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सोमवार, 12 जनवरी 2015

अपनी बनाई दूरबीनों से देख सकेंगे चांद-सितारे

नेहरू तारामंडल इलाहाबाद में चल रही है 12 दिवसीय कार्यशाला 
कार्यशाला में दूरबीनों के लेंसों पर एल्युमिनियम की परत चढ़ाने का कार्य एरीज में
नैनीताल (एसएनबी)। केंद्र सरकार की जनता को खगोल विज्ञान से जोड़ने के उद्देश्य से चल रही एक योजना के तहत मूलत: नेहरू तारामंडल इलाहाबाद में बीती पांच से 16 जनवरी तक के लिए एक 12 दिवसीय कार्यशाला चल रही है, जिसमें देशभर के 40 चयनित लोगों को खुद के लिए पांच इंच व्यास की 25 दूरबीनें बनाने का मौका दिया जा रहा है। एक मीटर फोकस दूरी वाली इन ‘न्यूटोनियम डोप्सोनियन’ प्रकार की दूरबीनों से सूर्य, चंद्रमा के अलावा मंगल, बुध, बृहस्पति व उसके चार उपग्रह, शुक्र एवं उसके छह उपग्रहों, शनि तथा उसके उपग्रह टाइटन व अरुण (यूरेनस) आदि ग्रहों और उनके उपग्रहों को देखा जा सकेगा। कार्यशाला के तहत सभी दूरबीनों के लेंसों पर उनकी परावर्तन क्षमता बढ़ाने के लिए एल्युमिनियम की परत चढ़ाने (एल्युमिनियम कोटिंग) का कार्य एरीज में हो रहा है। 

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सोमवार (12.01.2015) को एरीज में कार्यशाला से जुड़े एवं खुद की भी दूरबीन तैयार कर रहे एरीज के विज्ञान केंद्र तथा पब्लिक आउटरीच केंद्र के समन्वयक डा. आरके यादव की अगुआई में आयूका पुणो, नेहरू प्लेनिटोरियम इलाहाबाद व एरीज के लोगों व विशेषज्ञों ने लेंसों पर एल्युमिनियम की परत चढ़ाने का कार्य प्रारंभ किया। यादव ने बताया कि इससे पूर्व प्रतिभागियों ने इलाहाबाद में पांच इंच व्यास के 19 मिमी मोटे लेंसों को सिलिकॉन कार्बाइड से घिसकर उनके केंद्र पर एक मिमी की गहराई युक्त अवतल लेंस के रूप में तैयार किया है। दूरबीनें 18वीं सदी में महान वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन द्वारा प्रयोग की गई तकनीक पर बनाई जा रही हैं, इसलिए उन्हीं के नाम पर दूरबीन का नाम रखा गया है। आगे लेंसों को वापस इलाहाबाद ले जाकर वहां इन्हें एक खोखली नली में एक और 12 मिमी मोटे लेंस के साथ समायोजित कर दूरबीन का स्वरूप दिया जाएगा। कार्यशाला में केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय का विज्ञान प्रसार संस्थान नोएडा पांच लाख रुपये खर्च कर रहा है। डा. विमान मेंधी, तुषार पुरोहित, उमंग गुप्ता, बीसी पंत, अशोक सिंह, प्रेम कुमार, हरीश आर्या, राजदीप सिंह व बाबू राम आदि इस कार्य में जुटे हुए थे। लेंस से कभी न देखें सूर्य को नैनीताल। आयूका पुणो से आये लेंस निर्माण विशेषज्ञ तुषार पुरोहित ने कहा कि सूर्य को किसी भी प्रकार की, यहां तक कि छोटी बच्चों की दूरबीनों से भी नहीं देखना चाहिए। इससे आंखों की रोशनी जा सकती है। सामान्य कैमरों से सूर्य की फोटो भी नहीं खींचनी चाहिए। यदि बहुत जरूरी हो तो लेंसों पर सूर्य से बचाव की फिल्म लगाकर ही सूर्य को देखा जा सकता है। 

