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सोमवार, 11 मार्च 2013

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का खतरा !


पहाड़ों पर अधिक होता है मौसम परिवर्तन का असर : प्रो. सिंह
नवीन जोशी नैनीताल। दुनिया के "वाटर टावर" कहे जाने वाले और दुनिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले हिमालय पर कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, ग्रीन हाउस गैसों तथा प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिग व जलवायु परिवर्तनों के खतरे तो हैं ही, वैज्ञानिक ब्लैक कार्बन को भी हिमालय के लिए एक खतरा बता रहे हैं। खास बात यह भी है कि इसका असर गरमियों के मुकाबले सर्दियों में, दिन के मुकाबले रात्रि में और मैदान के बजाय पहाड़ पर अधिक होता है। बीरबल साहनी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति, उत्तराखंड योजना आयोग के सदस्य एवं भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के लिए हिमालय पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन कर रहे प्रो. एसपी सिंह ने यह खुलासा किया है। सिंह का कहना है कि दुनिया में डेढ़ बिलियन लोग ईधन में ब्लैक कार्बन’का प्रयोग करते हैं। हिमालय पर इसका सर्वाधिक असर वनस्पतियों की प्रजातियों के अपनी से अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट होने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने और मानव की जीवन शैली से लेकर आजीविका तक पर गंभीर प्रभाव के रूप में दिख रहा है। धरती के गर्भ से खुदाई कर निकलने वाले डीजल जैसे पेट्रोलियम पदार्थो, कोयला व लकड़ी आदि को जलाने से ब्लैक कार्बन उत्पन्न होता है। प्रो. सिंह के अनुसार यह ब्लैक कार्बन’जलने के बाद ऊपर की ओर उठता है, और ग्रीन हाउस गैसों की भांति ही धरती की गर्मी बढ़ा देता है। बढ़ी हुई गर्मी अपने प्राकृतिक गुण के कारण मैदानों की बजाय ऊंचाई वाले स्थानों यानी पहाड़ों पर अधिक प्रभाव दिखाते हैं। प्रो. सिंह खुलासा करते हैं कि इस प्रकार मौसम परिवर्तन का असर दिल्ली या देहरादून से अधिक नैनीताल में सर्दियों में रात्रि का तापमान कई बार समान होने के रूप में दिखाई दे रहा है। इसके असर से ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पौधों की प्रजातियां ऊपर की ओर माइग्रेट हो रही हैं। ऐसे में सामान्य सी बात है कि पहाड़ की चोटी की प्रजातियां और ऊपर न जाने के कारण विलुप्त हो रही हैं। मानव जीवन पर भी इसका असर फसलों के उत्पादन के साथ आजीविका और जीवनशैली पर पड़ रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि हिमाचल प्रदेश में 1995 से 2005 के बीच सेब उत्पादन में कम ऊंचाई वाले कुल्लू व शिमला क्षेत्रों का हिस्सा कम हुआ है, जबकि ऊंचाई वाले लाहौल- स्फीति का क्षेत्र बढ़ा है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

नैनीताल का गौरव दुर्गापुर पावर हाउस होने वाला है नीलाम


ब्रेवरी से नैनीताल को रोपवे निर्माण की थी मूल योजना

नवीन जोशी नैनीताल। अंग्रेज नियंताओं द्वारा नगर के पास दुर्गापुर में स्थापित पनबिजलीघर ने नैनीताल नगर को देश के किसी भी पर्वतीय शहर में सबसे पहले बिजली से रोशन होने वाले शहरों में शामिल होने का गौरव दिलाया था। बिजलीघर की स्थापना के पीछे मूल उद्देश्य दुर्गम भौगौलिक क्षेत्र में स्थित कुदरत के नायाब तोहफे नैनीताल नामक स्थान को निकटवर्ती ब्रेवरी को रोपवे से जोड़ना था। 
यह वह दौर था जब नैनीताल को 1841 में वर्तमान स्वरूप में खोजने के बाद लंबे समय तक अंग्रेज नियंता नगर के लिए आसान यातायात का साधन उपलब्ध नहीं करा पा रहे थे। तब बैलगाड़ियां ही नैनीताल आने का प्रमुख साधन थीं। नगर की कमजोर भौगोलिक संरचना तथा बेहद ऊंचाई पर स्थित होने के कारण नैनीताल के लिए सड़क भी आसानी से नहीं बन पा रही थी। इसी कारण रेल लाइन बिछाने की योजना पहले ही खटाई में पड़ चुकी थी, ऐसे में अंग्रेज शासकों के मन में विचार आया कि ब्रेवरी-वीरभट्ठी से नगर के लिए रोपवे के जरिये आगमन का सरल तरीका ईजाद किया जाए। इसके लिए 1916-19 में वीरभट्ठी के पास ही दुर्गापुर में नैनी झील से पानी ले जाकर पनबिजलीघर स्थापित किये जाने की योजना बनी। रोपवे तो कमजोर भौगोलिक संरचना के कारण नहीं बन पाया अलबत्ता एक सितम्बर 1922 को नैनीताल बिजली के बल्बों से जगमगाने वाले देश के पहले पर्वतीय शहरों में शामिल जरूर हो गया। बिजलीघर के निर्माण में पीडब्ल्यूडी के साथ मसूरी नगर पालिका के विद्युत अभियंता मिस्टर बेल व इंग्लैंड की मैथर एंड प्लाट्स, गिलबर्ट एंड गिलकर व एकर्सन हीप कंपनियों की मुख्य भूमिका रही। इन कंपनियों की विशालकाय मशीनों, टर्बाइन व अल्टर्ननेटर आदि मशीनों को इंग्लैंड से पानी के जहाजों, रेल और बैलगाड़ियों के माध्यम से लाया गया। बिजलीघर की प्रारंभिक लागत 11,09,429 रुपये थी लेकिन वास्तविक तौर पर इस योजना पर कुल 20,72,383 रुपये लगे।
बिजलीघर नैनी झील के ओवरफ्लो होने वाले पानी से चलता था। आबादी बढ़ने के साथ 80 के दशक में पानी कम होने लगा। इधर पांच जनवरी 88 को बलियानाला क्षेत्र में भारी भूस्खलन से बिजलीघर को पानी लाने वाली पेन- स्टॉक पाइप लाइनें टूट गई। इसके बाद धीरे-धीरे बिजलीघर बंद हो गया। इधर पन विद्युत निगम व नगर पालिका के बीच बंद पड़े बिजलीघर के स्वामित्व को लेकर लंबे समय तक चला विवाद आखिर पालिका के पक्ष में गया। पालिका ने यहां पर गरीबों के लिए आवास बनाने की योजना बनाई। साथ ही बिजलीघर की मशीनों को नीलाम करने का फैसला भी कर लिया गया है। जिसके बाद नगर वासी इस ऐतिहासिक विरासत को नीलाम होने से बचाने के लिए आगे आये हैं।