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शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

जनपद के दूरस्थ गांवों में रात्रि प्रवास करेंगे अफसर, डीएम स्वयं से करेंगे शुरुआत

पत्रकार वार्ता में डीएम ने गिनाई अपनी प्राथमिकताएं, पीएमजीएसवाई में सड़क निर्माण के लिए नोडल अधिकारी होंगे नियुक्त

नैनीताल (एसएनबी)। डीएम दीपक रावत ने जनपद के दूरस्थ क्षेत्रों में रात्रि विश्राम को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे पहले बताते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना सहित अन्य योजनाओं के तहत बन रही सड़कों के निर्माण में अत्यधिक देरी होने की बात कही। कहा कि वह स्वयं से दूरस्थ गांवों में रात्रि विश्राम से इसकी शुरुआत करेंगे। सभी ब्लॉकों की क्षेत्र पंचायत की बैठकों में जाने से वह इसकी शुरुआत कर भी चुके हैं। समयबद्ध विकास योजनाओं के लिए पीएमजीएसवाई की सभी सड़कों के समयबद्ध निर्माण के लिए अलग-अलग नोडल अधिकारियों की तैनाती की जाएगी। उन्होंने योजनाओं के केवल धन खर्च के आंकड़ों पर समीक्षा केंद्रित होने की परिपाटी से आगे धरातल पर कार्य होने और उनकी गुणवता पर भी बल दिया। कहा कि हर माह के चयनित दिनों को निर्माण कार्यों के सत्यापन के लिए तय करने का इरादा भी जताया।
श्री रावत ने शुक्रवार को जनपद का डीएम बनने के बाद एसएसपी सेंथिल अबूदई के साथ नैनीताल क्लब में पहली औपचारिक पत्रकार वार्ता में अपनी प्राथमिकताएं गिनार्इं। समयबद्धता पर जोर देते हुए उन्होंने विभिन्न प्रमाण पत्रों को 15 दिन की समयसीमा के भीतर उपलब्ध कराने की बात भी कही। इसके अलावा उन्होंने पूरे नैनीताल जनपद को पर्यटन जनपद बताते हुए सभी जगह बेहतर यातायात प्रबंधन एवं कूड़ा निस्तारण के लिए ठोस कूड़ा अपशिष्ट निवारण एवं ट्रंचिंग ग्राउंड के प्रबंध करने की बात कही। बताया कि ट्रंचिंग ग्राउंड के लिए हल्द्वानी में आठ एवं नैनीताल में दो करोड़ रुपए स्वीकृत पड़े हुए हैं। जनपद के 10 गांवों को पर्यटन गांव बनाने की जानकारी भी दी। साथ ही नैनीताल में पार्किंग स्थानों के लिए खाली जगहें चयनित करने की बात कही, जिन पर आगे केएमवीएन पार्किंग का निर्माण करेगा। हल्द्वानी की पेयजल समस्या के समाधान के लिए उन्होंंने वहां निर्मित हो चुकी 14 पानी की टंकियों का इस वर्ष की गर्मी में सदुपयोग कर समस्या का निदान करने की बात कही। इस मौके पर एसएसपी श्री अबूदई ने इस 31 दिसंबर को मुख्यालय में यातायात प्रबंधन के प्रयोग को सफल बताते हुए सीजन में भी ऐसे ही हर जगह पर पुलिस कर्मियों की उपस्थिति बनाकर कार्य करने की बात कही। कहा कि उनकी कोशिश पुलिस व जनता के बीच दूरी कम करने व विश्वास बढ़ाने की है। इस अवसर पर सहायक सूचना निदेशक योगेश मिश्रा, सहायक सूचना अधिकारी गोविंद सिंह बिष्ट व हंसी रावत आदि भी उपस्थित रहे।


सरकारी जमीनों से हटेंगे कब्जे, नैनीताल में बनेगा चिल्ड्रन पार्क 

नैनीताल। डीएम दीपक रावत ने जनपद में सरकारी जमीनों पर हुए अवैध कब्जों को हटाने को भी अपनी प्राथमिकता बताया। उन्होंने कहा कि इस कारण सरकार की विकास योजनाओं के लिए जमीन की कमी आड़े आती है। बताया कि जिले में 71 सरकारी योजनाएं वन भूमि हस्तांतरण के इंतजार में लंबित हैं। उन्होंने कहा कि कैपिटॉल सिनेमा के सामने के खाली पार्क को बच्चों के पार्क में बदला जाएगा व मल्लीताल बाजार में पार्क से भी कब्जा हटाया जाएगा। उन्होंने नगर के वर्षो से बंद पड़े कैपिटॉल व अशोक सिनेमा हॉलों के मामलों के शासन में लंबित होने की जानकारी देते हुए इनकी जगह जल्द शॉपिंग मॉल युक्त सिनेमाघर बनाने की इच्छा भी जताई। वहीं नगर के आधार बलियानाले के सुदृढ़ीकरण के लिए 65 करोड़ रुपये की योजना शासन में लंबित होने की बात कही। बताया कि फिलहाल इस कार्य के लिए डीपीआर बनाने के लिए भी पैंसा नहीं है।  

अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के लिए 30 एकड़ वन भूमि हस्तांतरित 

नैनीताल। जिला प्रशासन ने हल्द्वानी में बनने जा रहे अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के लिए जरूरी भूमि के बदले संबंधित विभाग को दो दिन पूर्व 30 एकड़ वन भूमि हस्तांतरित कर दी। इसकी एनपीवी जमा करने सहित अन्य औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। उन्होंने हल्द्वानी में तीन पानी से काठगोदाम तक के बाईपास के चौड़ीकरण को स्वीकृत 20 करोड़ रुपये से जल्द शुरू करने की बात कही। उन्होंने स्टेडियम के मद्देनजर संभवत: तिकोनिया से गौलापार के लिए एक और विशाल पुल बनाने की बात भी कही। 

विभाग करेंगे अखबारों की खबरों पर कार्रवाई 

नैनीताल। डीएम ने बताया कि विभागों को सभी समाचारपत्रों में विकास कायरे से संबंधित नकारात्मक यानी उनमें समस्याएं बताने वाली खबरों पर नजर रखने और उनके आधार पर कार्रवाई करने को कहा है। यदि समाचार पत्रों द्वारा उठाई जाने वाली 70 फीसद खबरों पर कार्रवाई हो जाए तो कायरे में गुणवत्ता आ सकती है। उन्होंने कहा कि शिकायतों की पुष्टि कराकर कार्रवाई की जाएगी। 

मुखानी चौराहे पर लगेगी नैनीताल जिले की पहली ट्रैफिक लाइट 

नैनीताल। डीएम ने बताया कि हल्द्वानी के मुखानी चौराहे पर जल्द ट्रैफिक लाइट लगाई जाएगी। इसके लिए छह लाख स्वीकृत किए गए हैं। तिकोनिया व को-आपरेटिव चौराहों का चौड़ीकरण कराकर ट्रैफिक लाइटें लगाई जाएंगी।

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

हफ्ते भर में नौ फीट बढ़ा नैनी झील का जलस्तर


  • 17 जुलाई को जल स्तर था शून्य से नीचे, 
  • 23 जुलाई को पहुंचा 8.7 फीट के स्तर पर, एक इंच खोले गये गेट

नैनीताल (एसएनबी)। नैनी झील पर कुदरत बारिश के रूप में मेहरबान हो ही गई है। बीते एक सप्ताह में नैनी झील का जलस्तर करीब नौ फीट ऊपर चढ़ गया। बुधवार को यह जुलाई माह के लिए निर्धारित साढ़े आठ फीट के स्तर को भी पार कर 8.7 फीट के स्तर पर पहुंच गया और इसके बाद एक वर्ष बाद झील के गेट (डांठ) एक इंच खोल दिए गए हैं। गौरतलब है कि बीती 14 जुलाई से ही नगर में मानसून की बारिश शुरू हो पाई है। इससे पहले झील के किनारे बड़े-बड़े डेल्टा नजर आ रहे थे। नगर में 14 जुलाई को 2.54 मिमी, 15 को 3.81, 16 को 198.12, 17 को 63.5, 18 को 325.12, 19 को 396.24, 20 को 238.76, 21 को 15.24, 22 को 30.48 व आज 23 को 8.89 मिलीमीटर बारिश रिकार्ड की गई है। इस तरह इस वर्ष अब तक कुल मिलाकर 2,506.98 मिमी बारिश हो चुकी है। इसके साथ ही झील का जलस्तर बीते 24 घंटों में चार इंच बढ़कर सुबह साढ़े आठ बजे 8.7 फीट पर पहुंच गया। इसके बाद दोपहर साढ़े 11 बजे झील के गेटों को इस वर्ष में पहली बार एक इंच खोल दिया गया। उल्लेखनीय है कि झील के गेट खोलने से झील का पानी बाहर चला जाता है, और इसे आमतौर पर स्थिर पानी वाली नैनी झील का पानी ‘रिफ्रेश’ हो पाता है, और इसे झील के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। इधर बुधवार को भी नगर में रिमझिम बारिश का सिलसिला चलता रहा। मौसम विभाग के अनुसार दिन का अधिकतम तापमान 23.2 व न्यूनतम 17.9 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया।

रविवार, 17 नवंबर 2013

यूं ही नहीं, तत्कालीन विश्व राजनीति की रणनीति के तहत अंग्रेजों ने बसासा था नैनीताल


रूस को भारत आने से रोकने और पहले स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल फूंक चुके रुहेलों से बचने के लिए अंग्रेजों ने बसाया था नैनीताल