शनिवार, 23 मार्च 2013

नक्षत्रों से ढूंढिए अपना पंचतत्व, बदलिए तकदीर


नैनीताल में मिली सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि, जिसमें बताया गया है पंचतत्वों से नक्षत्रों का संबंध
नवीन जोशी नैनीताल। भारतीय धार्मिक और नक्षत्र विज्ञान के ग्रंथों में मनुष्य की जन्मतिथि व समय से निर्धारित होने वाली राशियों का मानव शरीर के मुख्य घटक पंचतत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से संबंध बताया गया है। यहां एक ऐसी सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि प्रकाश में आई है, जिसमें पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों के बीच के संबंध बताने के साथ ही इसके माध्यम से मनुष्य के जीवन और उसकी प्रकृति में सुधार करने के तरीके बताए गए हैं। रत्नमाला नाम के इस ग्रंथ पर यदि विस्तृत शोध हो तो भारतीय नक्षत्र विज्ञान को नए आयाम दे सकता है। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर के संस्कृत विभाग में वर्षो से पड़ी "रत्नमाला" नाम की पांडुलिपि मिली है। इसका अध्ययन एवं राष्ट्रीय पांडुलिपि संरक्षण मिशन के तहत संरक्षण कर रहे डा. सोमबाबू शर्मा बताते हैं कि इस पांडुलिपि में पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों का संबंध वैज्ञानिक आधार के साथ बताया गया है। संस्कृत में श्लोक एवं संस्कृतिहंदी मिश्रित व्याख्या रूप में लिखी गई इस पांडुलिपि में सभी 28 नक्षत्रों के पंचतत्वों से संबंध और उनके आधार पर मानव जीवन को बेहतर बनाने के उपाय बताए गए हैं। उदाहरणार्थ, सर्वाधिक बुरे बताए जाने वाले मूल नक्षत्र को मघा व अश्लेषा के साथ अग्नि तत्व से तथा पुनर्वसु, हस्त, अश्लेषा, मृगशिरा, रेवती, अनुराधा व ज्येष्ठा के साथ वायु तत्व से संबंधित बताया गया है। अग्नि तत्व से संबंधित जातक जल तत्व से निकटता दिखाकर स्वयं का जीवन सुधार सकते हैं, जबकि इसके उलट सामान्य मान्यता के अनुसार मूल नक्षत्र के लोग भगवान शनि की पूजा करते हुए अग्नि को अधिक भड़काते हुए तेल के दीपक जलाते हैं। वहीं जल तत्व से संबंधित जातक पानी से दूर रहकर तथा दीपक जलाकर व हवन, यज्ञ आदि कर अपना जीवन बेहतर कर सकते हैं। डा. शर्मा बताते हैं कि पांडुलिपि में नक्षत्रों को रत्नों की तरह महत्वपूर्ण बताते हुए इनकी विस्तृत व्याख्या की गई है, किसी अन्य पुस्तक में अब तक उल्लेखित न किए गए अविजित नाम के नक्षत्र का भी उल्लेख है, जिसका प्रयोग समस्या का और कोई समाधान न होने की दशा में किया जाता है, साथ ही इसमें 28 योगिनियों का भी उल्लेख है। वह कहते हैं कि विस्तृत शोध किया जाए तो यह खोज नक्षत्र विज्ञान को नई दिशा दे सकती है। उल्लेखनीय है कि मानव शरीर के बारे में कहा जाता है कि इसकी रचना सृष्टि के रचयिता ब्रrा ने पंचतत्वों की मदद से की थी। मनुष्य इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बनता है और आखिर इन्हीं में मिल जाता है। मनुष्य अपने जीवन में भी इन पंचतत्वों से साम्य बनाता हुआ चलता है। मनुष्य के इन पंचतत्वों से संबंधों को धार्मिक ग्रंथों के साथ नक्षत्र विज्ञान में राशियों से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए कर्क व मीन राशि के जातकों को जल तत्व से, वृष, सिंह आदि राशियों को पृथ्वी तत्व से जोड़ा गया है। इस प्रकार कर्क व मीन राशि के जातक जल की तरह चंचल व अस्थिर प्रकृति के होते हैं तो वृष व सिंह राशि के जातक अडिग व ठोस निर्णय लेने वाले माने जाते हैं। नक्षत्र विज्ञान में 28 नक्षत्र माने जाते हैं। जन्म पत्रिकाओं में मनुष्य की राशियों के साथ ही नक्षत्रों का भी जिक्र प्रमुखता से होता है। चूंकि इनकी संख्या अधिक है, इसलिए इनके अध्ययन से मनुष्य की प्रकृति, भविष्य आदि के बारे में अधिक सटीक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं।

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

नैनीताल में बनेगा दुनिया की स्वप्न-'टीएमटी' का आधार

अमेरिका के हवाई द्वीप में स्थापित होनी है दुनिया की सबसे बड़ी 30 मीटर व्यास की दूरबीन
इसका आधार-'मिरर सेगमेंट सपोर्टिंग एसेंबली' बनेगी एरीज में
भारत एक हजार करोड़ रुपए की अतिमत्वाकांक्षी परियोजना में एक फीसद का है भागीदार
एरीज में 'टीएमटी' की बनने वाली 'मिरर सेगमेंट सपोर्टिंग एसेंबली'

