंचकर हुआ एकता संदेश यात्रा का समापन
नैनीताल (एसएनबी)। भाजपा के वरिष्ठ नेता बची सिंह रावत ‘बचदा’ ने कहा कि सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से ही देश एकसूत्र में बांधा था, बावजूद इसके राजनीतिक कारणों से उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। उनका कहना है कि पटेल को प्रधानमंत्री बनाया होता तो देश का बंटवारा न होता। रावत सोमवार को 20 दिसंबर से शुरू हुई एकता संदेश यात्रा के आखिरी पड़ाव नैनीताल पहुंचकर पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के आह्वान पर शुरू हुई इस यात्रा के जरिए देश को एकसूत्र में पिरोने की कोशिश की जा रही है। पूर्व सांसद बलराज पासी ने सरदार पटेल का जीवन वृत्त प्रस्तुत किया। इससे पूर्व नगर में यात्रा के पहुंचने पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने यात्रा का भव्य तरीके एवं गर्मजोशी से स्वागत किया। जिलाध्यक्ष देवेंद्र ढैला, नगर अध्यक्ष विवेक साह, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य खीमा शर्मा, संयोजक रेनू अधिकारी व कुंदन बिष्ट आदि यात्रा रथ पर ही सवार हो गए। पूर्व अध्यक्ष भुवन हरबोला, जगदीश बवाड़ी, सीपी धूसिया, आनंद बिष्ट, मीनू बुधलाकोटी व संतोष साह सहित बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता भी स्वागत में शामिल हुए। 

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

आपदा के मानसिक व सामाजिक प्रभावों का होगा अध्ययन

देश की सर्वोच्च समाज वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद एक करोड़ रुपये से शुरू कराएगी परियोजनाएं
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड में विगत जून में आई भीषण आपदा में जन-धन के नुकसान की अलग-अलग स्तरों से हो रही भरपाई से इतर आपदा से प्रभावित मानव मन एवं समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। देश का सामाजिक विज्ञान क्षेत्र में अध्ययन कराने वाली शीर्ष संस्था भारतीय सामाजिक अनुसंधान एवं शैक्षिक परिषद (आईसीएसएसआर) इस क्षेत्र में करीब एक करोड़ रपए की लागत की परियोजनाएं शुरू करने जा रहा है। इन परियोजनाओं के लिए आईसीएसएसआर ने प्रस्ताव आमंत्रित किए थे, जिनका मूल्यांकन हो चुका है। प्रदेश में आई आपदा के बाद अनेक प्रभावितों के मानसिक संतुलन खोने की खबरें समाने आई हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है प्रभावितों के पुनर्वास में केवल नष्ट हुई जमीनें देना, घर बना देना या सड़क-बिजली-पानी जैसी ढांचागत सुविधाएं बहाल कर देना ही पर्याप्त नहीं होता। प्रभावित लोगों को अन्यत्र बसाने में उनके अपनी मूल मिट्टी से जुड़े सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों- परिवेश पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है, लिहाजा अपने प्रियजनों और मूल गांवों को खो चुके प्रभावितों के मानसिक पुनर्वास की भी जरूरत महसूस की जाती है। आईसीएसएसआर के निदेशक व पिथौरागढ़ जनपद के मूल निवासी डा. जीएस सौन ने बताया कि आपदा से प्रभावितों पर मानसिक व सामाजिक स्तर पर पड़े प्रभाव तथा उन्हें अब तक मिली आपदा राहत व मदद के प्रभावों का अध्ययन जैसे विषयों का न केवल एक बार वरन एक, दो एवं तीन वर्षो के अंतराल पर अध्ययन कराने के प्रस्ताव मांगे गए हैं। इन प्रस्तावों पर कुमाऊं व गढ़वाल विवि के साथ ही महाविद्यालयों एवं शोध संस्थानों के माध्यम से 15-20 लाख रपए की चार-पांच बड़ी परियोजनाएं कुछ दिनों के भीतर ही स्वीकृत होने की उम्मीद है। इससे प्रभावितों पर आपदा से पड़े सामाजिक प्रभावों का वैज्ञानिक तरीके से विस्तृत अध्ययन किया जाएगा।

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

मोदी की रैली पर शादियों के लग्न भारी !

शादियों की वजह से रैली के लिए गाड़ियां मिलने में हो रही परेशानी, पर भाजपाइयों में दिख रहा भारी जोश
नवीन जोशी नैनीताल। 15 दिसम्बर को दून में हो रही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की रैली की राह को इस दौरान और खासकर रैली के दिन तक ही उपलब्ध शादियों के लग्न प्रभावित कर रहे हैं। चूंकि शादियों के लग्न 14 तक ही हैं और इधर मौसम भी अधिक सर्द नहीं हुआ है। इस दौरान जनता के साथ ही अनेक भाजपा कार्यकर्ता भी अपने निकटस्थों की शादियों में आमंत्रित और व्यस्त हैं। शादियों के लिए पहले से ही बुक होने की वजह से भाजपाइयों को रैली में जाने के लिए बसें ठीक से उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं लेकिन शायद मोदी को देखने और सुनने का उत्साह ही है कि ऐसी स्थितियों के बावजूद भाजपाई रैली में हर हाल में जाने की बात कह रहे हैं। 
मंडल व जिला मुख्यालय में जहां एक ओर भाजपा कार्यकर्ताओं में मोदी की रैली के प्रति जोश दिख रहा है, वहीं वह प्रदेश हाईकमान द्वारा रैली के लिए दिए गए लक्ष्यों को लेकर परेशान हैं। इसका कारण यह है कि करीब एक हजार कार्यकर्ताओं को देहरादून ले जाना है। इनमें से अन्य लोग तो अपने प्रबंधों से दून चले जाएंगे लेकिन संगठन को करीब डेढ़ सौ कार्यकर्ताओं को दून ले जाने की व्यवस्था करने को कहा गया है। इस हेतु कम से कम पांच बसों की आवश्यकता है। बसों की व्यवस्था में जुटे एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि आम तौर पर नैनीताल से दून के लिए 18 हजार रुपये में बसें मिल जाती हैं लेकिन इधर शादियों में व्यस्त होने के कारण 25 हजार रुपये से कम में बसें नहीं मिल पा रही हैं। हालांकि ऐसे कार्यकर्ता भी मिले। जिन्होंने कहा कि बसें मिले चाहे न मिलें, भले ट्रकों में लटककर जाना पड़े लेकिन दून जरूर जाएंगे। क्योंकि मोदी के रूप में भाजपा को सत्ता में लौटाने का जो मौका मिला है, उसे चूकेंगे नहीं। इस बारे में भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश पंत ने भी स्वीकारा कि शादियों की वजह से शंखनाद रैली के प्रबंधों में दिक्कत तो आ रही है लेकिन कार्यकर्ताओं का जोश देखते हुए रैली में भीड़ जुटाने में कोई कठिनाई नहीं है।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

पुलिसकर्मी भी नहीं जाना चाहते पहाड़

डीजीपी ने अपने कार्यकाल को संतोषजनक बताया पर कार्यकाल छोटा रहने का अफसोस भी 
नैनीताल(एसएनबी)। दो दिन बाद सेवानिवृत्त हो रहे पुलिस महानिदेशक सत्यव्रत बंसल ने अपने कार्यकाल को संतोषजनक बताया है। अलबत्ता अपना यह दर्द जुबां पर लाने से स्वयं को रोक नहीं पाए कि उनका कार्यकाल बहुत छोटा एक वर्ष का ही रहा, जबकि अधिनियम में भी दो वर्ष के न्यूनतम कार्यकाल का जिक्र है। एक वर्ष किसी जिम्मेदारी को समझने में ही लग जाता है। डीजीपी ने कहा कि 839 पुलिसकर्मियों की भर्ती शीघ्र की जाएगी। उन्होंने यह कहने में गुरेज नहीं किया कि पुलिसकर्मी पहाड़ी जनपदों में जाने से बचते हैं। 
शुक्रवार को डीआईजी कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में अपने कार्यकाल में आई चुनौतियों के सफलतापूर्वक निर्वहन और कानून-व्यवस्था, पुलिस के आधुनिकीकरण और सीसीटीएनएस को आगे बढ़ाने की सफलताएं गिनाते हुए उन्होंने माना कि 1200 से अधिक पुलिसकर्मियों की कमी और अन्य व्यवस्थाओं की वजह से कम्युनिटी पुलिसिंग को यथोचित जारी नहीं रख पाए। उन्होंने बताया कि सरकार ने 839 पुलिस कर्मियों की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। इन कर्मियों की नियुक्ति जल्द होगी। इसके बाद व्यवस्थाएं बेहतर होने की उम्मीद है। डीजीपी सत्यव्रत बंसल ने दावा किया कि उनके एक वर्ष के कार्यकाल के दौरान अपराधों को दर्ज करने के साथ ही विवेचना और पैरवी के स्तर पर सुधार हुए और अपराध नियंतण्रमें रहे। वह स्वयं बड़े अपराधों की मॉनीटरिंग करते थे। इस दौरान राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति की प्रदेश यात्रा, केदारनाथ में तबाही और इस दौरान 628 शवों को खोज निकालने, उनके डीएनए नमूने लेने और उनका अंतिम संस्कार करने जैसे कायरे में पुलिस ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने कुमाऊं मंडल के पुलिस अधिकारियों की बैठक भी ली। इस मौके पर डीआईजी जीएन गोस्वामी, एसएसपी डा. सदानंद दाते सहित मंडल भर के पुलिस कर्मी मौजूद थे। पूर्व में पुलिसकर्मियों द्वारा ट्रांसफर में राजनीतिक हस्तक्षेप संबंधी बयान देने वाले डीजीपी सत्यव्रत बंसल ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधिकांश पुलिसकर्मी प्रदेश के चार मैदानी जिलों को छोड़कर शेष नौ पहाड़ी जिलों में नहीं जाना चाहते। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने प्रदेश की दो डीआईजी रेंजों को समाप्त करने को प्रदेश सरकार का निर्णय बताया। इसके साथ ही माना कि छोटी इकाइयों में बेहतर पर्यवेक्षण हो पाता था। अवैध खनन के मामले में उन्होंने कहा कि खनन रोकना अकेले पुलिस विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, वरन वह संबंधित विभागों की कार्रवाई में सहयोग के लिए तैयार है। कश्मीर में आतंकी घटनाओं के संदर्भ में उन्होंने थाने- कोतवालियों को भी आंख-कान खुले रखने की नसीहत दी। देहरादून के चर्चित गोलीकांड में उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल के बयान के बाद विधायक प्रणव सिंह चैंपियन के नाम पर कोई संदेह नहीं बचा है और केस डायरी में उनका नाम आ गया है, जो मुकदमे में भी शामिल कर लिया जाएगा।

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

आपदा के कारण आबादी क्षेत्रों में बढ़ रहे गुलदार !


बाघों की घटती संख्या भी है बड़ा कारण : हरीश धामी
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में हालिया दिनों में गुलदारों के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में आने, आदमखोर बनकर मानव-वन्य जीव संघर्ष बढ़ाने के पीछे प्रदेश में गत दिनों आई आपदा बड़ा कारण है, जबकि देश में बाघों की लगातार घटती संख्या प्रमुख कारण है। यह मानना है नैनीताल जनपद को पांच दिनों के अंदर दो आदमखोर गुलदारों से निराभय करने वाले शिकारी, क्षेत्र पंचायत सदस्य हरीश धामी का। गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही रामनगर में आदमखोर को केवल एक गोली से 40 मीटर की दूरी से मारकर ढेर करने वाले धामी का मानना है कि मानव के जीवन के दुश्मन बनने वाले गुलदारों और कृषि को नुकसान पहुंचा रहे जंगली सुअरों से निजात दिलाना एक तरह की समाज सेवा ही है। हालांकि वह ईश्वर से यह प्रार्थना भी करते हैं कि काश उन्हें वन्य जीवों के खिलाफ हथियार उठाने की जरूरत ही न पड़े। 
जनपद के देवीधूरा ग्राम निवासी धामी जन्मजात शिकारी कहे जा सकते हैं। हिंसक वन्य जीवों के करीब तक निडरता से पहुंचना और उसे एक गोली में ढेर कर देना धामी को विरासत से मिला है। उनके दादा धनसिंह धामी को अंग्रेजों के दौर से जारी वन्य जीवों से सुरक्षा के मद्देनजर हिंसक जीवों को मारने का अधिकार मिला हुआ था। हालांकि पिता की मौत के बाद उनके परिवार पर एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें अपने दादा की यही बंदूक बेचनी पड़ गई। लेकिन बाद में हालात सुधरने पर वह वापस 12 बोर की एक लाइसेंसी बंदूक ले आए, जिससे उन्होंने गत छह सितम्बर को वन विभाग की टीम से लगातार 57 दिन जंगलों की खाक छानने के बाद जिले के जंतवालगांव, सूर्याजाला व लमजाला क्षेत्रों में चार लोगों को जिंदा खा जाने वाले आदमखोर गुलदार को ढेर कर दिया था, और चार दिन के बाद ही रामनगर के काब्रेट टाइगर रिजर्व के सांवल्दे गांव क्षेत्र में पेड़ पर शिकार की तलाश में बैठे गुलदार को भी इसी बंदूक से मौत की नींद सुलाकर क्षेत्रवासियों के बीच हीरो बन गए। "राष्ट्रीय सहारा" से एक भेंट में धामी बताते हैं गुलदार पेड़ पर चढ़ने की क्षमता रखने वाला व स्वभाव से बेहद शातिर व धूर्त किस्म का जानवर होता है। यह छुपकर किसी पर भी हमला बोल सकता है। बीते दिनों प्रदेश में आई आपदा के बाद इसकी आबादी क्षेत्रों में अधिक उपस्थिति हुई है। रानीखेत और अल्मोड़ा शहरों में घरों के अंदर गुलदारों के घुसने की घटनाएं भी बीते माह प्रकाश में आई। संभव है कि आपदा में उसके प्राकृतिक भोजन हिरन प्रजाति के वन्य जीवों के हताहत हो जाने जैसे कारणों से वह आबादी क्षेत्रों की ओर आ रहे हों। देश- प्रदेश में बाघों की घटती संख्या भी गुलदारों की तेजी से बड़ी संख्या के पीछे बड़ा कारण हो सकता है। धामी बताते हैं कि उनकी सफलता के पीछे नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते, उप प्रभागीय वनाधिकारी यूसी तिवारी, रानीबाग के वन दरोगा आनंद लाल आर्य और दैनिक श्रमिक मुन्ना आदि के सहयोग की उनकी सफलता में मुख्य भूमिका रही।

रविवार, 4 अगस्त 2013

कैलास मानसरोवर यात्रा रोकना गैर हिंदूवादी कदम : भाजपा

नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश भाजपा ने कैलास मानसरोवर यात्रा को निरस्त करने के लिए प्रदेश सरकार का गैर हिंदूवादी कदम और दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा कि यह देश के करोड़ों आस्थावान हिंदू समाज की भावनाओं से खिलवाड़ है। सरकार को तत्काल ही अपने निर्णय में बदलाव कर यात्रियों को मुफ्त हेलीकॉप्टर सुविधा दिलाकर यात्रा को शुरू करानी चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया दी कि आगे इस कदम के बाद उत्तराखंड के यात्रा मार्ग को असुरक्षित बताकर अरुणांचल व लद्दाख से कैलास मानसरोवर के लिए नए मार्ग खोले जा सकते हैं, इससे उत्तराखंड एक बड़ा आर्थिक श्रोत भी खो देगा। 
जोशी रविवार को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के साथ देहरादून लौटते हुए मुख्यालय स्थित राज्य अतिथि गृह में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। कहा, कैलाश यात्रा मार्ग में केवल नदी के बगल से होकर जाने वाले रास्ते में नुकसान हुआ है, जबकि नैनीताल से सौसा, जिप्ती या गुंजी तक एमजी-17 हेलीकॉप्टर के अधिकतम तीन चक्कर लगाकर श्रद्धालुओं को कैलास यात्रा कराई जा सकती है। "˜राष्ट्रीय सहारा" पूर्व में ही कैलास मानसरोवर यात्रा को इसी तरह नैनीताल से सौसा या जिप्ती तक हेलीकॉप्टर सुविधा के जरिए संचालित करने का विकल्प सुझा चुका है। जोशी ने कहा कि यात्रा के स्थगित होने से हमेशा के लिए उत्तराखंड से यह सेवा छिनने का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। इस मौके पर सांसद प्रतिनिधि मनोज जोशी व संतोष साह मौजूद थे।

निकटवर्ती वन भूमि पर तत्काल विस्थापन हो, पर सीमांत क्षेत्र खाली भी न हो : चुफाल

नैनीताल। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने सीमांत क्षेत्रों में आपदा प्रभावितों का नहीं वरन पूरे आपदा प्रभावित गांवों को विस्थापन करने की आवश्यकता जताई है। साथ ही चेताया है कि विस्थापन से सीमांत क्षेत्र के गांव खाली न हो जाएं। विस्थापितों को केवल रहने के लिए मकान ही नहीं वरन आजीविका के लिए आपदा में बरबाद हुई पूरी जमीन निकटवर्ती वन भूमि में ही देने की मांग की। उन्होंने प्रदेश सरकार पर आपदा के डेढ़ माह गुजरने के बाद सड़कें तो दूर आपदा में नष्ट हुए पैदल मार्ग भी दुरुस्त न कर पाने का आरोप लगाया। पैदल रास्ते ही बन जाएं, तो बड़ी बकरियों के जरिए भी दूरस्थ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सकता है। पत्रकारों से वार्ता करते भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल व अन्य। 

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

अब नैनीताल में फटा आफतों का बादल...

  • जिले के दूरस्थ ल्वाड़ डोबा गाँव में आयी दैवीय आपदा..
  • एक घर का नामोनिशान नहीं रहा.. गृहस्वामी, उसकी पत्नी और चार बेटियां काल-कवलित, दो बछिया और 12 बकरियां भी मरीं...
  • घर का इकलौता चश्मो-चिराग (13 साल का बेटा) कहीं और होने के कारण बचा 


नैनीताल/धानाचूली (एसएनबी)। यहां करीब सवा सौ किमी दूर चंपावत जिले की सीमा से सटे ओखलकांडा ब्लॉक के ल्वाड़ डोबा ग्रामसभा में भूस्खलन के कारण एक दोमंजिला आवासीय भवन बुधवार देर रात्रि जमींदोज हो गया। इस हादसे में एक ही परिवार की चार बच्चियां व उनके माता-पिता घर के मलबे में जिंदा दफन हो गये। घर की निचली मंजिल (गोठ) में बंधी दो बछिया और 12 बकरियां भी मलबे में दबकर मर गई। घर का इकलौता चिराग दुर्घटना के समय घर पर न होने के कारण बच गया। सड़क मार्ग बाधित होने से डीएम एएस ह्यांकी व अन्य अधिकारी 15 किमी. पैदल चलकर मौके पर पहुंचे। माना जा रहा है कि बीती रात मूसलाधार बारिश के दौरान बादल फटने के कारण यह तबाही हुई। सीएम विजय बहुगुणा ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मृत लोगों की आत्मा की शांति एवं दुख की इस घड़ी में उनके परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईवर से कामना की है। सीएम ने जिलाधिकारी नैनीताल को निर्देश किया है कि इस दुर्घटना में मृत लोगों के परिजनों को शासन द्वारा अनुमन्य राशि जल्द उपलब्ध करायें। साथ ही क्षतिग्रस्त भवनों का आकलन कर निर्धारित मुआवजा भी वितरित करें। 
जानकारी के मुताबिक बृहस्पतिवार सुबह करीब 6.20 बजे ल्वाड़ डोबा ग्राम सभा की प्रधान वैष्णव देवी ने जिला आपदा कंट्रोल रूम को इस हादसे की सूचना दी। जानकारी के अनुसार बुधवार रात्रि दो से ढाई बजे के बीच ल्वाड़ डोबा गांव में हयात राम आर्या (40) का पुराना दोमंजिला भवन बारिश के दौरान भरभराकर ढह गया। जानकारी लगने पर जुटे ग्रामीणों ने मलबे से उनको निकालने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी नहीं बचाया जा सका। हादसे में हयात राम, उसकी पत्नी आनंदी देवी (35) व चार बेटियांनी लम (10), कविता (8), हिमानी (5) और डेढ़ वर्षीया निशा की मौके पर ही मौत हो गई। हयात राम का इकलौता बेटा (13) संयोगवश बच गया। बताया गया है कि वह रात्रि में अपने ताऊ के घर में सोया हुआ था। सूचना मिलते ही राजस्व विभाग, रेस्क्यू और स्वास्थ्य विभाग की टीमों को गांव की ओर रवाना किया गया। डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी भी सुबह सवा आठ बजे गांव के लिए रवाना हुए। दुर्घटनास्थल धारी तहसील मुख्यालय से करीब 85 किमी दूर खनस्यूं- पतलोट मार्ग पर स्थित है। यह मार्ग डालकन्या से आगे कई स्थानों पर मलबा आने से अवरुद्ध है। इस कारण गांव पहुंचने के लिए प्रशासन और आपदा-बचाव व स्वास्थ्य विभाग की टीमों को करीब 15 किमी पैदल चलना पड़ा। डीएम के साथ ही तहसीलदार धारी दामोदर पांडे, एसडीएम कोश्यां-कुटौली एनएस नबियाल सहित चिकित्सकों का दल भी करीब पांच घंटे पैदल चलकर मौके पर पहुंच पाया। शवों का मौके पर ही पोस्टमार्टम कराया गया।

रविवार, 31 मार्च 2013

डीएम, मंत्री भी नहीं करा पा रहे जांच !


  • अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के 864 लाख रुपयों से हुए सुधार कार्यों के ध्वस्त हो जाने का मामला 
  • डीएम के अपने स्तर से जांच में गुणवत्ता पर उठाये थे सवाल 
  • जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह भी शासन से कर चुके हैं उच्चस्तरीय जांच की मांग


नैनीताल। जनपद से अल्मोड़ा समेत पहाड़ को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग-87 (विस्तार) में विगत दिनों करीब 864 लाख रुपये से हुए सुधार-मरम्मत कार्य कुछ ही दिनों में ध्वस्त हो गए, लेकिन इसे निर्माण से संबंधित लोगों की ऊंची पहुंच का असर कहें या कि छोटे से प्रदेश में शासन-प्रशासन व सरकार के बीच तालमेल की कमी, निर्माण कार्यों में डीएम स्तर से की गई जांच में बड़ी अनियमितता उजागर हो जाने के बावजूद और डीएम द्वारा दो बार और जिले के प्रभारी मंत्री द्वारा पत्र लिखे जाने के बावजूद शासन मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश नहीं दे रहा। 
सड़क को आज के दौर की ‘लाइफ लाइन’ क्यों कहां जाता है, इस बात का अहसास कोसी नदी के बराबर से गुजर रहे अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग-विस्तार के अक्टूबर 2010 में आई अतिवृष्टि के दौरान नैनीताल जनपद स्थित बड़े हिस्से के बह जाने और महीनों इस मार्ग से पहाड़ का संपर्क भंग होने और मार्ग पर दर्जनों वाहनों के महीनों फंसे रहने के रूप में देखा जा सकता था। आगे, जनता की कमाई के ही 841.15 लाख रुपये से मार्ग के ज्योलीकोट से क्वारब तक सड़क का व्यापक स्तर पर पुनर्निर्माण, सुधार-मरम्मत आदि के कार्य हुए। यह कार्य मार्च 2012 में पूर्ण हो पाए। इसी दौरान मार्ग के किमी-41 में जौरासी के समीप "क्रॉनिक जोन" विकसित हो जाने से व्यापक भूस्खलन हुआ, जिसे दुरुस्त करने में और चार महीनों के अंदर निर्माण कार्य दरकने लगे और दिखने लगा कि जनता की गाढ़ी कमाई निर्माण कार्यों में नहीं निर्माणकर्ताओं की जेब में समा गई है। शिकायतें आने के बाद डीएम नैनीताल निधिमणि त्रिपाठी ने एसडीएम कोश्यां-कुटौली से मामले की जांच करवाई। एसडीएम की सात जुलाई 12 को आई रिपोर्ट में कहा गया कि एनएच पर नावली के पास निर्मित दीवार व सड़क धंस रही है, और सड़क कभी भी गिर सकती है। लिहाजा डीएम ने पहले जुलाई 12 में और फिर दिसम्बर 12 में प्रमुख सचिव लोनिवि को मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए संस्तुति करते हुए पत्र लिखे। इस बीच 26 दिसम्बर 12 को जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिला योजना की बैठक में यह मामला जनप्रतिनिधियों ने बेहद जोर-शोर से उठा, और मंत्री बावजूद शासन से मामले की जांच होना दूर, किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सांसद प्रतिनिधि डा. हरीश बिष्ट, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल समेत अनेक जनप्रतिनिधि भी इस मामले को गंभीर बताते हुए मामले की शासन से उच्च स्तरीय जांच व दोषियों को दंडित करने तथा सड़क को दुरुस्त करने की मांग उठा रहे हैं। वहीं प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह का कहना है कि वह स्वयं इस मामले को लेकर सीएम और प्रमुख सचिव लोनिवि से बात करेंगे। 

गुरुवार, 21 मार्च 2013

तराई बीज निगम में एक और घोटाला !



लाखों के गेहूं के बीज को ऐसे क्षेत्रों में उगाने का दावा जहां वह पैदा ही नहीं होता
डीआईजी ने दिए मामले की विस्तृत जांच के निर्देश
इस मामले में जल्द किया जा सकता है कुछ लोगों को गिरफ्तार
नवीन जोशी, नैनीताल। विवादों में चल रहे प्रदेश के तराई बीज विकास निगम (टीडीसी) में एक और बड़े घोटाले की परतें खुलने लगी हैं। इस मामले में निगम के जिम्मेदार अधिकारियों की संलिप्तता और बड़े घोटाले की आशंका जताई जा रही है। इस करीब चार वर्ष पुराने मामले में आरोपितों ने लाखों रुपये के गेहूं के बीजों को ऐसे क्षेत्रों में उगाने का दावा किया था, जहां वह पैदा ही नहीं होता। बाद में जांच तेज हुई तो निगम में मामले की फाइल ही गायब करवा दी गई। खास बात यह है कि जांच के दौरान इस गायब फाइल की फोटो कापी पुलिस अपने पास सहेज चुकी थी। यानी मामला साजिश के तहत सरकारी दस्तावेज को गायब करने और घोटाले का है। उल्लेखनीय है कि टीडीसी गेहूं के बीजों को तैयार कर विभिन्न क्षेत्रों में उगवाता है और बाद में उनसे प्राप्त उपज को बीज के रूप में खरीद लेता है। इसी प्रक्रिया में वर्ष 2008 से कुछ और ही खेल खेला गया। भूपेंद्र सिंह, हरविंदर सिंह, इंद्रजीत सिंह, हरदयाल सिंह सहित नौ आरोपितों पर आरोप है कि उन्होंने टीडीसी को पंतनगर व कानपुर सहित कुछ ऐसे इलाकों में बोए गए बीज बेचे जहां ऐसी उच्चीकृत प्रजातियों के बीज उपलब्ध नहीं होते। वहीं अधिकारियों की संलिप्तता का आलम यह रहा कि जांच में इन स्थानों पर गेहूं बोए जाने की पुष्टि कर दी। इस बीच आरोपितों के साथियों में ही आपस में फूट पड़ने से मामला खुल गया और गत 29 दिसम्बर 2012 को पंतनगर थाने में नौ आरोपितों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत हुआ। इस बीच पुलिस की जांच शुरू हुई तो निगम में मामले से संबंधित फाइल गायब होने की बात कही गई, लेकिन इससे पूर्व ही पुलिस गायब बताई गई फाइल की फोटो कापी कराकर अपने पास सुरक्षित रख चुकी थी। पुलिस की प्रारंभिक जांच में गेहूं के जनक बीज के पंजीकरण संबंधी दस्तावेज और बीज को खेतों में बोए जाने के अभिलेख फर्जी पाए गए हैं। साथ ही मौके पर जाकर बीज बोए जाने को प्रमाणित करने वाले अधिकारियों की संलिप्तता की भी प्रथमदृष्टया पुष्टि हो चुकी है। पूछे जाने पर नैनीताल परिक्षेत्र के डीआईजी संजय गुंज्याल ने बताया कि उन्होंने मामले की विवेचना करने और फाइल के गायब होने जैसे विषयों को भी शामिल करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अभियोग पंजीकृत होने के दो माह बाद एवं दो विवेचक बदले जाने के बावजूद मामले की सीडी पर्यवेक्षण अधिकारी को न सौंपे जाने को लेकर ऊधमसिंहनगर पुलिस की कार्यदक्षता पर भी सवाल उठाए हैं तथा एसएसपी ऊधमसिंह नगर को मामले की गहनता से विवेचना करने को लिखा है।

सोमवार, 11 मार्च 2013

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का खतरा !


पहाड़ों पर अधिक होता है मौसम परिवर्तन का असर : प्रो. सिंह
नवीन जोशी नैनीताल। दुनिया के "वाटर टावर" कहे जाने वाले और दुनिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले हिमालय पर कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, ग्रीन हाउस गैसों तथा प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिग व जलवायु परिवर्तनों के खतरे तो हैं ही, वैज्ञानिक ब्लैक कार्बन को भी हिमालय के लिए एक खतरा बता रहे हैं। खास बात यह भी है कि इसका असर गरमियों के मुकाबले सर्दियों में, दिन के मुकाबले रात्रि में और मैदान के बजाय पहाड़ पर अधिक होता है। बीरबल साहनी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति, उत्तराखंड योजना आयोग के सदस्य एवं भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के लिए हिमालय पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन कर रहे प्रो. एसपी सिंह ने यह खुलासा किया है। सिंह का कहना है कि दुनिया में डेढ़ बिलियन लोग ईधन में ब्लैक कार्बन’का प्रयोग करते हैं। हिमालय पर इसका सर्वाधिक असर वनस्पतियों की प्रजातियों के अपनी से अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट होने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने और मानव की जीवन शैली से लेकर आजीविका तक पर गंभीर प्रभाव के रूप में दिख रहा है। धरती के गर्भ से खुदाई कर निकलने वाले डीजल जैसे पेट्रोलियम पदार्थो, कोयला व लकड़ी आदि को जलाने से ब्लैक कार्बन उत्पन्न होता है। प्रो. सिंह के अनुसार यह ब्लैक कार्बन’जलने के बाद ऊपर की ओर उठता है, और ग्रीन हाउस गैसों की भांति ही धरती की गर्मी बढ़ा देता है। बढ़ी हुई गर्मी अपने प्राकृतिक गुण के कारण मैदानों की बजाय ऊंचाई वाले स्थानों यानी पहाड़ों पर अधिक प्रभाव दिखाते हैं। प्रो. सिंह खुलासा करते हैं कि इस प्रकार मौसम परिवर्तन का असर दिल्ली या देहरादून से अधिक नैनीताल में सर्दियों में रात्रि का तापमान कई बार समान होने के रूप में दिखाई दे रहा है। इसके असर से ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पौधों की प्रजातियां ऊपर की ओर माइग्रेट हो रही हैं। ऐसे में सामान्य सी बात है कि पहाड़ की चोटी की प्रजातियां और ऊपर न जाने के कारण विलुप्त हो रही हैं। मानव जीवन पर भी इसका असर फसलों के उत्पादन के साथ आजीविका और जीवनशैली पर पड़ रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि हिमाचल प्रदेश में 1995 से 2005 के बीच सेब उत्पादन में कम ऊंचाई वाले कुल्लू व शिमला क्षेत्रों का हिस्सा कम हुआ है, जबकि ऊंचाई वाले लाहौल- स्फीति का क्षेत्र बढ़ा है।