सोमवार, 9 दिसंबर 2013

सवा पांच करोड़ साल का हुआ अपना 'हिमालय'

कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग ने अंतरराष्ट्रीय शोध के बाद निकाला निष्कर्ष 
रेडियो एक्टिव डेटिंग से पहुंचे परिणाम तक  
नवीन जोशी नैनीताल। हिमालय की उत्पत्ति के संबंध में लगातार शोध हो रहे हैं। वैज्ञानिकों में हिमालय की शुरुआत को लेकर अलग-अलग मत हैं। कोई इसे दो करोड़, तो कोई तीन करोड़ और कोई साढ़े पांच करोड़ वर्ष पुराना साबित कर रहा है। शोध के इन दावों के बीच कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने भी एक और शोध करने का दावा किया है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि लगभग छह वर्ष तक शोध करने के बाद यह पता लगा है कि हिमालय के बनने की शुरुआत सवा पांच करोड़ वर्ष पहले हुई थी। 
कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक उपकरणों के साथ किए एक अंतरराष्ट्रीय शोध के बाद दावा किया है कि हिमालय के जन्म की मुख्य वजह भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन (तिब्बती प्लेट) में टकराने की शुरुआत 52.2 मिलियन यानी 5.22 करोड़ वर्ष पूर्व हुई थी और इसके बाद टकराने की यह प्रक्रिया लम्बे समय तक जारी रही। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि अब भी भारतीय प्लेट का 35 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर खिसकते हुए यूरेशियन प्लेट में धंस रही है और यही इस क्षेत्र में बड़े भूकंपों की आशंका को बढ़ाने वाला है। कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार ने सोमवार को ‘राष्ट्रीय सहारा’ से इस नये शोध के परिणामों का खुलासा करते हुए यह दावा किया। उन्होंने बताया कि कुमाऊं विवि का शोध पूर्व में भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत की ओर पाए जाने वाले समान प्रकार के जानवरों के परीक्षण के आधार पर किए गए शोधों के आधार पर किए गए शोधों के करीब है, जिसमें हिमालय की उम्र 55 मिलियन वर्ष बतायी जाती है। उन्होंने बताया कि कुमाऊं विवि द्वारा यह परिणाम लद्दाख में पाई जाने वाली ग्रेनाइट की चट्टानों में मिले एक खास अवयव जिरकॉन की चीन व कोरिया में अत्याधुनिक ‘सेन्सिटिव हाई रेजोल्यूसन आयन माइक्रो प्रोब’ (श्रिम्प) तकनीक से आयु का पता लगाकर निकाला गया है। इसे रेडियोएक्टिव डेटिंग भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय शोध जर्नल में इसका प्रकाशन भी हो रहा है। इस शोध के आधार पर प्रो. कुमार कहते हैं कि सर्वप्रथम हिमालय के स्थान पर उस दौर में मौजूद टेथिस महासागर की सामुद्रिक प्लेटें आपस में टकराने से पिघलीं और इसके लावे से लद्दाख के पठारों का और बाद में भारतीय व यूरेशियन प्लेट के अनेक स्थानों पर लंबे समय अंतराल में अलग-अलग टकराने की वजह से वर्तमान हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ। इस शोध परियोजना में प्रो. कुमार के साथ ही विवि के डा. बृजेश सिंह, डा. मंजरी पाठक व डा. सीता बोरा आदि प्राध्यापकों व शोध छात्र-छात्राओं का भी योगदान है। 

सोना, तांबा के भंडार खोजने में मिलेगी मदद 
नैनीताल। कुमाऊं विवि द्वारा किया गया शोध हिमालय की वास्तविक उम्र जानने में तो मदद करता ही है, साथ ही इसके दूरगामी लाभ इस संदर्भ में भी हैं कि इसके जरिए हिमालय के भूगर्भ में पाई जाने वाली बहुमूल्य खनिज संपदा के बारे में भी पता लगाया जा सकता है। प्रो. कुमार कहते हैं कि इस तकनीक की मदद लेते हुए तांबा, सोना व मालिब्डेनम जैसे खनिजों की उपस्थिति वाले क्षेत्रों में इन तत्वों की खोज की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।

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