नवीन जोशी, नैनीताल। वर्ष 2001 व 2003 में पहली बार दुनिया भर के खगोल विज्ञानियों द्वारा देखा गया 30 मीटर व्यास की आप्टिकल दूरबीन ‘थर्टी मीटर टेलीस्कोप यानी टीएमटी’ का ख्वाब अब ताबीर होने की राह पर चल पड़ा है। नैनीताल स्थित एरीज का सौभाग्य ही कहेंगे कि दुनिया की इस स्वप्न सरीखी दूरबीन का आधार यानी सेगमेंट सर्पोटिंग एसेंबली नाम के करीब 60 हिस्से यहाँ बनाए जाएंगे। आधार के इन हिस्सों पर ही इस विशालकाय 56 मीटर ऊंची व करीब 10 टन भार की दूरबीन का वजन इसे पूरे आकाश में देखने योग्य घुमाने के साथ उसे सहने का गुरुत्तर दायित्व होगा। इन महत्वपूर्ण हिस्सों के निर्माण की तैयारी के क्रम में निर्माता कंपनियों के चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 
गौरतलब है कि ‘टीएमटी’ की महांयोजना करीब 1.3 बिलियन डॉलर यानी करीब 7,500 करोड़ रुपयों की है। भारत सहित छह देश-कैलटेक (California Institute of Technology), अमेरिका, कनाडा, चीन व जापान इस महांयेाजना में मिलकर कार्य कर रहे हैं। अल्ट्रावायलेट (0.3 से 0.4 मीटर तरंगदैर्ध्य पराबैगनी किरणों) से लेकर मिड इंफ्रारेड (2.5 मीटर से एक माइक्रोन तरंगदैर्ध्य तक की अवरक्त) किरणों (टीवी के रिमोट में प्रयुक्त की जाने वाली अदृय) युक्त इस दूरबीन को प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप के मोनाकिया द्वीप समूह में ज्वालामुखी से निर्मित 13,8 फिट (4,2 मीटर) ऊंचे पर्वत पर वर्ष 2021 में स्थापित किऐ जाने की योजना है। उम्मीद है कि इसे वहाँ स्थापित किए जाने का कार्य 2014 से शुरू हो जाएगा। यह दूरबीन हमारे सौरमंडल व नजदीकी आकाशगंगाओं के साथ ही पड़ोसी आकाशगंगाओं में तारों व ग्रहों के विस्तृत अध्ययन में अगले 50 -100  वर्षों तक सक्षम होगी। भारत को इस परियोजना में अपने ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी व उपकरणों के निर्माण में एक फीसद भागेदारी के साथ सहयोग देना है। देश के इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फार एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रो फिजिक्स (आईसीयूएए) पुणे को इसके सॉफ्टवेयर संबंधी, इंडियन इंस्टिूट ऑफ एस्ट्रो फिजिक्स (आईआईए) बंगलुरु को मिरर कंट्रोल सिस्टम और एरीज को मत्वपूर्ण ६०० मिरर सेगमेंट सर्पोंटिंग सिस्टम बनाने की जिम्मेदारी मिली है। यह महत्वपूर्ण हिस्से यांत्रिक के साथ ही इलेक्ट्रानिक सपोर्ट सिस्टम से भी युक्त होंगे। पीआरएल अमदाबाद व भाभा परमाणु संस्थान-बार्क मुम्बई को भी कुछ छोटी जिम्मेदारियां मिली हैं। एरीज को मिली जिम्मेदारी को सर्वाधिक मत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि उसे देश की सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन को निकटवर्ती देवस्थल में स्थापित करने हेतु तैयार करने का अनुभव है। एरीज के निदेशक प्रो. रामसागर इस जिम्मेदारी से खासे उत्साहित हैं। उन्होंने बताया कि मिरर सेगमेंट सपोर्टिंग सिस्टम को किसी निर्माता कंपनी से बनाया जाएगा, जिसके चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। एरीज इसके निर्माण में 3.6 मीटर दूरबीन की तरह ही डिजाइन, सुपरविजन और इंजीनियरिंग में सयोग करेगा।

