Seismic Zones लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Seismic Zones लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 2 मार्च 2013

मापी जाएगी टेक्टोनिक प्लेटों की गतिशीलता

साफ होगी भारतीय प्लेट के तिब्बती प्लेट में धंसने की गति : प्रो. पंत
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक भूवैज्ञानिक सामान्यतया यह कहते आए हैं कि भारतीय उप महाद्वीप करीब 50 से 55 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर गतिमान है। इस दर से भारतीय टेक्टोनिक प्लेट तिब्बती प्लेट में समा रही है, लेकिन अब पहली बार भारतीय प्लेट की गति को ही उत्तराखंड के हिमालयों में विभिन्न टेक्टोनिक हिस्सों के बीच आपसी गतिशीलता के रूप में मापा जाएगा। इस हेतु केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी परियोजना स्वीकृत हो गई है, जिसके तहत राष्ट्रीय भूभौतिक शोध संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक कुमाऊं विवि के भूवैज्ञानिकों और उनके द्वारा पूर्व में स्थापित भूकंपमापी उपकरणों और नई जीआईएस पण्राली से जुड़े उपकरणों की मदद से भारतीय प्लेट की वास्तविक गति का पता लगाएंगे। उल्लेखनीय है कि देश में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए तिब्बती प्लेट में धंसते जाने के कारण ही है। बताया जाता है कि करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट तिब्बती प्लेट से टकराई थी, और इसी कारण उस दौर के टेथिस महासागर में इन दोनों प्लेटों की भीषण टक्कर से आज के हिमालय का जन्म हुआ था। आज भी दोनों प्लेटों के बीच यह गतिशीलता बनी हुई है, और इसकी गति करीब 50 से 55 मिमी प्रति वर्ष बताई जाती है। इधर भूविज्ञान मंत्रालय की परियोजना के तहत हिमालय के हिस्सों- लघु हिमालय से लेकर उच्च हिमालय के बीच के विभिन्न भ्रंशों के बीच इस गतिशीलता को गहनता से मापा जाएगा। कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत ने बताया कि एनजीआरआई हैदराबाद के डा. विनीत गहलौत और आईआईटी कानपुर के प्रो. जावेद मलिक गंगा-यमुना के मैदानों को शिवालिक पर्वत श्रृंखला से अलग करने वाले हिमालय फ्रंटल थ्रस्ट, शिवालिक व लघु हिमालय को अलग करने वाले मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी), इसी तरह आगे रामगढ़ थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, बेरीनाग थ्रस्ट व मध्य हिमालय से उच्च हिमालय को विभक्त करने वाले मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे विभिन्न टेक्टोनिक सेगमेंट्स के बीच आपस में उत्तर दिशा की ओर गतिशीलता का गहन अध्ययन करेंगे। इस हेतु प्रदेश के पीरूमदारा, काशीपुर, कोटाबाग व नानकमत्ता व नैनीताल में जीपीएस आधारित उपकरण लगाए जाएंगे जो लंबी अवधि में इन स्थानों पर लगे उपकरणों की उनकी वर्तमान मूल स्थिति के सापेक्ष विचलन को नोट करते रहेंगे। इनके अलावा कुमाऊं विवि द्वारा कुमाऊं में भूकंप मापने के लिए मुन्स्यारी, तोली (धारचूला), नारायणनगर (डीडीहाट), धौलछीना और भराड़ीसेंण में लगाए गए उपकरणों की भी मदद ली जाएगी। 

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दरकती जमीन पर खड़े हो रहे आफतों के महल


आपदा प्रभावित मंगावली क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माणों से भूस्खलन का खतरा बढ़ा

नवीन जोशी, नैनीताल। राज्य में चाहे आपदा प्रबंधन का जितना शोर हो रहा हो और मुआवजे के रूप में ही करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े हों, लेकिन इतना साफ़ हो गया है कि न सरकार और न लोगों ने ही आपदा से जरा भी सबक लिया है। इसकी बानगी है दैवीय आपदा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ मंगावली क्षेत्र। यहां एक ओर मकान दरक रहे हैं, वहीं वैध- अवैध निर्माण जारी हैं। पहले से हिली धरती के सीने में गड्ढों के रूप में घाव किए जा रहे हैं। प्रतिदिन टनों निर्माण सामग्री वहां उड़ेली जा रही है। 
मंगावली शेर का डांडा पहाडी पर स्थित नगर से अलग-थलग एवं दुर्गम क्षेत्र है। तीखी चढ़ाई वाले बिड़ला मार्ग से इस ओर वाहन मुश्किल से ही चढ़ पाते हैं। इसके बावजूद यहां इन दिनों बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं। यह कार्य वैध है अथवा अवैध, तात्कालिक रूप से जिम्मेदार झील विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को भी मालूम नहीं है, लेकिन जिस तरह व्यापक स्तर पर जमीन खोद कर पत्थरों के पहाड़ बनाए जा रहे हैं, उससे तथा अधिकारियों की जानकारी में मामला न होने से साफ हो जाता है कि निर्माण पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। पूछने पर झील विकास प्राधिकरण के सचिव एचसी सेमवाल ने कहा कि निर्माणों की जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी। 
शेर का डांडा में हुआ था भूस्खलन 
बीती 18-19 सितंबर २०१० को अतिवृष्टि ने नगर के शेर का डांडा पहाड़ी में जबरदस्त हलचल मचाई थी। इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित बिड़ला विद्या मंदिर परिसर में गिरे बड़े बोल्डर से विद्यालय की डिस्पेंसरी व कर्मचारी आवासों को नुकसान हुआ था। इसके नीचे मंगावली में पालिकाकर्मी साजिद अली के मकान सहित कई घरों में दरारें आई थीं, जो अब भी चौड़ी होती जा रही हैं। इससे नीचे सीएमओ कार्यालय के पास स्वास्थ्य विभाग के आवास पर भी बोल्डर गिरा था तथा पहाड़ी की तलहटी में कैंट क्षेत्र में भी भारी भूस्खलन हुआ था, व भवाली मार्ग अब भी इसी कारण ध्वस्त पड़ी है। ऐसे क्षेत्र में निर्माण सवालों के घेरे में हैं।