नैनीताल के प्राकृतिक सौंदर्य ने भी खूब लुभाया था अंग्रेजों को

नवीन जोशी, नैनीताल। ऐसा माना जाता है कि 18 नवम्बर 1841 को एक अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन नैनीताल आया और उसने इस स्थान के थोकदार नर सिंह को नाव से झील के बीच ले जाकर डुबो देने की धमकी दी और शहर को कंपनीबहादुर के नाम करवा दिया था। यह अनायास नहीं था कि एक अंग्रेज इस स्थान पर आया और उसकी खूबसूरती पर फिदा होने के बाद इस शहर को ‘छोटी विलायत’ के रूप में बसाया। साथ ही शहर को अब तक सुरक्षित रखे नाले और अब भी मौजूद राजभवन, कलेक्ट्रेट, कमिश्नरी, सचिवालय (वर्तमान उत्तराखंड हाईकोर्ट) तथा सेंट जॉन्स, मैथोडिस्ट, सेंट निकोलस व लेक र्चच सहित अनेकों मजबूत व खूबसूरत इमारतों के तोहफे भी दिए। सर्वविदित है कि नैनीताल अनादिकाल काल से त्रिऋषि सरोवर के रूप में अस्तित्व में रहा स्थान है। अंग्रेजों के यहां आने से पूर्व यह स्थान थोकदार नर सिंह की मिल्कियत थी। तब निचले क्षेत्रों से ग्रामीण इस स्थान को बेहद पवित्र मानते थे, लिहाजा सूर्य की पौ फटने के बाद ही यहां आने और शाम को सूर्यास्त से पहले यहां से लौट जाने की धार्मिक मान्यता थी। कहते हैं 1815 से 1830 के बीच कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर रहे जीडब्ल्यू ट्रेल यहां से होकर ही अल्मोड़ा के लिए गुजरे और उनके मन में भी इस शहर की खूबसूरत छवि बैठ गई, लेकिन उन्होंने इस स्थान की धार्मिक मान्यताओं की मर्यादा का सम्मान रखा। दिसम्बर 1839 में पीटर बैरन यहां आया और इसके सम्मोहन से बच न सका। व्यवसायी होने की वजह से उसके भीतर इस स्थान को अपना बनाने और अंग्रेजी उपनिवेश बनाने की हसरत भी जागी और 18 नवम्बर 1841 को वह पूरी तैयारी के साथ यहां आया। वह औपनिवेशिक वैश्विकवाद व साम्राज्यवाद का दौर था। नए उपनिवेशों की तलाश व वहां साम्राज्य फैलाने के लिए फ्रांस, इंग्लैंड व पुर्तगाल जैसे यूरोपीय देश समुद्री मार्ग से भारत आ चुके थे, जबकि रूस स्वयं को इस दौड़ में पीछे महसूस कर रहा था। कारण, उसकी उत्तरी समुद्री सीमा में स्थित वाल्टिक सागर व उत्तरी महासागर सर्दियों में जम जाते थे। तब स्वेज नहर भी नहीं थी। ऐसे में उसने काला सागर या भूमध्य सागर के रास्ते भारत आने के प्रयास किये, जिसका फ्रांस व तुर्की ने विरोध किया। इस कारण 1854 से 1856 तक दोनों खेमों के बीच क्रोमिया का विश्व प्रसिद्ध युद्ध हुआ। इस युद्ध में रूस पराजित हुआ, जिसके फलस्वरूप 1856 में हुई पेरिस की संधि में यूरोपीय देशों ने रूस पर काला सागर व भूमध्य सागर की ओर से सामरिक विस्तार न करने का प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे में रूस के भारत आने के अन्य मार्ग बंद हो गऐ थे और वह केवल तिब्बत की ओर के मागरे से ही भारत आ सकता था। तिब्बत से उत्तराखंड के लिपुलेख, नीति, माणा व जौहार घाटी के पहाड़ी दरे से आने के मार्ग बहुत पहले से प्रचलित थे। ऐसे में अंग्रेज रूस को यहां आने से रोकने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में अपनी सुरक्षित बस्ती बसाना चाहते थे। दूसरी ओर भारत में पहले स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत हो रही थी। मैदानों में खासकर रुहेले सरदार अंग्रेजों के दुश्मन बने हुऐ थे। मेरठ गदर का गढ़ था ही। ऐसे में मैदानों के सबसे करीब और कठिन दरे के संकरे मार्ग से आगे का बेहद सुंदर स्थान नैनीताल ही नजर आया, जहां वह अपने परिवारों के साथ अपने घर की तरह सुरक्षित रह सकते थे। ऐसा हुआ भी। हल्द्वानी में अंग्रेजों व रुहेलों के बीच संघर्ष हुआ, जिसके खिलाफ तत्कालीन कमिश्नर रैमजे नैनीताल से रणनीति बनाते हुए हल्द्वानी में हुऐ संघर्ष में 100 से अधिक रुहेले सरदारों को मार गिराने में सफल रहे। रुहेले दर्रे पार कर नैनीताल नहीं पहुंच पाये और यहां अंग्रेजों के परिवार सुरक्षित रहे।

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ताक पर नदी किनारे की मनाही, झील के मुहाने पर प्रशासन खुद ही करा रहा निर्माण !


नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में आई भीषण प्राकृतिक आपदा से सचेत होते हुए जहां प्रदेश सरकार नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित कर रही है। वहीं भूगर्भीय दृष्टिकोण से कमजोर सरोवरनगरी में बेहद संवेदनशील नैनीझील के मुहाने पर स्वयं प्रशासन ही विशालकाय व भारी-भरकम "न्यू ब्रिज कम बाईपास" का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण का मूल उद्देश्य नगर के प्रवेश द्वार डांठ पर स्थित रोडवेज स्टेशन को यहां स्थानांतरित कर वाहनों का बोझ कम करना था, लेकिन इधर बताया जा रहा है कि रोडवेज ने न्यू ब्रिज में अत्यधिक निर्माण जगह की कमी को देखते हुए वहां बस अड्डा स्थानांतरित करने का विचार बदल दिया है और पुराने बस अड्डे को जीर्णोद्धार कर चकाचक कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यह निर्माण किया ही क्यों जा रहा है। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005-06 में सर्वप्रथम हल्द्वानी व भवाली रोड के बीच डांठ से पहले "न्यू ब्रिज" बनाने की योजना बनी थी। उद्देश्य था-डांठ से वाहनों का दबाव कम करना। योजना के पहले चरण में नैनीझील के अतिरिक्त पानी को बाहर बलियानाले में प्रवाहित करने के लिए 1.81 करोड़ रुपये की लागत से दो बैरलों, बिल्डिंग स्ट्रक्चर तथा लैंड फिल का कार्य 2007 में पूरा होना था। विवादों में रहा यह कार्य 2009 में पूरा हो पाया। 2010-11 में दूसरे चरण में 90.12 लाख रुपये से फिनिशिंग, ब्यूटिफिकेशन व स्लैब डालने के कार्य नौ माह के अंदर होने थे। पहले ठेकेदार करीब 30 लाख रुपये के कार्य कर चला गया, और फिर न्यायालयों तक पहुंचे लंबे विवाद के बाद इधर एक अप्रैल 13 से नये ठेकेदार को 58.47 लाख में छह माह में कार्य पूरा करने को मिला है। इन दिनों कार्य के तहत विशाल स्लैब डालने का कार्य चल रहा है, जिसे देखते हुए एवं केदारघाटी में आई भीषण तबाही को देखते हुए यह सवाल जोरों से उठ रहा है कि नैनीझील के मुहाने पर इतना विशालकाय निर्माण बड़ी आपदा को निमंत्रित करना तो नहीं है। कुमाऊं विवि के पूर्व प्राध्यापक एवं पर्यावरणविद् डा. अजय रावत का कहना है कि निर्माण से पूर्व ईआईए (इन्वायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट) यानी पर्यावरणीय परीक्षण और जनता से ईआईएस (इन्वायरंमेंट इम्पेक्ट स्टेटमेंट) यानी जनता के विचार भी नहीं लिए गए। उन्होंने प्रदेश में सभी जलराशियों के 30 फीट की दूरी में पहले से निर्माण प्रतिबंधित होने की बात भी कही। इस बारे में झील विकास प्राधिकरण के सचिव विनोद गिरि गोस्वामी ने कहा कि नदी किनारे नए निर्माणों पर रोक लगने जा रही है, जबकि यह राज्य एवं केंद्र सरकार से पूर्व में स्वीकृत निर्माण है। उन्होंने यहां कियोस्क (दुकानें) बनाने के कारण रोडवेज स्टेशन और वाहनों के लिए जगह की कमी की बात स्वीकारी, अलबत्ता कहा कि स्थान हो जाएगा। पूर्व में रोडवेज के अधिकारी यहां स्टेशन स्थानांतरित करने की हामी भर चुके हैं, और अभी तक मना करने की औपचारिक जानकारी नहीं है। प्रदेश में नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित करने की हुई है घोषणा नैनी झील का अतिरिक्त पानी यहीं से निकलता है बाहर यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस निर्माण की शुरूआत में पूर्व में मौजूद ढांचे को तोड़ने के लिए धमाके भी किए गए थे, जिसके फलस्वरूप दरार उत्पन्न हो गई थीं, और झील से अधिक पानी का रिसाव होने लगा था। इसके निदान को बांध की तरह "नेटिंग" करने की सलाह दी गई थी, लेकिन वह कार्य भी नहीं किए गए। 

वर्ष 1898 में हुए भूस्खलन में हुई थीं 28 मौतें

नैनीताल। बलियानाला क्षेत्र नैनीताल नगर का आधार है, और बेहद कमजोर भौगोलिक व भूगर्भीय संरचना वाला है। मेन बाउंड्री के निकट स्थित इस नाले में हमेशा से भू-धंसाव होता रहता है। प्रख्यात पर्यावरणविद् डा. अजय रावत बताते हैं कि 17 अगस्त 1898 को यहां टूटा पहाड़ के पास भूकंप के साथ बेहद बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसकी वजह से ब्रेवरी (बीरभट्टी) में बियर की भट्टी में कार्यरत एक अंग्रेज समेत 28 लोग मारे गए थे। वर्तमान में भी यह क्षेत्र धंस रहा है। हरिनगर क्षेत्र को खाली कराने का प्रस्ताव है। ऐसे में डा. रावत झील के मुहाने पर इतने बड़े निर्माण को नगर के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं।

मंगलवार, 28 मई 2013

शून्य से नीचे गया नैनी झील का जलस्तर

Rashtriya Sahara, 28th May 2013
हर रोज 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी की दर से घट रहा है जलस्तर
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी में इस वर्ष शीतकाल में और आगे भी लगातार हुई वर्षा के बाद उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ष नैनीझील पिछले वर्ष जैसा भयावह चेहरा नहीं दिखाएगी लेकिन नगरवासियों, पर्यावरण प्रेमियों की उम्मीदों पर सीजन की मार बेहद गहरी पड़ी है। उम्मीदों के विपरीत सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के 12 दिन के अंदर ही नैनी झील का जल स्तर मापे जाने की व्यवस्था के तहत शून्य के नीचे चला गया है। इससे भी भयावह तथ्य यह है झील का जलस्तर हर रोज घटने की दर 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी तक पहुंच गई है, और यह दर लगातार बढ़ रही है। नैनीझील के जल स्तर और बारिश के गत तीन वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो इस वर्ष 26 मई को झील का जल स्तर शून्य के नीचे गया है, जबकि 2011 में तीन मई को और 12 में 30 अप्रैल को ही शून्य के नीचे चला गया था। इस लिहाज से इस वर्ष देरी से झील का जल स्तर गिरा है लेकिन यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अब तक 674.64 मिमी बारिश दर्ज हुई है, जबकि 11 में इसकी करीब आधी यानी 362.96 मिमी और 12 में करीब चौथाई यानी 191.77 मिमी ही बारिश हुई थी। यानी इस वर्ष गत वर्ष के मुकाबले चार गुना अधिक बारिश होने के बावजूद 26 दिन बाद ही झील का जल स्तर शून्य के नीचे आ गिरा है। एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि इस वर्ष नौ मई तक झील का जल स्तर गिरने की दर 0.05 इंच यानी करीब 13 मिमी प्रतिदिन थी जो इसके बाद सीधे दोगुनी होकर 0.1 इंच और इधर सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के दिन यानी 16 मई से 0.13 इंच प्रति दिन हो गई है। आगे इसी तरह सीजन की भीड़भाड़ के बरकरार रहने से जल की खपत और गरमी बढ़ने से वाष्पीकरण की दर बढ़ने से झील के सूखने की दर में भी तेजी आनी लाजमी है।

झील को दो वर्षो से 'रिफ्रेश' होने का इंतजार

नैनीताल। नैनीझील का जल स्तर वर्ष 2011 में तीन मई से एक जुलाई के बीच शून्य से नीचे रहा था और बारिश होने पर 29 जुलाई को ही जल स्तर 8.7 फीट पहुंच गया था, जिस कारण झील के गेट खोलने पड़े थे, जबकि बीते वर्ष 2012 में गरमियों में 30 अप्रैल से 17 जुलाई तक जल स्तर शून्य से नीचे (अधिकतम माइनस 2.6 फीट तक) रहा था और आगे खूब बारिश होने के बावजूद झील के गेट नहीं खुल पाए थे। इस कारण झील का गंदा पानी व गंदगी दो वर्षो से बाहर नहीं निकल पाई है और झील ‘रिफ्रेश’ नहीं हो पाई है।

रविवार, 3 मार्च 2013

नैनीताल का यूं मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की....



  • प्रतिबंध लगाने के बावजूद नैनीताल में आई अवैध निर्माणों की बाढ़ 
  • डीएम की जांच रिपोर्ट पर आयुक्त ने दिए थे अवैध निर्माण ध्वस्त करने के निर्देश 
नैनीताल (एसएनबी)। सरोवरनगरी में निर्माणों पर प्रतिबंध अवैध निर्माणों को और बढ़ावा देने वाला साबित हुआ है। डीएम निधिमणि त्रिपाठी के निर्देशों पर एडीएम विनोद गिरि गोस्वामी द्वारा तैयार जांच रिपोर्ट में शनिवार को यह बात साफ तौर पर उजागर हुई है। जांच रिपोर्ट में अवैध निर्माणकर्ताओं द्वारा प्रयोग किए जा रहे अनेक अनूठे तरीके प्रकाश में आए। डीएम ने यह जांच रिपोर्ट कुमाऊं आयुक्त डा. हेमलता ढौंढियाल को भेज दी थी। आयुक्त ने झील विकास प्राधिकरण के सचिव को जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने को कहा है। वहीं झीविप्रा के सचिव का कहना है कि प्राधिकरण की कार्य सीमा में कार्रवाई की जाएगी। कई संस्तुतियां शासन स्तर की हैं, उन पर शासन से परामर्श लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि विगत माह एडीएम श्री गोस्वामी ने नगर के अयारपाटा, लोंग व्यू, कैलाश व्यू, तल्लीताल, स्नो व्यू, ब्रेवरी कंपाउंड, तारा कंपाउंड, सात नंबर, सुख निवास, गो कार्टेज, जू रोड व माल रोड क्षेत्र का व्यापक निरीक्षण किया था। इस आधार पर उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में की गई संस्तुतियां डीएम, कुमाऊं आयुक्त से होते हुए झीविप्रा सचिव तक पहुंच गई हैं। आगे कार्रवाई का इंतजार है।

जांच में हुआ खुलासा


  • एक-दो कमरों के या मरम्मत के मानचित्र पास कराकर और निर्माणस्थल पर उनके बोर्डों की आड़ में हो रहे बड़े निर्माण 
  • वृक्षों से तीन मीटर की दूरी पर ही निर्माण के नियम के विरुद्ध पेड़ों को चिनकर या पेड़ों को भवनों के भीतर घेरकर भी हो रहे निर्माण 
  • नालों पर अतिक्रमण कर और नालों के ऊपर भी हो रहे निर्माण 
  • सड़कों पर बेरोकटोक रखी जा रही निर्माण सामग्री 
  • सील तोड़कर भी हो रहे निर्माण, लोग सील तोड़कर रह भी रहे मकानों में 
  • ग्रीन बेल्ट क्षेत्रों में 'प्लाट बिकाऊ हैं' के बोर्ड लगाकर हो रही जमीन की खरीद-फरोख्त 
  • कंपाउंड करने की नीति दे रही अवैध निर्माण को बढ़ावा, लोग अवैध निर्माणों को कंपाउंड कराकर करा रहे वैध


जांच रिपोर्ट में की गई संस्तुतियां


  • संवेदनशील, असुरक्षित व ग्रीन बेल्ट क्षेत्रों में निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे 
  • यहां हुए निर्माणों के बिजली, पानी व टेलीफोन कनेक्शन कटें 
  • निर्माण सामग्री लाने के लिए हो परमिट व्यवस्था, प्रयोग करने व रखने की जगह बताने पर ही मिलें परमिट 
  • व्यावसायिक निर्माणों पर लगे पूर्ण प्रतिबंध 
  • राजमिस्त्रियों का हो पंजीकरण, उन्हें मानकों के अनुसार कार्य करने का दिया जाए प्रशिक्षण 
  • ग्रीन बेल्ट की जमीन भूस्वामियों से सर्किल रेट पर खरीदकर वन विभाग को दे दी जाए 
  • अनुमति से अधिक के निर्माणों पर पास नक्शे हों निरस्त 
  • अवैध निर्माणों को सील करने की व्यवस्था अव्यावहारिक 
  • नगर के प्रतिबंधित क्षेत्रों की जानकारी का हो व्यापक प्रचार-प्रसार

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शनिवार, 2 मार्च 2013

मापी जाएगी टेक्टोनिक प्लेटों की गतिशीलता

साफ होगी भारतीय प्लेट के तिब्बती प्लेट में धंसने की गति : प्रो. पंत
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक भूवैज्ञानिक सामान्यतया यह कहते आए हैं कि भारतीय उप महाद्वीप करीब 50 से 55 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर गतिमान है। इस दर से भारतीय टेक्टोनिक प्लेट तिब्बती प्लेट में समा रही है, लेकिन अब पहली बार भारतीय प्लेट की गति को ही उत्तराखंड के हिमालयों में विभिन्न टेक्टोनिक हिस्सों के बीच आपसी गतिशीलता के रूप में मापा जाएगा। इस हेतु केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी परियोजना स्वीकृत हो गई है, जिसके तहत राष्ट्रीय भूभौतिक शोध संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक कुमाऊं विवि के भूवैज्ञानिकों और उनके द्वारा पूर्व में स्थापित भूकंपमापी उपकरणों और नई जीआईएस पण्राली से जुड़े उपकरणों की मदद से भारतीय प्लेट की वास्तविक गति का पता लगाएंगे। उल्लेखनीय है कि देश में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए तिब्बती प्लेट में धंसते जाने के कारण ही है। बताया जाता है कि करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट तिब्बती प्लेट से टकराई थी, और इसी कारण उस दौर के टेथिस महासागर में इन दोनों प्लेटों की भीषण टक्कर से आज के हिमालय का जन्म हुआ था। आज भी दोनों प्लेटों के बीच यह गतिशीलता बनी हुई है, और इसकी गति करीब 50 से 55 मिमी प्रति वर्ष बताई जाती है। इधर भूविज्ञान मंत्रालय की परियोजना के तहत हिमालय के हिस्सों- लघु हिमालय से लेकर उच्च हिमालय के बीच के विभिन्न भ्रंशों के बीच इस गतिशीलता को गहनता से मापा जाएगा। कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत ने बताया कि एनजीआरआई हैदराबाद के डा. विनीत गहलौत और आईआईटी कानपुर के प्रो. जावेद मलिक गंगा-यमुना के मैदानों को शिवालिक पर्वत श्रृंखला से अलग करने वाले हिमालय फ्रंटल थ्रस्ट, शिवालिक व लघु हिमालय को अलग करने वाले मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी), इसी तरह आगे रामगढ़ थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, बेरीनाग थ्रस्ट व मध्य हिमालय से उच्च हिमालय को विभक्त करने वाले मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे विभिन्न टेक्टोनिक सेगमेंट्स के बीच आपस में उत्तर दिशा की ओर गतिशीलता का गहन अध्ययन करेंगे। इस हेतु प्रदेश के पीरूमदारा, काशीपुर, कोटाबाग व नानकमत्ता व नैनीताल में जीपीएस आधारित उपकरण लगाए जाएंगे जो लंबी अवधि में इन स्थानों पर लगे उपकरणों की उनकी वर्तमान मूल स्थिति के सापेक्ष विचलन को नोट करते रहेंगे। इनके अलावा कुमाऊं विवि द्वारा कुमाऊं में भूकंप मापने के लिए मुन्स्यारी, तोली (धारचूला), नारायणनगर (डीडीहाट), धौलछीना और भराड़ीसेंण में लगाए गए उपकरणों की भी मदद ली जाएगी। 

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

अंग्रेजों के जमाने की सिफारिशें बचाएंगी नैनीताल को !



  • फिर खुली 1869-1873 की ‘हिल साइड सेफ्टी कमेटी’ की फाइल 
  • राज्यपाल की पहल पर लोनिवि ने तैयार किया नैनीताल की सुरक्षा के लिए 58 करोड़ रुपये के सुरक्षा कार्यों का प्रस्ताव 
नवीन जोशी नैनीताल। आखिर नैनीताल प्रशासन को 1869 एवं 1873 में सरोवरनगरी की सुरक्षा के बाबत महत्वपूर्ण सिफारिशें देने वाली हिल साइड सेफ्टी कमेटी (पूरा नाम रेगुलेशन इन कनेक्शन विद हिल साइड सेफ्टी एंड लेक कंट्रोल, नैनीताल) की याद आ गई है। इस समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए लोक निर्माण विभाग के प्रांतीय एवं निर्माण खंडों ने संयुक्त रूप से 58.02 करोड़ रुपयों का प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे विभागीय स्तर पर अधीक्षण अभियंता, मुख्य अभियंता आदि से होते हुए शासन को भेजा जाना है। खास बात यह है कि यह प्रस्ताव प्रदेश के राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी की पहल पर तैयार किया गया है। गौरतलब है कि देश-प्रदेश के महत्वपूर्ण व भूकंपीय संवेदनशीलता के लिहाज से जोन-चार में रखे गये नैनीताल नगर की कमजोर भूगर्भीय संरचना के कारण नगर की सुरक्षा पर अंग्रेजों के दौर से ही चिंता जताई रही है। नगर में अंग्रेजी दौर में 1867, 1880,1898 व 1924 में भयंकर भूस्खलन हुआ था। 1880 के भूस्खलन ने तो 151 लोगों को जिंदा दफन करने के साथ ही नगर का नक्शा ही बदल दिया था। इसी दौर में 1867 और 1873 में अंग्रेजी शासकों ने नगर की सुरक्षा के लिए सर्वप्रथम कुमाऊं के डिप्टी कमिश्नर सीएल विलियन की अध्यक्षता में अभियंताओं एवं भूगर्भ वेत्ताओं की हिल साइड सेफ्टी कमेटी का गठन किया था। इस समिति ने समय-समय पर अनेक रिपोर्टे पेश कीं, जिनके आधार पर नगर में बेहद मजबूत नाला तंत्र विकसित किया गया, जिसे आज भी नगर की सुरक्षा का मजबूत आधार बताया जाता है। इस समिति की 1928 में नैनी झील, पहाड़ियों और नालों के रखरखाव के लिए जारी समीक्षात्मक रिपोर्ट और 1930 में जारी स्टैंडिंग आर्डरों को ठंडे बस्ते में डालने के आरोप शासन-प्रशासन पर लगातार रहते हैं, और इसी को नगर के वर्तमान हालातों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इधर, गत पांच जुलाई को प्रदेश के राज्यपाल ने नैनीताल राजभवन में नगर की सुरक्षा के मद्देनजर गणमान्य नागरिकों व जानकार लोगों तथा संबंधित विभागीय अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक ली थी। इसके बाद तेज गति से दौड़े लोनिवि ने नगर की पहाड़ियों में हो रहे भूस्खलन व कटाव के लिए नगर के कुल 62 में से नैनी झील के जलागम क्षेत्र के 42 नालों में से अधिकांश के क्षतिग्रस्त होने को प्रमुख कारण बताया है, तथा इनका सुधार आवश्यक करार दिया है। इन कायरे के लिए प्रांतीय खंड के अधीन 13.32 करोड़ एवं निर्माण खंड के अधीन 44.69 करोड़, कुल 5801.6 लाख यानी करीब 58.02 करोड़ रुपये के कायरे का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। लोनिवि प्रांतीय खंड के अधिशासी अभियंता ने उम्मीद जताई कि जल्द प्रस्तावों को शासन से अनुमति मिल जाएगी। बहरहाल, माना जा रहा है कि यदि राज्यपाल के स्तर से हुई इस पहल पर शासन में अमल हुआ तो नैनीताल की पुख्ता सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है। 



प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु 

  • राजभवन की सुरक्षा को नैनीताल बाईपास से गोल्फ कोर्स तक निहाल नाले में बचाव कार्य 
  • नालों की मरम्मत एवं पुनर्निर्माण होगा 
  • आबादी क्षेत्र के नाले स्टील स्ट्रक्चर व वेल्डेड जाली से ढकेंगे 
  • नालों के बेस में सीसी का कार्य नालों एवं कैच पिट से मलबा निस्तारण 
  • नाला नंबर 23 में यांत्रिक विधि से मलबा निस्तारण हेतु कैच पिटों का निर्माण 
  • मलबे के निस्तारण के लिए दो छोटे वाहनों की खरीद



राजभवन की सुरक्षा को 38.71 करोड़ का प्रस्ताव
नैनीताल। लोनिवि द्वारा तैयार 58.02 करोड़ के प्रस्तावों में सर्वाधिक 38.71 करोड़ रुपये नैनीताल राजभवन की सुरक्षा के लिए निहाल नाले के बचाव कायरे पर खर्च किये जाएंगे। लोनिवि की रिपोर्ट में नैनीताल राजभवन से लगे गोल्फ कोर्स के दक्षिणी ढाल की तरफ 20- 25 वर्षो से जारी भूस्खलन पर भी चिंता जताते हुए इस नाले से लगे नये बन रहे नैनीताल बाईपास से गोल्फ कोर्स तक की पहाड़ी की प्लम कंक्रीट, वायर क्रेट, नाला निर्माण, साट क्रीटिंग व रॉक नेलिंग विधि से सुरक्षा किये जाने की अति आवश्यकता बताई गई है।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दरकती जमीन पर खड़े हो रहे आफतों के महल


आपदा प्रभावित मंगावली क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माणों से भूस्खलन का खतरा बढ़ा

नवीन जोशी, नैनीताल। राज्य में चाहे आपदा प्रबंधन का जितना शोर हो रहा हो और मुआवजे के रूप में ही करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े हों, लेकिन इतना साफ़ हो गया है कि न सरकार और न लोगों ने ही आपदा से जरा भी सबक लिया है। इसकी बानगी है दैवीय आपदा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ मंगावली क्षेत्र। यहां एक ओर मकान दरक रहे हैं, वहीं वैध- अवैध निर्माण जारी हैं। पहले से हिली धरती के सीने में गड्ढों के रूप में घाव किए जा रहे हैं। प्रतिदिन टनों निर्माण सामग्री वहां उड़ेली जा रही है। 
मंगावली शेर का डांडा पहाडी पर स्थित नगर से अलग-थलग एवं दुर्गम क्षेत्र है। तीखी चढ़ाई वाले बिड़ला मार्ग से इस ओर वाहन मुश्किल से ही चढ़ पाते हैं। इसके बावजूद यहां इन दिनों बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं। यह कार्य वैध है अथवा अवैध, तात्कालिक रूप से जिम्मेदार झील विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को भी मालूम नहीं है, लेकिन जिस तरह व्यापक स्तर पर जमीन खोद कर पत्थरों के पहाड़ बनाए जा रहे हैं, उससे तथा अधिकारियों की जानकारी में मामला न होने से साफ हो जाता है कि निर्माण पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। पूछने पर झील विकास प्राधिकरण के सचिव एचसी सेमवाल ने कहा कि निर्माणों की जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी। 
शेर का डांडा में हुआ था भूस्खलन 
बीती 18-19 सितंबर २०१० को अतिवृष्टि ने नगर के शेर का डांडा पहाड़ी में जबरदस्त हलचल मचाई थी। इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित बिड़ला विद्या मंदिर परिसर में गिरे बड़े बोल्डर से विद्यालय की डिस्पेंसरी व कर्मचारी आवासों को नुकसान हुआ था। इसके नीचे मंगावली में पालिकाकर्मी साजिद अली के मकान सहित कई घरों में दरारें आई थीं, जो अब भी चौड़ी होती जा रही हैं। इससे नीचे सीएमओ कार्यालय के पास स्वास्थ्य विभाग के आवास पर भी बोल्डर गिरा था तथा पहाड़ी की तलहटी में कैंट क्षेत्र में भी भारी भूस्खलन हुआ था, व भवाली मार्ग अब भी इसी कारण ध्वस्त पड़ी है। ऐसे क्षेत्र में निर्माण सवालों के घेरे में हैं।