अवरक्त किरणों को देखना है चुनौती
देश-दुनिया में बड़ी से बड़ी व्यास की दूरबीन बनाने की कोशिशों का मूल कारण अवरक्त यानी इन्फ्रारेड किरणों को न देख पाने की समस्या है। दुनिया में अब तक मौजूद दूरबीनें 35 से 70 तरंग दैर्ध्य की किरणों तथा ऐसी किरणें उत्सर्जित करने वाले तारों व आकाशगंगाओं को ही देख पाती हैं। जबकि इससे अधिक तरंग दैर्ध्य की अवरक्त यानी इंफ्रारेड किरणों को देखने के लिए इनके अनुरूप पकरणों की जरूरत होती है। ऐसी बड़ी दूरबीनें ऐसी प्रकाश व्यवस्था से भी जुडी होंगी जो बड़ी तरंग दैर्ध्य की अवरक्त किरणों के माध्यम से बिना वायुमंडल और ब्रह्मांड में विचलित हुए सुदूर अंतरिक्ष के निर्दिस्थ स्थान पर पहुँचकर वहाँ का हांल बता पाऐंगी। प्रोजक्ट वैज्ञानिक आईयूसीएए के डा.एएन रामप्रकाश ने बताया कि 30 मीटर की दूरबीन 3.6 मीटर की दूरबीन के मुकाबले 81 गुने मद्धिम रोशनी वाले तारों को भी देख पाएगी।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

देश में पहुंची एशिया की दूसरी सबसे बड़ी दूरबीन, देवस्थल में होगी स्थापित


नैनीताल के देवस्थल में स्थापित होगी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन गुजरात के मुन्द्रा बंदरगाह से दिल्ली के लिए रवाना
नवीन जोशी नैनीताल। दुनिया की आधुनिकतम तकनीक के साथ देश ही नहीं एशिया की सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन भारत पहुंच गई है। गुजरात के मशहूर मुन्द्रा बंदरगाह पर उतरकर यह राजधानी दिल्ली के लिए रवाना कर दी गई है। आगे इसे नैनीताल जनपद के देवस्थल में स्थापित किया जाना है। देवस्थल के प्रदूषणमुक्त स्वच्छ वायुमंडल में 120 करोड़ रुपये लागत से स्थापित की जा रही इस दूरबीन से रात्रि में सुदूर अंतरिक्ष में जगमगाने वाले सितारों व अपनी "मिल्की-वे" के साथ ही आस-पास की अनेक आकाशगंगाओं को देखा एवं उनका सूक्ष्म अध्ययन भी किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि एशिया में गत वर्ष ही चीन में एक चार मीटर व्यास की दूरबीन लग चुकी है, बावजूद देवस्थल में लगने जा रही दूरबीन कई मायनों में एशिया की सर्वश्रेष्ठ दूरबीन ही कहलाई जाएगी। एरीज के निदेशक प्रो. रामसागर के अनुसार 3.6 मीटर व्यास और 22 मीटर ऊंची दुनिया की आधुनिकतम एक्टिव आप्टिक्स तकनीक पर बनी इस स्टेलर दूरबीन का शीशा केवल 16.5 सेमी. ही मोटा है। इस प्रकार यह मोटाई और व्यास के अनुपात (व्यास व मोटाई में 10 का अनुपात) में दुनिया में अद्वितीय बताई जा रही है। चीन में लगी दूरबीन कई टुकड़ों (मोजैक) को जोड़कर बनाई गई है। इस दूरबीन के ब्लैंक का निर्माण जर्मनी में और शीशे का निर्माण मास्को (रूस) में हुआ है। यहां से इसे बेल्जियम ले जाकर वहां इसका फैक्टरी टेस्ट किया गया। यह इतनी विशालकाय है कि इसे सफल परीक्षणों के उपरांत खोलने में ही जून से अक्टूबर 2012 तक पांच माह का समय लग गया। इसके बाद नवम्बर में यह भारत के लिए रवाना की गई और बीते माह 15 दिसम्बर के करीब मुन्द्रा बंदरगाह पहुंची। वहां से कस्टम की औपचारिकताओं के बाद इसके करीब 5.6 मीटर लंबे, 5.3 मीटर चौड़े व 1.2 मीटर ऊंचे करीब 13 व 12 टन भारी 18 विशालकाय क्रेट्स (डिब्बों) में 12 ट्रेलरों पर दिल्ली लाया जा रहा है। दिल्ली से आगे हल्द्वानी और आगे पहाड़ पर इसे पहुंचाने का रास्ता और भी कठिन है, लिहाजा मई तक इसके देवस्थल पहुंचने और इस वर्ष अक्टूबर माह तक इससे प्रारंभिक प्रेक्षण किए जाने की संभावना है। प्रो. रामसागर के अनुसार इस दूरबीन से तारों के वर्णक्रम का अध्ययन किया जा सकेगा। दूरबीन के शीशे (मिरर) का निर्माण मास्को की एलजोज नामक कंपनी ने किया है। 

इस समाचार को मूलतः यहाँ क्लिक कर 'राष्ट्रीय सहारा' के 5 जनवरी के अंक में प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं।