सोमवार, 30 दिसंबर 2013

नैनीताल में क्या गुल खिलायेगी बचदा और बलराज की दोस्ती !

नैनीताल। एकता संदेश यात्रा के जरिए जहां एक ओर सरदार पटेल के माध्यम से भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के पक्ष में राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, वहीं यात्रा में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के दो स्वघोषित दावेदार बची सिंह रावत ‘बचदा’ और बलराज पासी के एक साथ अगल-बगल खड़े होने के भी राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि दोनों एक- साथ खड़े होकर पार्टी पर टिकट के लिए दबाव बनाना चाहते हैं। साथ ही अन्य दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को अलग-थलग करने और एक-दूसरे के नाम पर सहमत होने का सन्देश भी दे रहे थे। 

पटेल पीएम बनते तो न होता बंटवारा: बचदा

नैनीताल पहुंचकर हुआ एकता संदेश यात्रा का समापन
नैनीताल (एसएनबी)। भाजपा के वरिष्ठ नेता बची सिंह रावत ‘बचदा’ ने कहा कि सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से ही देश एकसूत्र में बांधा था, बावजूद इसके राजनीतिक कारणों से उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। उनका कहना है कि पटेल को प्रधानमंत्री बनाया होता तो देश का बंटवारा न होता। रावत सोमवार को 20 दिसंबर से शुरू हुई एकता संदेश यात्रा के आखिरी पड़ाव नैनीताल पहुंचकर पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के आह्वान पर शुरू हुई इस यात्रा के जरिए देश को एकसूत्र में पिरोने की कोशिश की जा रही है। पूर्व सांसद बलराज पासी ने सरदार पटेल का जीवन वृत्त प्रस्तुत किया। इससे पूर्व नगर में यात्रा के पहुंचने पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने यात्रा का भव्य तरीके एवं गर्मजोशी से स्वागत किया। जिलाध्यक्ष देवेंद्र ढैला, नगर अध्यक्ष विवेक साह, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य खीमा शर्मा, संयोजक रेनू अधिकारी व कुंदन बिष्ट आदि यात्रा रथ पर ही सवार हो गए। पूर्व अध्यक्ष भुवन हरबोला, जगदीश बवाड़ी, सीपी धूसिया, आनंद बिष्ट, मीनू बुधलाकोटी व संतोष साह सहित बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता भी स्वागत में शामिल हुए। 

रविवार, 29 दिसंबर 2013

800 पुलिसकर्मियों की भर्ती का मामला लटका

मिलेंगे 500 नये दारोगा, 250 पदोन्नति से व 250 नई भर्ती से आएंगे : डीजीपी 
नैनीताल (एसएनबी)। उत्तराखंड पुलिस में फिलहाल 800 नये आरक्षियों की भर्ती का मामला लटक गया है। डीजीपी बीएस सिद्धू का कहना है कि अब इन पुलिसकर्मियों की भर्ती नहीं होगी। हालांकि उन्होंने कहा कि पुलिस में 500 नये दारोगा बनाए जा रहे हैं। इनमें से 250 नये दारोगा प्रमोशन के बाद लिए जाएंगे तो 250 दारोगा नई भर्ती से तैनात किये जाएंगे। डीजीपी ने कहा है कि पुलिस महकमा अपने पुलिसकर्मियों को अन्य विभागों से कम वेतन मिलने का परीक्षण भी कराया जाएगा। विभाग मोबाइल हाईवे ट्रैफिक पेट्रोलिंग यूनिट की नई शुरुआत भी करने जा रहा है। डीजीपी संधू ने यह खुलासे रविवार को मुख्यालय में डीआईजी कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में किये। वह यहां उत्तराखंड न्यायिक अकादमी-उजाला भवाली में एसपी व एसएसपी स्तर के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला तय करने के इरादे से आये थे। उन्होंने कहा कि पुलिस की कमी से अदालतों में वादों के शिथिल पड़ जाने की परेशानी से कुछ हद तक निजात मिलेगी। उन्होंने पड़ोसी देश नेपाल में माओवाद की समस्या के मद्देनजर प्रदेश की सीमाओं पर विशेष चौकसी बरतने की बात भी कही, तथा खास तौर पर अपराधों के नियंतण्रके लिए प्रदेश के चार जिलों, दून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर व नैनीताल में पूर्व में गठित होमीसाइड स्क्वाड को फिर से सक्रिय करने का इरादा भी जताया। इस मौके पर डीआईजी जीएन गोस्वामी तथा एसएसपी डा. सदानंद दाते भी मौजूद थे। 

जल्द खुलेंगे 50 नये थाने व चौकियां

हल्द्वानी (एसएनबी)। डीजीपी बीएस सिद्धू ने कहा कि प्रदेश में जल्द ही 50 नये थाने व चौकियां खोली जाएंगी। इसके साथ ही पुलिस महकमे की सभी गाड़ियों का बीमा किया जाएगा। पुलिस को और अधिक सक्षम बनाने के लिए उजाला एकेडमी प्रशिक्षण देगी। यह एकेडमी अब तक 325 एसआई व 15 उप पुलिस अधीक्षकों को प्रशिक्षण दे चुकी है। उन्होंने कहा कि साइबर क्राइम को रोकने के लिए पुलिस को विशेष प्रशिक्षण देने पर विचार किया जा रहा है। डीजीपी सिद्धू रविवार को पुलिस बहुउद्देश्यीय भवन में पत्रकारों से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि उजाला एकेडमी में 19 जनवरी से कुमाऊं के डीएम व एसएसपी की वर्कशाप तथा दो फरवरी से गढ़वाल के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा। एकेडमी में पुलिस को चार्जशीट, केस की पूरी स्टडी करने का प्रशिक्षण दिया जायेगा, ताकि अपराधी किसी भी कीमत पर सजा से बच न सकें। उन्होंने कहा कि र्मडर की जांच के लिए होमी साइट्स जांच कमेटी बनायी गई है। इसमें प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों के साथ ही जांच की पूरी किट को रखा गया है। डीजीपी ने कहा कि हल्द्वानी में निर्माणाधीन फायर स्टेशन भवन के लिए सरकार से 50 लाख रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। इसके अलावा राज्य में जल्दी ही 50 नये थाने व चौकियों खोली जाएंगी।उन्होंने पुलिसकर्मियों के ग्रेड पे के मामले में मुख्यमंत्री के पास प्रस्ताव भेजे जाने की बात कही। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के भत्तों में बढोतरी की गई है। पुलिस की गाड़ियों का बीमा न किये जाने के सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि अगर पुलिस महकमे की गाड़ियों का बीमा नहीं है तो वे जल्द पता कर महकमें की सभी गाड़ियों का बीमा करवाएंगे। उन्होंने कहा कि एमवी एक्ट के तहत प्रत्येक वाहन का र्थड पार्टी बीमा होना जरूरी है। इससे पूर्व डीजीपी को पुलिस ने गार्ड आफ आनर दिया गया। इस मौके पर उप महानिरीक्षक जीएन गोस्वामी व अन्य अफसर थे। 

‘थर्टी फर्स्ट’ के जश्न से आपदा के 'घाव' धुलने की उम्मीद !

पर्यटन कारोबारियों के खिले चेहरे

नैनीताल (एसएनबी)। सरोवरनगरी में ‘थर्टी फस्र्ट’ से पहले एक बार फिर सीजन जैसा माहौल बनना शुरू हो गया है। ‘थर्टी फस्र्ट’ के जश्न मनाने के लिए सैलानियों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप सीजन के बाद पहली बार नगर के होटलों में कमरे पैक होने शुरू हो गये हैं। रविवार को नगर में थर्टी फस्र्ट मनाने के लिए बड़ी तादाद में सैलानी पहुंचे रहे हैं। माल रोड सहित हर ओर सैलानियों का रेला नजर आ रहा है। नैनी झील में भी नौकाओं का पूरे दिन मेला लगा रहा। फ्लैट्स की कार पार्किग दोपहर में ही भर गई, और वाहनों को खेल मैदान में खड़ा करवाना पड़ा। इससे नगर के पर्यटन कारोबारियों के चेहरे खिले नजर आ रहे हैं। वहीं दो दिन पूर्व ही नगर की फ्लैट्स मैदान स्थित कार पार्किग पैक हो गई है और वाहनों को खेल मैदान में खड़ा करना पड़ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि नववर्ष के स्वागत में 31 दिसम्बर को होने वाला जश्न नगर के पर्यटन कारोबारियों के आपदा से मिले जख्मों को धोकर पर्यटन को पूरी तरह पटरी पर लौटाने में मदद दिलाएगा।

बर्फबारी होने की उम्मीद

नैनीताल। सरोवरनगरी में दो दिनों से चटख धूप खिल रही है। मौसम मौसम विभाग के अनुसार शनिवार को नगर का अधिकतम 14.2 व न्यूनतम 5.6 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। विभाग के अनुसार सोमवार को आसमान खुला रहेगा और तापमान 13 व छह डिग्री के बीच रह सकता है, जबकि 31 दिसम्बर को आसमान में बादल छाने और बारिश व बर्फबारी की हल्की उम्मीद की जा सकती है। इस दिन तापमान के 12 व सात डिग्री सेल्सियस रहने की उम्मीद है। अलबत्त नववर्ष का पहला दिन वापस धूप खिलने के साथ 13 व पांच डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच सुहावना होने की उम्मीद है।

केएमवीएन परोसेगा मुफ्त व्यंजन

नैनीताल। नववर्ष के स्वागत की शाम कुमाऊं मंडल विकास निगम का तल्लीताल स्थित पर्यटक आवास गृह अपने यहां आने वाले सैलानियों का स्वागत कुमाऊं के छोलिया लोक कलाकारों से करवाएगा। टीआरएच के प्रबंधक अशोक साह साथ ही सैलानियों को डिनर में नि:शुल्क कुमाऊं के गहत की दाल, आलू के गुटके, मेथी व गडेरी की सब्जी, भांग की चटनी व खीर आदि लजीज व्यंजन परोसेगा।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

आपदा के मानसिक व सामाजिक प्रभावों का होगा अध्ययन

देश की सर्वोच्च समाज वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद एक करोड़ रुपये से शुरू कराएगी परियोजनाएं
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड में विगत जून में आई भीषण आपदा में जन-धन के नुकसान की अलग-अलग स्तरों से हो रही भरपाई से इतर आपदा से प्रभावित मानव मन एवं समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। देश का सामाजिक विज्ञान क्षेत्र में अध्ययन कराने वाली शीर्ष संस्था भारतीय सामाजिक अनुसंधान एवं शैक्षिक परिषद (आईसीएसएसआर) इस क्षेत्र में करीब एक करोड़ रपए की लागत की परियोजनाएं शुरू करने जा रहा है। इन परियोजनाओं के लिए आईसीएसएसआर ने प्रस्ताव आमंत्रित किए थे, जिनका मूल्यांकन हो चुका है। प्रदेश में आई आपदा के बाद अनेक प्रभावितों के मानसिक संतुलन खोने की खबरें समाने आई हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है प्रभावितों के पुनर्वास में केवल नष्ट हुई जमीनें देना, घर बना देना या सड़क-बिजली-पानी जैसी ढांचागत सुविधाएं बहाल कर देना ही पर्याप्त नहीं होता। प्रभावित लोगों को अन्यत्र बसाने में उनके अपनी मूल मिट्टी से जुड़े सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों- परिवेश पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है, लिहाजा अपने प्रियजनों और मूल गांवों को खो चुके प्रभावितों के मानसिक पुनर्वास की भी जरूरत महसूस की जाती है। आईसीएसएसआर के निदेशक व पिथौरागढ़ जनपद के मूल निवासी डा. जीएस सौन ने बताया कि आपदा से प्रभावितों पर मानसिक व सामाजिक स्तर पर पड़े प्रभाव तथा उन्हें अब तक मिली आपदा राहत व मदद के प्रभावों का अध्ययन जैसे विषयों का न केवल एक बार वरन एक, दो एवं तीन वर्षो के अंतराल पर अध्ययन कराने के प्रस्ताव मांगे गए हैं। इन प्रस्तावों पर कुमाऊं व गढ़वाल विवि के साथ ही महाविद्यालयों एवं शोध संस्थानों के माध्यम से 15-20 लाख रपए की चार-पांच बड़ी परियोजनाएं कुछ दिनों के भीतर ही स्वीकृत होने की उम्मीद है। इससे प्रभावितों पर आपदा से पड़े सामाजिक प्रभावों का वैज्ञानिक तरीके से विस्तृत अध्ययन किया जाएगा।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आजादी के वर्ष का एहसास कराएगा नये साल का कैलेंडर


हूबहू 1947 से मिलता है 2014 का कैलेंडर

नवीन जोशी, नैनीताल। समय चक्र ने हमें एक बार फिर से अतीत के उस दौर में पहुंचा दिया, जब पूरे देश को बस इंतजार था 15 अगस्त का। सब कुछ वही है, तारीख-दिन में कोई अंतर ही नहीं। जी हां, गौर से देखिएगा। नये साल में जो कैलेंडर हमारे सामने आ रहा है वह हूबहू वही है जो आजादी दिलाने वाले वर्ष 1947 में था। आपके पास वर्ष 1947 का वह ऐतिहासिक कलेंडर मौजूद है तो आपको अगले वर्ष के लिए नया कलेंडर लेने की जरूरत नहीं है, और यदि उस ऐतिहासिक वर्ष के तारीखों में दिन खोजने हैं तो 2014 के कैलेंडर में सब कुछ मिल जाएगा। हालांकि यह सामान्य सी बात है, और अनिश्चित अंतराल पर अनेक वर्षो के कैलेंडर समान होते रहते हैं। लेकिन जब बात 1947 के कैलेंडर की हो तो अनेक जिज्ञासा बढ़ना स्वाभाविक है। पुराने लोग इस कलेंडर को आज भी सुरक्षित रखे हुए हैं। खासकर उन्हें बृहस्पतिवार 14 अगस्त की मध्यरात्रि व 15 अगस्त के शुक्रवार का दिन कभी नहीं भूलता, जब देश पहली बार आजादी की सांसें ले रहा था। अनेक लोगों को याद है कि 1947 का वर्ष एक जनवरी को बुधवार से शुरू हुआ था और लीप वर्ष न होने की वजह से फरवरी में 28 दिन थे और वर्ष का समापन 31 जनवरी को बृहस्पतिवार को हुआ था। यह इत्तेफाक है कि आज भी देश बदलावों के दौर से गुजर रहा है, और 2014 में लोस चुनाव भी होने हैं, और कैलेंडर 1947 से पूरी तरह मिलता है।
2014 में लगातार चार-पांच दिन की छुट्टियां भी मिलेंगी

नैनीताल। छुट्टियों के मामले में नया साल 2014 सरकारी कर्मचारियों के लिए गुजरते साल से कुछ बेहतर रहेगा। उन्हें न केवल इस साल से ज्यादा छुट्टियां मिलेंगी बल्कि नए वर्ष में कई बार लगातार चार-पांच दिन के अवकाश के मौके भी मिलेंगे। हालांकि अभी राज्य सरकार ने अगले वर्ष के लिए छुट्टियों का कलेंडर जारी नहीं किया है, फिर भी अन्य प्रचलित कलेंडरों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस वर्ष 52 रविवार, माह के दूसरे शनिवार के 12 व विभिन्न तीज त्योहारों के 22 व तीन निर्बधित छुट्टियों को मिलाकर कुल 89 अवकाश पड़ने की संभावना है। हालांकि पांच सार्वजनिक अवकाश शनिवार व रविवार को तथा नौ छुट्टियां अवकाश वाले दिनों में पड़ रही हैं। इस वर्ष दो अक्टूबर गांधी जयंती से तीन को विजयदशमी, चार व पांच अक्टूबर शनिवार- रविवार छह अक्टूबर को बकरीद का अवकाश रहने से लगातार पांच दिन की छुट्टियां लेने का मजा भी लिया जा सकेगा। इसी तरह 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के बाद 16-17 को शनिवार-रविवार तथा 18 अगस्त को जन्माष्टमी के अवकाश के साथ लगातार चार दिन की छुट्टी भी मिलेगी। ऐसे ही गुरुवार 23 से दीपावली के अवकाश के बाद गोवर्धन पूजा और फिर शनिवार- रविवार का अवकाश भी मिल जाएगा।
इन वर्षो के कैलेंडर भी 1947 जैसे
नैनीताल। एक जैसे कलेंडर वाले वर्षो के बारे में और अधिक अध्ययन करें तो पता लगता है कि ऐसा अनिश्चित अंतराल पर होता है। वर्ष का लीप इयर यानी फरवरी का 28 या 29 दिन के होने की वजह से यह अनिश्चितता रहती है। 1947 जैसे ही समान कलेंडरों की बात की जाए तो बीती शताब्दी में आजादी के बाद 1958, 1969, 1975, 1986 व 1997 में तथा वर्तमान 21वीं शताब्दी में वर्ष 2003 के कलेंडर भी समान रहे। वहीं आगे 2025, 2031, 2042, 2053, 2059, 2070, 2081और 2087 के कलेंडर भी 1947 जैसे ही रहने वाले हैं।


मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

कुमाऊं विवि की पहल: 'रूसा' के तहत कई केंद्र खोलने की योजना


कुमाऊं विवि में शोधों को बढ़ावा देने की होगी कोशिश : धामी
नैनीताल (एसएनबी)। कुमाऊं विवि शोध एवं अभिनव प्रयोगों को बढ़ाने की ओर कदम बढ़ा रहा है। इसी कड़ी में विवि की राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) के तहत कई केंद्र खोलने की योजना है। इनमें अमेरिका के रोजवैल पार्क न्यूयार्क के कैंसर इंस्टीटय़ूट बफैलो पार्क व सनी इंस्टीटय़ूट शामिल हैं। इनके सहयोग से स्थापित होने वाले केंद्रों के जरिये यहां आधुनिकतम फोटो डायनेमिक थेरेपी व सोनो डायनेमिक थेरेपी से कैंसर रोग के इलाज व उपचार पर शोध होंगे। इसके साथ ही बायो इंफारमेटिक सेंटर, नैनो साइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी सेंटर, समाज के निर्बल वगरे के लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने के केंद्र और पहाड़ की औषधियों की पहचान व उनकी बार-कोडिंग करने के केंद्र भी खोले जाएंगे। यह बात कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी ने रूसा के तहत दो दिनों तक चली विभिन्न संकायों व विभागों के अध्यक्षों की बैठकों के बाद कही। उन्होंने बताया कि सभी विभागों व संकायों के अध्यक्षों से रूसा के प्रावधानों के तहत इन केंद्रों के लिए प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है। बताया कि 19 दिसम्बर तक उन्हें प्रस्ताव देने को कहा गया है। इसके बाद कुमाऊं विवि 20 दिसम्बर को देहरादून में उच्च शिक्षा विभाग को यह प्रस्ताव सौंपेंगे। उन्होंने बताया कि इन केंद्रों के जरिए विवि में शोध व अध्ययन के स्तर को बढ़ाने एवं पहाड़ में उद्यमिता एवं कौशल को बढ़ाने का उद्देश्य भी रहेगा। बैठक में सहायक कुलसचिव डा. दिनेश चंद्रा, प्रो. मोहन दुर्गापाल, प्रो. संजय पंत, प्रो. बीआर कौशल, प्रो. एसपीएस मेहता, प्रो. एनडी कांडपाल, डा. आरपी पंत, प्रो. सत्यपाल बिष्ट, प्रो. नीरजा पांडे, प्रो. नीरज तिवारी, प्रो. मनोज पांडे, प्रो. बीना पांडे, प्रो. पारुल सक्सेना व प्रो. पीसी कविदयाल समेत सभी संकायों व विभागों के अध्यक्ष मौजूद रहे। 

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

आज दो बार एक साथ आयेंगे 08:09:10 11:12:13

अंक विज्ञान के अनुसार खास है आज का दिन
नवीन जोशी नैनीताल। यदि आप न्यूमरोलॉजी यानी अंक विज्ञान और दिन की तारीखों में अंकों के खास समन्वयों की रोचकता को पसंद करते हैं तो बुधवार का दिन और दिसम्बर का महीना बहुत खास है। बुधवार को सुबह और शाम के समय दो बार ऐसी स्थिति बनेगी, जब समय व दिन बताने वाली डिजिटल घड़ियां और आपके कम्प्यूटर और लैपटॉप पर ‘08:09:10 11.12.13’ अंकित देखेंगे। यह होगा जब बुधवार को वर्ष 2013 के 12वें यानी दिसम्बर माह की 11वीं तिथि होगी और समय सुबह व शाम आठ बजकर नौ मिनट और 10 सेकेंड होंगे। ऐसी स्थिति 100 वर्षो में एक बार यानी कमोबेश हर किसी के जीवन में एक बार ही आएगी। पूर्व में यह स्थिति 1913 के 11 दिसंबर को आई होगी और आगे 2123 में आएगी। 

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‘मनी बैग’ देगा दिसम्बर !

इसके अलावा दिसम्बर में चीनी फेंग शुई मान्यताओं के अनुसार ‘मनी बैग’ की एक खास स्थिति भी बन रही है। इसके बारे में मान्यता है कि जो भी व्यक्ति अपनी डायरी और सोशल नेटवर्किंग साइट्स की प्रोफाइल पर इसे अंकित करते हैं, उन्हें चार दिन के भीतर धन की प्राप्ति होती है। हालांकि इस बात की सत्यता के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं, बावजूद चीनी लोगों में इसकी होड़ रहती है। इस वर्ष दिसम्बर माह में भी यह खास स्थिति पांच रविवार, पांच सोमवार व पांच मंगलवारों के होने से आई है। इसके बारे में कहा जाता है कि ऐसा 823 वर्षो में एक बार होता है। यानी ऐसा दिसम्बर माह जिसमें पांच रवि, सोम व मंगलवार आएंगे, वह 823 वर्ष पूर्व वर्ष 1190 में और आगे वर्ष 2836 में आएगा। गौरतलब है कि 31 दिन के सभी महीनों में तीन वारों के पांच सप्ताह होते हैं। इस वर्ष जनवरी में पांच मंगल, बुध व बृहस्पति, मार्च में पांच शुक्र, शनि व रविवार, मई में पांच बुध, गुरु व शुक्र, जुलाई में पांच सोम, मंगल व बुध, अगस्त में पांच गुरु, शुक्र व शनि और अक्टूबर में पांच मंगल, बुध व गुरुवार आए, मगर किसी एक माह विशेष में समान वारों के पांच सप्ताह होने की स्थिति हमेशा 823 वर्षो में ही आती है। 

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

सवा पांच करोड़ साल का हुआ अपना 'हिमालय'

कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग ने अंतरराष्ट्रीय शोध के बाद निकाला निष्कर्ष 
रेडियो एक्टिव डेटिंग से पहुंचे परिणाम तक  
नवीन जोशी नैनीताल। हिमालय की उत्पत्ति के संबंध में लगातार शोध हो रहे हैं। वैज्ञानिकों में हिमालय की शुरुआत को लेकर अलग-अलग मत हैं। कोई इसे दो करोड़, तो कोई तीन करोड़ और कोई साढ़े पांच करोड़ वर्ष पुराना साबित कर रहा है। शोध के इन दावों के बीच कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने भी एक और शोध करने का दावा किया है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि लगभग छह वर्ष तक शोध करने के बाद यह पता लगा है कि हिमालय के बनने की शुरुआत सवा पांच करोड़ वर्ष पहले हुई थी। 
कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक उपकरणों के साथ किए एक अंतरराष्ट्रीय शोध के बाद दावा किया है कि हिमालय के जन्म की मुख्य वजह भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन (तिब्बती प्लेट) में टकराने की शुरुआत 52.2 मिलियन यानी 5.22 करोड़ वर्ष पूर्व हुई थी और इसके बाद टकराने की यह प्रक्रिया लम्बे समय तक जारी रही। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि अब भी भारतीय प्लेट का 35 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर खिसकते हुए यूरेशियन प्लेट में धंस रही है और यही इस क्षेत्र में बड़े भूकंपों की आशंका को बढ़ाने वाला है। कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार ने सोमवार को ‘राष्ट्रीय सहारा’ से इस नये शोध के परिणामों का खुलासा करते हुए यह दावा किया। उन्होंने बताया कि कुमाऊं विवि का शोध पूर्व में भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत की ओर पाए जाने वाले समान प्रकार के जानवरों के परीक्षण के आधार पर किए गए शोधों के आधार पर किए गए शोधों के करीब है, जिसमें हिमालय की उम्र 55 मिलियन वर्ष बतायी जाती है। उन्होंने बताया कि कुमाऊं विवि द्वारा यह परिणाम लद्दाख में पाई जाने वाली ग्रेनाइट की चट्टानों में मिले एक खास अवयव जिरकॉन की चीन व कोरिया में अत्याधुनिक ‘सेन्सिटिव हाई रेजोल्यूसन आयन माइक्रो प्रोब’ (श्रिम्प) तकनीक से आयु का पता लगाकर निकाला गया है। इसे रेडियोएक्टिव डेटिंग भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय शोध जर्नल में इसका प्रकाशन भी हो रहा है। इस शोध के आधार पर प्रो. कुमार कहते हैं कि सर्वप्रथम हिमालय के स्थान पर उस दौर में मौजूद टेथिस महासागर की सामुद्रिक प्लेटें आपस में टकराने से पिघलीं और इसके लावे से लद्दाख के पठारों का और बाद में भारतीय व यूरेशियन प्लेट के अनेक स्थानों पर लंबे समय अंतराल में अलग-अलग टकराने की वजह से वर्तमान हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ। इस शोध परियोजना में प्रो. कुमार के साथ ही विवि के डा. बृजेश सिंह, डा. मंजरी पाठक व डा. सीता बोरा आदि प्राध्यापकों व शोध छात्र-छात्राओं का भी योगदान है। 

सोना, तांबा के भंडार खोजने में मिलेगी मदद 
नैनीताल। कुमाऊं विवि द्वारा किया गया शोध हिमालय की वास्तविक उम्र जानने में तो मदद करता ही है, साथ ही इसके दूरगामी लाभ इस संदर्भ में भी हैं कि इसके जरिए हिमालय के भूगर्भ में पाई जाने वाली बहुमूल्य खनिज संपदा के बारे में भी पता लगाया जा सकता है। प्रो. कुमार कहते हैं कि इस तकनीक की मदद लेते हुए तांबा, सोना व मालिब्डेनम जैसे खनिजों की उपस्थिति वाले क्षेत्रों में इन तत्वों की खोज की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

मोदी की रैली पर शादियों के लग्न भारी !

शादियों की वजह से रैली के लिए गाड़ियां मिलने में हो रही परेशानी, पर भाजपाइयों में दिख रहा भारी जोश
नवीन जोशी नैनीताल। 15 दिसम्बर को दून में हो रही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की रैली की राह को इस दौरान और खासकर रैली के दिन तक ही उपलब्ध शादियों के लग्न प्रभावित कर रहे हैं। चूंकि शादियों के लग्न 14 तक ही हैं और इधर मौसम भी अधिक सर्द नहीं हुआ है। इस दौरान जनता के साथ ही अनेक भाजपा कार्यकर्ता भी अपने निकटस्थों की शादियों में आमंत्रित और व्यस्त हैं। शादियों के लिए पहले से ही बुक होने की वजह से भाजपाइयों को रैली में जाने के लिए बसें ठीक से उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं लेकिन शायद मोदी को देखने और सुनने का उत्साह ही है कि ऐसी स्थितियों के बावजूद भाजपाई रैली में हर हाल में जाने की बात कह रहे हैं। 
मंडल व जिला मुख्यालय में जहां एक ओर भाजपा कार्यकर्ताओं में मोदी की रैली के प्रति जोश दिख रहा है, वहीं वह प्रदेश हाईकमान द्वारा रैली के लिए दिए गए लक्ष्यों को लेकर परेशान हैं। इसका कारण यह है कि करीब एक हजार कार्यकर्ताओं को देहरादून ले जाना है। इनमें से अन्य लोग तो अपने प्रबंधों से दून चले जाएंगे लेकिन संगठन को करीब डेढ़ सौ कार्यकर्ताओं को दून ले जाने की व्यवस्था करने को कहा गया है। इस हेतु कम से कम पांच बसों की आवश्यकता है। बसों की व्यवस्था में जुटे एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि आम तौर पर नैनीताल से दून के लिए 18 हजार रुपये में बसें मिल जाती हैं लेकिन इधर शादियों में व्यस्त होने के कारण 25 हजार रुपये से कम में बसें नहीं मिल पा रही हैं। हालांकि ऐसे कार्यकर्ता भी मिले। जिन्होंने कहा कि बसें मिले चाहे न मिलें, भले ट्रकों में लटककर जाना पड़े लेकिन दून जरूर जाएंगे। क्योंकि मोदी के रूप में भाजपा को सत्ता में लौटाने का जो मौका मिला है, उसे चूकेंगे नहीं। इस बारे में भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश पंत ने भी स्वीकारा कि शादियों की वजह से शंखनाद रैली के प्रबंधों में दिक्कत तो आ रही है लेकिन कार्यकर्ताओं का जोश देखते हुए रैली में भीड़ जुटाने में कोई कठिनाई नहीं है।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

कुमाऊं विवि की परीक्षाएं होंगी ऑनलाइन

इंडिया रिजल्ट्स डॉट कॉम और आम्रपाली इंस्टीटय़ूट विवि के लिए मुफ्त में कर रही हैं परीक्षा की व्यवस्थाएं
नैनीताल (एसएनबी)। कुमाऊं विवि की सेमेस्टर पद्धति से होने वाली एवं प्रोफेशनल कोसरे की परीक्षाएं ऑनलाइन होने जा रही हैं। इस व्यवस्था के तहत विवि के छात्र फिलहाल ऑनलाइन और ऑफ लाइन दोनों तरह से परीक्षा फार्म भर पाएंगे और घर बैठे इंटरनेट के जरिये प्रवेश पत्र, जांच पत्र एवं अंक पत्र आदि डाउनलोड कर सकेंगे। इसके अलावा विवि के लिए परीक्षाओं को ऑनलाइन करने की व्यवस्थाएं मुफ्त में होने जा रही हैं। बृहस्पतिवार को कुमाऊं विवि के कुलपति कार्यालय में कुलपति प्रो. एचएस धामी की अध्यक्षता में परीक्षा पण्राली को ऑनलाइन करने के लिए हुई बैठक में सभी व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया गया। बताया गया कि फिलहाल छात्र चाहें तो सीधे ऑनलाइन और अन्यथा ऑफलाइन भी परीक्षा फॉर्म भर पाएंगे। ऐसे ऑफलाइन फॉर्मो को एक्सेल के फॉम्रेट में विवि द्वारा इंडिया रिजल्ट्स को भेजा जाएगा, जो इसे ऑनलाइन कर देगा। परीक्षाओं के ऑनलाइन फॉर्म भरने एवं अंक पत्र, जांच पत्र व अंक पत्र आदि डाउनलोड करने की व्यवस्था इंडिया रिजल्ट्स डॉट कॉम नाम की वेबसाइट और परीक्षाओं के बाद की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए जरूरी सॉफ्टवेयर हल्द्वानी के आम्रपाली इंस्टिटय़ूट द्वारा तैयार की जा रही है। बैठक में विवि के परीक्षा नियंत्रक प्रो. रजनीश पांडे, सहायक कुलसचिव दिनेश चंद्रा, वित्त अधिकारी डीएस बोनाल, प्रो. बीडी कविदयाल, इंडिया रिजल्ट्स के सहायक प्रबंधक-तकनीकी एमके पांडे, विवि की ऑनलाइन व्यवस्थाएं देखने वाली कंपनी वंडर प्वाइंट के सीईओ निखिल मिश्रा आदि मौजूद थे।

अब केयूनैनीताल होगी कुमाऊं विवि की आधिकारिक वेबसाइट 
नैनीताल। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. एचएस धामी ने बताया कि अब विवि की आधिकारिक वेबसाइट केयू नैनीताल डॉट एसी डॉट इन होगी। इस वेबसाइट में विवि की अकादमिक एवं प्रशासनिक जानकारियां होंगी। विवि की अब तक चल रही वेबसाइट केयूएनटीएल डॉट कॉम पर क्लिक करके भी इन वेबसाइटों पर सीधे प्रवेश हो जाएगा। विवि की परीक्षाओं के परिणाम केयूइक्जाम डॉट एसी डॉट इन वेबसाइट पर देखे जा सकेंगे लेकिन इसके लिए इंडिया रिजल्ट्स डॉट कॉम की वेबसाइट के लिंक को भी क्लिक करना पड़ेगा। जो विवि के लिए नि:शुल्क व्यवस्था कर रहा है। 
अभाविप ने किया ऑनलाइन प्रक्रिया का स्वागत 
नैनीताल। छात्रों के संगठन अभाविप ने कुमाऊं विवि द्वारा परीक्षा पण्राली को ऑनलाइन करने और इसके लिए परीक्षा फॉर्म भरने के लिए ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों विकल्प देने पर विवि प्रशासन व कुलपति की पहल का स्वागत किया है। परिषद कार्यकर्ताओं ने कहा कि वह कई बार इस बाबत विवि प्रशासन को ज्ञापन दे चुके थे। कुमाऊं विवि छात्र परिषद (महासंघ) ने भी विवि की पहल का स्वागत किया है। 
विवि के लिए अमेरिकी कैंसर संस्थान तैयार करेगा प्रोजेक्ट 
नैनीताल। अमेरिका के बफैलो शहर स्थित रोजवैल पार्क कैंसर इंस्टीटय़ूट कुमाऊं विवि के लिए कैंसर के निदान के लिए प्रयोग की जाने वाली फोटो डायनेमिक थेरेपी के प्रोजेक्ट तैयार करेगा। विवि के कुलपति प्रो. एचएस धामी ने बताया कि इस संस्थान के फोटो डायनेमिक थेरेपी सेंटर के निदेशक प्रो. रवींद्र कुमार पांडे कुमाऊं विवि के पूर्व छात्र हैं। उन्हीं की पहल पर यह हुआ है। विवि ने अपने रसायन, भौतिकी व माइक्रो बायलॉजी के तीन प्राध्यापकों-डा.पैनी जोशी उपाध्याय, डा. संतोष उपाध्याय व प्रो. संजय पंत को इस प्रोजेक्ट हेतु नियुक्त कर दिया है।

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

'आस्कर पिस्टोरियस' की राह पर दून का लोकेश

हौसलों के आगे हार गयी विकलांगता
शारीरिक रूप से दक्ष खिलाड़ियों के बीच ही मुकाबला करना चाहता है लोकेश 
नवीन जोशी नैनीताल। ओलम्पियन ब्लेड रनर आस्कर पिस्टोरियस को अपना आदर्श मानने वाला दून का लोकेश खेलों की दुनिया में अपना एक नया मुकाम हासिल करना चाहता है। लोकेश ने अपना एक पैर बचपन में हुई एक दुर्घटना में गंवा दिया था, लेकिन अपनी इच्छाशक्ति, साहस और हौसले की बदौलत उसने शरीर सौष्ठव (बॉडी बिल्डिंग) व भारोत्तोलन (वेटलिफ्टिंग) में अपनी अलग पहचान बनाई है। लोकेश का कहना है कि वह विकलांग खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करेगा, बल्कि शारीरिक रूप से दक्ष खिलाड़ियों के बीच मुकाबला करेगा। राज्यस्तरीय भारोत्तोलन प्रतियोगिता में लोकेश कांस्य पदक हासिल कर चुका है। 
आस्कर पिस्टोरियस
18 वर्षीय लोकेश कुमार चौधरी ने नैनीताल में ‘राष्ट्रीय सहारा’ से भेंट में बताया कि वह दून के डीएवी कॉलेज में बीकॉम द्वितीय वर्ष का छात्र है। लोकेश के अनुसार 1997 में उसके पिता किशोरी लाल पौड़ी में पुलिस विभाग में एसपीओ के पद पर थे। तब वह चार वर्ष का था कि एक दिन एक ट्रक ने उसके बांए पैर को कुचल दिया। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे लोकेश को 2003 में नकली पैर पहना दिये। तभी लोकेश ने ठान लिया था कि वह किसी को खुद को विकलांग नहीं कहने देगा। न केवल आम और पूरी तरह से शारीरिक रूप से दक्ष युवकों के साथ खड़ा होगा, वरन स्वयं को साबित करते हुए उनके लिए भी मिसाल कायम करके रहेगा। गत दिवस नगर के शैले हॉल में आयोजित 55 किग्राभार वर्ग में लोकेश ने मिस्टर उत्तराखंड प्रतियोगिता में भी उसने प्रतिभाग किया, तो प्रदेश के बॉडी बिल्डिंग कोच व प्रतियोगिता के निर्णायक केएन शर्मा उसकी प्रतिभा व दृढ़ हौसले के कायल हुए बिना न रह पाए और अपनी जेब से उसे 1100 रुपए का नगद पुरस्कार भेंट किया। लोकेश प्रदेश का इकलौता शारीरिक रूप से अक्षम बॉडी बिल्डर तो है ही, साथ ही वह आम खिलाड़ियों के साथ ही प्रतिभाग करने का हौसला रखता है। लोकेश ने बताया कि अभी वह छह माह से ही बॉडी बिल्डिंग का प्रशिक्षण ले रहा है। पूर्व में वेट लिफ्टिंग में आम खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा करते हुए इस 55 किग्राके पहलवान ने बैंच प्रेस पर लेटकर 75 किग्रा, स्कॉट्स पर 90 किग्राऔर डेड लिफ्ट स्पर्धा में 120 किग्रा वजन उठाकर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त किया है। 

बुधवार, 20 नवंबर 2013

मंत्रियों ने अपनी सीटें सामान्य करा लीं, बाकी पर आरक्षण

पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण का खाका तैयार 
नैनीताल (एसएनबी)। जनपद में आसन्न पंचायत चुनावों के लिए ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं ग्राम पंचायत की सीटों के लिए आरक्षण की घोषणा हो गई है। बुधवार को डीएम के स्तर से आरक्षण की स्थिति साफ हो गई है। इसके तहत जनपद की सर्वाधिक महत्वपूर्ण हल्द्वानी, बेतालघाट और रामनगर के ब्लॉक प्रमुखों की सीटें अनारक्षित रखी गई हैं। उल्लेखनीय है कि यह तीनों क्षेत्र राज्य सरकार के तीन सर्वाधिक प्रभावी काबीना मंत्रियों के परंपरागत क्षेत्र हैं। हल्द्वानी काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश, बेतालघाट अब परोक्ष तौर पर यशपाल आर्या एवं रामनगर अमृता रावत के गृह क्षेत्र हैं। वहीं कोटाबाग में अनुसूचित जाति की महिला, ओखलकांडा में अनुसूचित जाति के पुरुष या महिला तथा धारी, रामगढ़ व भीमताल महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। 
साफ है कि इन सभी ब्लाकों में मौजूदा स्थिति के हिसाब से आरक्षण के बदलाव से राजनीतिक रूप से उलटफेर कर दिया गया है, हालांकि अभी इन पर आपत्तियां भी दी जा सकती हैं। इसी तरह जिला पंचायत क्षेत्रों के आरक्षण की बात करें तो जिले की 26 सीटों में से तीन सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं, तीन अनुसूचित जाति, एक पिछड़ी जाति, नौ महिलाओं के लिए आरक्षित तथा 10 अनारक्षित छोड़ी गई हैं। चोरगलिया आमखेड़ा, ककोड़ व पत्तापानी अनु. जाति की महिलाओं, आंवलाकोट, ओखलकांडा मल्ला व पूरनपुर अनु. जाति, सिमलखां पिछड़ी जाति, सूपी, जंगलियागांव, दाड़िमा, दीनी तल्ली, सरना, चंद्रनगर, बमेठा बंगर खीमा, बिठौरिया नं. 1 व अमृतपुर महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। वहीं पनियाली, ज्योलीकोट, बड़ोन, कमोला, ढोलीगांव, हरतपा, घंघरेटी, छोई, गहना व मेहरागांव अनारक्षित रखी गई हैं। इसी प्रकार क्षेत्र पंचायत एवं ग्राम पंचायत की सीटों के लिए भी आरक्षणों की भारी भरकम सूची जारी कर दी गई है, और इसे जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर रखवा दिया गया है।

सोमवार, 18 नवंबर 2013

स्थापना दिवस पर नैनीताल को कुदरत से मिला ‘विंटर लाइन’ का अनूठा तोहफा

नवीन जोशी, नैनीताल। इधर सरोवरनगरी वासी सोमवार को अपनी प्रिय नगरी का 172वां स्थापना दिवस मना रहे थे। उधर कुदरत ‘प्रकृति का स्वर्ग’ कही जाने वाली नगरी को चुपके से ऐसा तोहफा दे गई, जिसे प्रकृति प्रेमी ‘विंटर लाइन’ कहते हैं। कुदरत की इस अनूठी नेमत ‘विंटर लाइन’ के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया में केवल स्विटजरलैंड की बॉन वैली और मसूरी के लाल टिब्बा से ही नजर आती है। नैनीताल से भी यह वर्षो से नजर आती है लेकिन अब तक इसे नगर व प्रदेश के पर्यटन कैलेंडर और पर्यटन व्यवसायियों से मान्यता नहीं मिल पाई है। प्रकृति प्रेमियों के अनुसार ‘विंटर लाइन’ की स्थिति सर्दियों में मैदानों में कोहरा छाने और ऊपर से सूर्य की रोशनी पड़ने के परिणामस्वरूप शाम ढलते सैकड़ों किमी लंबी सुर्ख लाल व गुलाबी रंग की रेखा के रूप में नजर आती है। नैनीताल में इसका सबसे शानदार नजारा हनुमानगढ़ी क्षेत्र से लिया जा सकता है लेकिन नगर के चिड़ियाघर क्षेत्र से भी इसे देखा जा सकता है। सुबह सूर्योदय से पूर्व भी इसे हल्के स्वरूप में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हनुमानगढ़ी से सूर्यास्त के भी अनूठे नजारे देखने को मिलते हैं। प्रकृति प्रेमी बताते हैं कि इस दौरान डूबते हुए सूर्य में कभी घड़ा तो कभी सुराही जैसे अनेक आकार प्रतिबिंबित होते हैं। पूर्व में इन्हें देखने के लिये यहां बकायदा व्यू प्वाइंट स्थापित थे, जो बीते वर्षो में हटा दिये गये हैं।

नेपाली फिल्म ‘विरासत’ में भी दिखती है नैनीताल की विंटर लाइन

नैनीताल। देश-प्रदेश के पर्यटन विभाग और पर्यटन व्यवसायी भले विंटरलाइन की खूबसूरती का नगर के पर्यटन उद्योग को बढ़ाने में उपयोग न कर रहे हों लेकिन गत वर्ष नगर में इन्हीं दिनों फिल्माई गई नेपाली फिल्मों के निर्देशक गोविंद गौतम की नायक समर थापा व नायिका सोनिया खड़का अभिनीत फिल्म विरासत में नैनीताल की विंटरलाइन को फिल्माया गया है। इस फिल्म के एक गीत में नायकनाियका के बीच हनुमानगढ़ी के पास विंटर लाइन को दिखाते हुए प्रणय दृश्य फिल्माए गए हैं।

रविवार, 17 नवंबर 2013

यूं ही नहीं, तत्कालीन विश्व राजनीति की रणनीति के तहत अंग्रेजों ने बसासा था नैनीताल


रूस को भारत आने से रोकने और पहले स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल फूंक चुके रुहेलों से बचने के लिए अंग्रेजों ने बसाया था नैनीताल

नैनीताल के प्राकृतिक सौंदर्य ने भी खूब लुभाया था अंग्रेजों को

नवीन जोशी, नैनीताल। ऐसा माना जाता है कि 18 नवम्बर 1841 को एक अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन नैनीताल आया और उसने इस स्थान के थोकदार नर सिंह को नाव से झील के बीच ले जाकर डुबो देने की धमकी दी और शहर को कंपनीबहादुर के नाम करवा दिया था। यह अनायास नहीं था कि एक अंग्रेज इस स्थान पर आया और उसकी खूबसूरती पर फिदा होने के बाद इस शहर को ‘छोटी विलायत’ के रूप में बसाया। साथ ही शहर को अब तक सुरक्षित रखे नाले और अब भी मौजूद राजभवन, कलेक्ट्रेट, कमिश्नरी, सचिवालय (वर्तमान उत्तराखंड हाईकोर्ट) तथा सेंट जॉन्स, मैथोडिस्ट, सेंट निकोलस व लेक र्चच सहित अनेकों मजबूत व खूबसूरत इमारतों के तोहफे भी दिए। सर्वविदित है कि नैनीताल अनादिकाल काल से त्रिऋषि सरोवर के रूप में अस्तित्व में रहा स्थान है। अंग्रेजों के यहां आने से पूर्व यह स्थान थोकदार नर सिंह की मिल्कियत थी। तब निचले क्षेत्रों से ग्रामीण इस स्थान को बेहद पवित्र मानते थे, लिहाजा सूर्य की पौ फटने के बाद ही यहां आने और शाम को सूर्यास्त से पहले यहां से लौट जाने की धार्मिक मान्यता थी। कहते हैं 1815 से 1830 के बीच कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर रहे जीडब्ल्यू ट्रेल यहां से होकर ही अल्मोड़ा के लिए गुजरे और उनके मन में भी इस शहर की खूबसूरत छवि बैठ गई, लेकिन उन्होंने इस स्थान की धार्मिक मान्यताओं की मर्यादा का सम्मान रखा। दिसम्बर 1839 में पीटर बैरन यहां आया और इसके सम्मोहन से बच न सका। व्यवसायी होने की वजह से उसके भीतर इस स्थान को अपना बनाने और अंग्रेजी उपनिवेश बनाने की हसरत भी जागी और 18 नवम्बर 1841 को वह पूरी तैयारी के साथ यहां आया। वह औपनिवेशिक वैश्विकवाद व साम्राज्यवाद का दौर था। नए उपनिवेशों की तलाश व वहां साम्राज्य फैलाने के लिए फ्रांस, इंग्लैंड व पुर्तगाल जैसे यूरोपीय देश समुद्री मार्ग से भारत आ चुके थे, जबकि रूस स्वयं को इस दौड़ में पीछे महसूस कर रहा था। कारण, उसकी उत्तरी समुद्री सीमा में स्थित वाल्टिक सागर व उत्तरी महासागर सर्दियों में जम जाते थे। तब स्वेज नहर भी नहीं थी। ऐसे में उसने काला सागर या भूमध्य सागर के रास्ते भारत आने के प्रयास किये, जिसका फ्रांस व तुर्की ने विरोध किया। इस कारण 1854 से 1856 तक दोनों खेमों के बीच क्रोमिया का विश्व प्रसिद्ध युद्ध हुआ। इस युद्ध में रूस पराजित हुआ, जिसके फलस्वरूप 1856 में हुई पेरिस की संधि में यूरोपीय देशों ने रूस पर काला सागर व भूमध्य सागर की ओर से सामरिक विस्तार न करने का प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे में रूस के भारत आने के अन्य मार्ग बंद हो गऐ थे और वह केवल तिब्बत की ओर के मागरे से ही भारत आ सकता था। तिब्बत से उत्तराखंड के लिपुलेख, नीति, माणा व जौहार घाटी के पहाड़ी दरे से आने के मार्ग बहुत पहले से प्रचलित थे। ऐसे में अंग्रेज रूस को यहां आने से रोकने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में अपनी सुरक्षित बस्ती बसाना चाहते थे। दूसरी ओर भारत में पहले स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत हो रही थी। मैदानों में खासकर रुहेले सरदार अंग्रेजों के दुश्मन बने हुऐ थे। मेरठ गदर का गढ़ था ही। ऐसे में मैदानों के सबसे करीब और कठिन दरे के संकरे मार्ग से आगे का बेहद सुंदर स्थान नैनीताल ही नजर आया, जहां वह अपने परिवारों के साथ अपने घर की तरह सुरक्षित रह सकते थे। ऐसा हुआ भी। हल्द्वानी में अंग्रेजों व रुहेलों के बीच संघर्ष हुआ, जिसके खिलाफ तत्कालीन कमिश्नर रैमजे नैनीताल से रणनीति बनाते हुए हल्द्वानी में हुऐ संघर्ष में 100 से अधिक रुहेले सरदारों को मार गिराने में सफल रहे। रुहेले दर्रे पार कर नैनीताल नहीं पहुंच पाये और यहां अंग्रेजों के परिवार सुरक्षित रहे।

शनिवार, 9 नवंबर 2013

‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ में कत्ती टपकी, काँयी चटैक छन और काँयीं फचैक: डॉ. प्रभा


'नवेंदु'क ‘उघड़ी आखोंक स्वींण’ कवितानै्कि पुन्तुरि नै पुर गढ़व छ, जमैं भाव और विचारना्क मोत्यूंल गछींण कतुकै किस्मैकि रंग-बिरंग मा्व भरी छन। यौ कविता संग्रह में समसामयिक विषयन पर कटाक्षै नै प्रतीक और बिम्ब लै छन। कत्ती-कत्ती दर्शन लै देखीं जाँ। उनरि ‘लौ’, ‘पत्त नै’, ‘रींड़’, ‘असल दगड़ू’ कविता यैक भल उदाहरण छन। जाँ एक तरप नवेंदु ज्यूल ‘दुंङ’, ‘तिनाड़’ जा्स प्राकृतिक उपादानूँ कैं कविताक विषय बणै राखौ, वायीं दुहरि उज्याणि ‘हू आर यू’, ‘कुन्ब’, ‘किलै’, ‘तरक्की’, ‘हरै गो पिरमू’, ‘भ्यार द्यो ला्ग रौ हो’, ‘मैंस अर जनावर, ‘अगर’, ‘परदेस जै बेर’ जसि कवितान में मैंसना्क मनोविज्ञान लै उघाड राखौ। एतुकै नै, एक पढ़ी-लेखी दिमागदार मैंसा्क चा्रि, उ लै समानताक लिजी महिला सशक्तिकरण के जरूरी मा्ननीं। तबै त उँ ‘तु पलटिये जरूर’ कैबेर, च्येलि-स्यैंणिया्ँक मन बै गुण्ड, लोफरनौ्क डर निकाउनै्कि बात कूँनीं और उनुकैं अघिल बढ़नौ्क बा्ट बतैबेर उनुधौं आ्पण तराण पछ्याणन हूँ कूँनीं- ‘‘तु जे लै पैरि/ला्गली बा्ट/घर बै/घर बै इ/ला्गि जा्ल गुण्ड/त्या्र पछिल....बस त्या्र पलटण तलक/और मैकैं फर विश्वास छु/तब त्वे में देख्येलि/उनुकैं झाँसिकि रा्णि/का्इ माता।’’
यमैं क्वे शक न्हैती कि प्रकृति होओ या हमरि जिन्दगि, रिश्त-ना्त होओ या खा्ण-पिण, संतुलन सब जा्ग जरूरी हूँ। जब-जब घर भितेर या भ्यार संतुलन बिगडूँ तब-तब हमौ्र पर्यावरण खराब हूँ, घर-परवार और समाजै्कि व्यवस्था लै गजबजी जैं। ‘जड़ उपा्ड़’ में उ कूँनीं-

‘‘जब बिगड़ि जाँ/मणीं म्यस/पाँणि लै/डाव बणिं/टोणि द्यूं/डा्वन कैं/खपो्रि/लगै द्यूँ/छा्ल घाम/घाम सुकै द्यू/पात पतेल कि/हुत्तै बोट कैं।’’
यौ साचि छ कि संसार कैं देखणौ्क सबनौ्क आ्पण-आ्पण ढंङ हूँ, पर ज्यूँन रूँणा्क लिजी उमींदैकि सबुन कैं जरूरत हैं। अगर मैंस कैं ‘उमींद’ नि होओ, त उ आपणि भितेर लिई साँस कैं भ्यार निकाउँण में लै डरन। उ भलीभाँ जा्णूँ कि अन्यारा्क बाद रोज उज्याव हूँ और जुन्या्लि राता्क बाद अमूँस जरूर ऐं, तबै त उकैं आ्स ला्ग रै अमूँसा्क बाद ज्यूँनिकि-
‘रङिल पिछौड़ में/आँचवा मुणि छो्पि/रङिल करि दये्लि/फिरि आङ ला्गि/अङवाल भरि/उज्या्यि करि दये्लि-ज्यूँनि।’’
जब लै कैकै मनम पीड़ हैं, त वीक आँखन बै आँसु च्वी जानीं और जब कभैं उ जसिक-तसिक आ्पण आँसुन कैं पि लै ल्यूँ, तब लै उ मनैमन डाड़ हालनै रूं। जसिक द्यौक पाणि धारती कैं नवै-ध्वेबेर वीक धाूल-मा्ट सब साप करि द्यूँ और उ हरिपट्ट देखींण फैजै, अगास में ला्गी बादव जब बरसि जानी त उ लै हल्क हैबेर इत्थै-उत्थै उड़ि जा्नीं। उसिकै जब मना्क अगास में उदेखा्क बादव ला्ग जानीं, तब आँख बै आँसु बरसिबेर वीक मन कै कल्ल पाड़नीं। पर, नवेंदु ज्युँक बिचार एहै अलग छन, तबै त उँ ‘डाड़ मारणैल’ कविता में कूँनी-
‘कि हुं/डाड मारणैल/जि छु हुणीं/उ त ह्वलै/के कम जै कि ह्वल, और लै सकर है सकूँ/फिर डाड़ किलै/फिर आँस का्स/फिर लै/जि ऊँणई आँ्स त/समा्इबेर धारि ल्हिओ/कबखतै-कत्ती/हँसि आ्लि अत्ती/काम आ्ल।’’
‘आँखर’ उनरि एक प्रयोगात्मक कविता छ। यौ छ, कम आँखरन में ज्यादे कूँणी। नान्तिनन कै भल लागणी, नान्छना्कि नर लगूणा और ‘घुघूती, बासूतिकि......फा्म दिलूणी जसि-
‘‘भै जा भि मै/के खै ले/यौ दै खा/ए-द्वि ‘पु’ लै खा/ ‘छाँ’ पि/‘घ्यू’ लै खा/धौकै खा।’’
‘आदिम’ कै पढ़िबेर उर्दू गजल कै पढ़नि जसि मिठी-मिठि लागै-
‘‘उँच महल में आदिम, कतुक ना्न जस ला्गू/कतुक लै लम्ब हो भलै, बा्न जस लागूँ।’’
‘काँ है रै दौड़’ में उनूंल आजा्क समाजैकि भभरियोयिक जो का्थ लेख राखी उकैं पढ़बेर लागूँ मैंस कैं भगवानै्ल एतुक दिमाग दि रा्खौ, पै लै उ संसारा्क भूड़पना ओझी किलै रौ, जो सिद्द-साद्द बाट छन उनूमें किलै नि हिटन? जब सबूकै संसार गाड़ाक वार बै पारै जाण छ, तब मैसूंल यौ भजाभाज किलै लगै रा्खी? अगर मैस दुहा्रनै्कि टाङ खैचण है भल आपुकै समावण में ला्ग जाओ, त वीक मनौ्क आधू असन्तोष त उसिकै दूर है जा्ल-
‘‘सब भाजणई-पड़ि रै भजाभाज/निकइ रौ गाज/करण में छन सिंटोई-सिंगार/अगी रौ भितेर भ्यार।’’
उसिक त टो्लि-बोलि मारणीं मैंस कैकैं भल नि ला्गन, पै साहित्य में सिद्दी बात है भलि उ बात ला्गैं जो घुमै-फिरैबेर कई जैं। सिद्दी बात उतुक असर नि करनि, जतुक बो्लिकि मार करैं। सैद येकै वील साहित्यकारन कैं व्यंग्यात्मक शैली में लेखण अत्ती भल ला्गूँ। यौ मामुल में ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ में कत्ती टपकी, काँयी चटैक छन और काँयीं फचैक। ‘ब्रह्मा ज्यूकि चिन्त’, ‘तु कूंछी’, ‘को छा हम’, ‘अच्याना्क मैंस’, ‘झन पिए शराब’, ‘न मर गुण्ड’, ‘फरक’, ‘खबरदार’, ‘पनर अगस्ता्क दिन’ जसि कविता, का्नना्क बीच में खिली फूलनै्कि जसि औरी भलि देखींनी-
‘‘आज छि छुट्टी/करौ मैंल ऐराम/सेइ रयूँ दिनमान भरि/लगा टीबी/क्वे पिक्चर नि उणै्छी/बजा रेडू/कैं फिल्मी गीत न उणाछी/सब ठौर उणाछी भाषण/द्यखण पणीं-सुणन पणीं/सुण्यौ, भारत माताकि जैक ना्र/करीब सात म्हैंण पछां/पैल फ्या्र/छब्बीस जनवरिक पछां।’’
ज्यून रूँणा्क लिजी जतुक जरूरी हूँ आङ में खून, उतुकै जरूरी छ पा्णि लै। दुणियाँक लिजी जतुक जरूरी छ दिन उतुकै रात लै, पराण्कि लिजी जतुक जरूरी हूँ ऐराम, उहै नै कम नै ज्यादे, जरूरी हूँ काम लै। मैंसै्कि ज्यूँनि में पिरेम भावैकि उई जा्ग छ, जो रेगिस्तान में पा्णिकि और ह्यू में घामै्कि। इज-बा्ब, भै-बै्णि, दगडू-सुवा सबूक परेम आ्पण-आ्पण जा्ग उतुकै जरूरी छ, जतुक साग में लूँण और खीर में चिनि। जब मैंस ज्वान हुण ला्गूँ, वीक नान्छना्क स्वींण लै बुरूँसा्क फूलूँक चा्रि खितखिताट करण फै जा्नीं। नान्छना आ्मैकि रा्ज-रा्णिक का्थै्कि रा्जै्कि च्येलि, ‘किरन परि’ बणि वीक मनम कुतका्इ लगूँण ला्गैं और उ करण ला्गूँ ‘स्वींणौ्क क्वीड़’
जापानिक ‘हाइकू’ हिन्दी में'इ नै, अब कुमाउँनी में लै खूब देखींण-सुणींण फै ग्यीं। अगर म्ये्रि जानकारि सई छ, त कुमाउँनी में हाइकू लेखणै्कि शुरूआत सबुहै पैली ज्ञान पंत ज्यूल अस्सीक दशक में करि हा्ल छी, पछा उनरि किताब ‘कणिक’ नामैल छापिणीं। हाइकू लेखणौ्क प्रयोग नवेंदु ज्यूल लै करि रा्खौ-
‘‘बंण बै बाग/शहर बै मैस्यिोलि/हरै ग्ये आज।’’
आखिर में, मैं नवेंदु कैं उनरि रचनात्मक समाजसेवा क लिजी बधाई दिनूँ। ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ उना्र देखी स्यूँणा कैं पुर करैलि, यौ संग्रह में नवीन जोशि ज्यूल आ्पणि कवितान कैं एकबट्या रा्खौ। मकैं पुर विश्वास छ, उघड़ी आखूँक स्वींण पढ़नियाँकैं नवेंदुकि ज्यूनि, जुन्या्लि रात जसि अङाव हा्लड़ी ला्गलि।
 डॉ. प्रभा पंत,  
एसो. प्रोफेसर, हिन्दी, एम.बी.रा.स्ना.महाविद्यालय,  हल्द्वानी
(कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ की भूमिका से उद्धृत)                                                               

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जनभाषा की कसौटी पर खरी उतरती है ‘नवेंदु’ की कविता


दोस्तो, मेरे पहले कुमाउनी कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ पर आप सुधी पाठकों की बेहद उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। अनेक साहित्य प्रेमियों ने पुस्तक की प्रतियां चाही हैं। निजी व्यस्तताओं की वजह से सभी को समय पर प्रतियां भेजना संभव नहीं हो पा रहा है, आशा है अन्यथा नहीं लेंगे। वैसे पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल-कंसल बुक डिपो, माल रोड के नारायन्स बुक शॉप और तल्लीताल में सांई बुक डिपो पर उपलब्ध करा दी गई हैं। यहां से भी पुस्तक प्राप्त की जा सकती है। 
: नवीन जोशी ‘नवेंदु’

दामोदर जोशी ‘देवांशु’

पुस्तक पर कुमाउनी के वरिष्ठ साहित्यकार, संपादक दामोदर जोशी ‘देवांशु’ की ओर से शुभकांक्षा के दो शब्द 

‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ नवीन जोशी ‘नवेंदु’ द्वारा आचंलिक भाषा कुमाउनी में लिखा गया काव्य संकलन है। यह कवि का प्रथम कुमाउनी कविता संग्रह है। जो उसके एक स्वप्न की परिणति है। इससे पूर्व कवि की रचनाएँ छिटफट रूप में पत्र-पत्रिकाओं सहित डॉडा कॉठा स्वर ;काव्य संग्रह, ऑखर तथा दुदबोलि आदि में प्रकाशित होकर कुमाउनी साहित्य की थाती बन चुकी हैं।
कवि ‘नवेंदु’ ने स्वयं संघर्षमय अतीत देखा है। जीवन की जटिलताओं-विषमताओं और विद्रूपताओं से वे स्वयं दो-चार होकर आगे बढ़े हैं। भाषा प्रेम बचपन से रहा। आंचलिक भाषा को अपने उद्गम में ही उपेक्षित होते हुए देखा। जब पहाड़ी बोलने वालों को लोग ‘गंवार’ तक कह देने में नहीं चूकते थे। ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी कवि ने माता-पिता और समाज रूपी पाठशाला से कुमाउनी भाषा रूपी अमृत को अपने मन के कलश में भर लिया और उसे ही जन कल्याणार्थ व भाषा विकासार्थ लेखनी द्वारा अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
उघड़ी आंखोंक स्वींण’ से तात्पर्य आंखों देखा यथार्थ है। कवि वास्तविकता के धारातल पर विश्वास करता है अतः उसकी कविता में कल्पना की उड़ान नहीं है। फूहड़ हास्य, अतिशयोक्तिपूर्ण अथवा अतिरंजित वर्णनों द्वारा वह वाहवाही नहीं लूटना चाहता। श्रृंगारिक दृश्यों के चित्रण से भी उसको ज्यादा लगाव नहीं है। शब्दों का ढकोसला उसे प्रिय नहीं। अतः उसकी कविता का प्रत्येक शब्द विस्तार लेने की क्षमता रखता है। वह आदर्श का नहीं यथार्थ का पक्षपाती है, और शाश्वत मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध है। सत-असत की विवेचना किये बिना वह भावना के ज्वार में बहने वाला नहीं है। उसकी भाषा जनभाषा की कसौटी पर खरी उतरती है और जन-जन की समस्याओं को प्रतिबिम्बित करती है। स्पष्ट है उसमें जनभाषा की सहजता, स्वाभाविकता, अल्हड़पन और अनगढ़ता विद्यमान है। 
कवि मानव के द्वारा खुली आंखों से देखे गये स्वप्न को साकार होना देखना चाहता है। इसके लिए वह दृढ़ संकल्प शक्ति, कठोर परिश्रम और अध्यवसाय को ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग करने की युक्ति बताता है। कवि की कविता में आमजन की व्यथा मुखरित होती है जो कवि को जनकवि होने के अभिधान के निकट ला खड़ा करती है। उसकी कविता बायवी न होकर जाग्रत और उतिष्ठित जीवन का सन्देश देती है।
कवि का मानना है कि आज आदमी कहीं खो गया है। इतनी भीड़ में भी वह पहचाना नहीं जा रहा। यहाँ वह नहीं उसकी छाया चल रही है। हिन्दू चल रहा है, मुसलमान चल रहा है, सिक्ख और ईसाई आदि रूपों में उसकी पहचान है। कबीर और गांधाी कहीं दृश्यमान नहीं हो रहे हैं। नवेंदु का संग्रह मनुष्य को मनुष्य बनने का सन्देश देता है। वस्तुतः कविता संग्रह चरम शिखर पर पहुँच गये भ्रष्टाचार, कदाचार प्रदूषण, क्षेत्रवाद और आतंकवाद आदि के विरुद्ध शंखनाद है। कवि आशान्वित है कि यह भेदभाव और जड़ता का कोहरा जल्दी हट छंट जायेगा। सद्बुद्धि का सबेरा जल्दी प्रकट होकर मानव के मोह व स्वार्थ के संसार को अपनी किरणों की तलवार से छिन्न-भिन्न कर देगा। भारत का गौरव फनः लौट आयेगा। भाषा के साथ विलुप्त हो रही अपनी संस्कृति भी फनः फूलने-फलने लगेगी।
नवीन जोशी ‘नवेंदु’ अपनी माटी से जुड़े युवा व उत्साही साहित्यकार हैं। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं का असली स्वर छिपा है। समाज की पहचान छिपी है और छिपी है गरीब, बेरोजगार, भ्रमित, श्रमित वर्ग की पीड़ा की प्रतिध्वनि। साहित्य के नव हस्ताक्षरों के लिए उनका रचना संसार एक दृष्टान्त है। उनकी प्रतिभा सतत् विकसित होती रहे और उनका भविष्य उज्ज्वल हो। इसी शुभकामना के साथ !

                      -दामोदर जोशी ‘देवांशु’ सम्पादक-गद्यांजलि 
(पूर्व प्रधानाचार्य)

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

कुमाउनी का पहला PDF फॉर्मेट में भी उपलब्ध कविता संग्रह "उघड़ी आंखोंक स्वींण"


दोस्तो, मेरे पहले कुमाउनी  कविता संग्रह "उघड़ी आंखोंक स्वींण" का विमोचन गत 24 अक्टूबर को  नैनीताल क्लब के शैले हॉल में 'नैनीताल शरदोत्सव-2013' के तहत उत्तराखंडी कवि सम्मेलन के दौरान किया गया. 
पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है। पुस्तक के बारे में कुमाउनी के मूर्धन्य कवि, लेखक, साहित्यकार व संपादक मथुरा दत्त मठपाल जी का आलेख साभार प्रस्तुत है। 

नवेंदु की कविता: एक नोट

कुमाउनी के युवा कवि नवीन जोशी ‘नवेंदु’ और उनकी कविता से मेरा पिछले अनेक वर्षों से परिचय रहा है। उनकी कविताओं की विषय-वस्तु का स्पान बहुत विस्तृत है, जिसमें दैनिक जीवन की साधारण वस्तुओं से लेकर गहनतम मानवीय अनुभूतियां सम्मिलित हैं। वे बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने में समर्थ हैं।  अनेक स्थानों पर भावों की ऊंची उड़ान भरने पर भी उनकी कविता अपनी सहजता-सरलता का त्याग नहीं करती। वे सरलतम शब्दों में मन के गहनतम भावों को प्रकट करने में समर्थ हैं। उनकी यही सामर्थ्य उन्हें अपनी उम्र से कहीं अधिक तक पेंठ करने वाले एक सशक्त रचनाकार का रूप देती है। वे कोरी लफ्फाजी नहीं करते। वरन, उन्हें जो कुछ कहना होता है, उसे वे ठोक-बजाकर, और अनेक स्थलों पर ताल ठोंक कर भी सरलतम शब्दों में पाठकों के आगे प्रस्तुत कर देते हैं।


मानवों के बीच के आपसी रिश्ते ठंडे पड़ चुके हैं, और हर इन्सान जैसे इन्हीं ठण्डे रिश्तों को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर दुबका हुआ है। अपने बाहर वह एक सुरक्षा खोल सा ओढ़ कर दुबका हुआ है, और इसी में वह अपनी सुरक्षा समझ रहा है।म्येसी गईं मैंस/ बारमासी / अरड़ी रिश्त-नातना्क अरड़ में/ इकलै बिराउक चार/ चुला्क गल्यूटन में लै - अरड़
मानव केवल स्वप्न बुन रहा है। करने का सामर्थ्य होते हुए भी वह एक विचित्र  प्रकार की तामसिक वृत्ति से घिरा है।

आफी बांदी खुद खोलंण, दुसरों कें चांणईं/ बिन के पकाइयै, लगड़-पुरि चांणई । - सब्बै अगाश हुं जांणईं समय बहुत बलवान है। समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। लड़ाई भी। शत्रु पक्ष बदल जाता है, लड़ाई का कारण, उसकी तकनीक, उसका उद्देश्य सब कुछ बदल जाता है-



लड़ैं- बेई तलक छी बिदेशियों दगै / आज छु पड़ोसियों दगै / भो हुं ह्वेलि घर भितेरियों दगै। कवि के पास एक उत्कृष्ट जिजीविषा है, जिसके दर्शन हमें उसकी अनेक कविताओं में होते हैं। उसका मानना है कि घोर संकट के क्षणों में भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए- पर एक चीज/ जो कदिनै लै/ न निमड़णि चैनि/ जो रूंण चैं/ हमेशा जिंदि/ उ छू-उमींद/ किलै की-/ जतू सांचि छू/ रात हुंण/ उतुकै सांचि छू/ रात ब्यांण लै। - उमींद                                                     ‘सिणुक’ शीर्षक कविता में कवि एक सिणुक (तिनके) के भी अति शक्तिशाली हो सकने के तथ्य को रेखांकित करता है-  जो् कान/ सच्चाइ न सुणन/ फोड़ि सकूं/ जो आं्ख/ बरोबर न देखन/ खोचि सकूं/ जो दाड़/ भलि बात न बुलान/ उं दाड़न ल्वयै सकूं।                                                           मानवीय सामर्थ्य के बौनेपन का अहसास कराने वाली कविता ‘ज्यूंनि’, जिसमें गजल की रवानी है-मुझे बहुत अच्छी लगी-कूंणा्क तैं ज्यूनि, ज्यूं हर आदिम।/ सांचि कौ कूंछा-ज्यूनि बोकण जस लागूं/ उ ठेठर जो डाड़ मारि बेर सबूं कैं हंसूं / म्या्र आंखा्क पांणि में वी आदिम जस लागूं।
समाज का एक बड़ा वर्ग सर्वहारा वर्ग का है। वह एक तिनके की तरह कमजोर-निरीह-अल्पसंतोषी, आत्मसंतोषी है-


तिनाड़न कैं कि चैं ?/ के खास धर्ति नैं/ के खास अगास नैं/ के मिलौ/ नि मिलौ/ उं रूनीं ज्यून/ किलै, कसी ?/ बांणि पड़ि ग्येईं ज्यून रूंणा्क -तिना्ड़
‘भैम’ कविता में कवि का संदेश बहुत स्पष्ट है। दशहरे में फूंका जाने वाला रावण तो मात्र एक बहम है। फूंक सकते हो तो-
मेरि मानछा/ न बणाओ/ न भड़़्याओ मरी रावण/ जब ठुल-ठुल रावण छन जिन्द दुनी में/ करि सकछा/ उनन कें धरो चौबटी में/ उनूं कैं भड़्याओ/ खाल्लि/ भैम  भड़्यै बेर कि फैद ?
मनुष्य को मुंह तो खोलना ही होगा। आपाधापी और अनिश्चितता की आज की परिस्थितियों में यह और भी अध्कि आवश्यक हो चला है। ‘कओ’ कविता में कवि आह्वाहन करता है-
कओ,/ जोर-जोरैल कओ/ जि लै कूंण छू/ पुर मनचितैल कओ/ तुमि चुप न रओ/ निडर-निझरक है बेर/ अपण-पर्या भुलि बेर/ पुर जोरैल/ हकाहाक करो। 
आशा का स्वर- 
ह्वल उज्या्व, अर ए दिन जरूड़ै ह्वल/ मिं जानूं-तैसि न सकीणी क्वे रातै न्हें -हमा्र गौं में
‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ कविता, जिस पर इस काव्य संकलन को नाम दिया गया है, आशावाद की एक श्रेष्ठ कविता है, इसकी एक अन्तिका देखैं-
छजूणईं ईजा्क थान कैं/ बाबुक पूर्व जनमा्क दान कैं/ झाड़णईं झाड़/ छांटणईं गर्द/ समावणईं पुरुखनैकि था्ति/ चढ़ूणईं फूल-पाति/ दिणईं आपणि बइ/ हरण हुं दुसरोंकि टीस-पीड़/ राता्क धुप्प अन्या्र में/ मिं लै देखणयूं-उघड़ी आंखोंक स्वींण।
जीवन क्या है ? विषम परिस्थितियों में भी जी जाना ही तो-
चिफा्व सिमार बा्ट में लै, दौड़ छु ज्यूनि - ज्यूनि
फिरि लै-/ जि ऊंणईं आं्स त/ समा्इ बेर धरि ल्हिओ/ कभतै कत्ती/ हंसि आली अत्ती/ काम आल - डाड़ मारणैल
कवि ने छन्द-मुक्त कविता, गीत, गजल, क्षणिकायें, हाइकू आदि विविध रचना -शैलियों पर सार्थक रूप से अपनी लेखनी चलाई है। अनेक स्थलों पर बिम्बों और प्रतीकों का सहारा लिया है। अनेक अलंकार कवि की रचना में स्वतः आ गए हैं। कवि के पास एक समृद्ध कुमाउनी भाषा है। निम्न शब्द प्रचलन से हटते जा रहे हैं- 
गल्यूट, घ्यामड़, उदंकार, असक, एकमही, अद्बिथर, कट्ठर, कुमर, भुड़, पांजव जैसे ठेठ ग्रामीण कुमाउनी शब्दों का व्यापक और सही स्थान पर प्रयोग हुआ है। अनेक स्थलों पर मुहावरों, लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग हुआ है, यथा-किरमोई बर्यात, गुईं जिबा्ड़, ब्याखुलिक स्योव, चोर मार, मरी पितर भात खवै, सतझड़ि करण, आंखन जाव लागण आदि। 
नवेंदु जी को अपनी तरुणावस्था तक अपने बाल्यकाल में नैनी-चौगर्खा (जागेश्वर) क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश में रहने का अवसर मिला है। किसी भी भाषा को सीखने के लिए यही सर्वोत्तम आयु होती है। आगे चल कर कपकोट के बाहर भी उनको कुमाउनी परिवेश मिला। उनकी समृद्ध कुमाउनी का यही रहस्य है, जोआज की युवा पीढ़ी में कम ही दिखाई दे रहा है। पिफर घर के भीतर उन्हें अपने रचनाकार पिता का सानिध्य मिलता रहा, जिससे रचनाशीलता के लिए ललक और सामर्थ्य का निरन्तर विकास होता चला गया। उनके पिता श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु’ हिंदी और कुमाउनी के एक सशक्त रचनाकार/ कवि हैं। स्वयं के लेखन और प्रकाशन के अतिरिक्त उन्होंन कुमाउनी रचनाधर्मियों के एकांकी, निबंध, कहानी आदि संग्रहों का समय-समय पर सम्पादन/प्रकाशन और कुमाउनी भाषा को आगे बढ़ाने में भारी सहायता की है। मेरी तो यही कामना है है कि नवेंदु जी साहित्य के क्षेत्र में अपने यशस्वी पिता से कहीं आगे निकलें, क्योंकि ‘पुत्रात शिष्यात् पराजयमम्’-यानी पुत्र और शिष्य से तो पराजय की ही कामना करनी चाहिए। अलमतिविस्तरेण। 


 -मथुरा दत्त मठपाल
महाशिवरात्रि पर्व,   सम्पादक-दुदबोलि (कुमाउनी वार्षिक पत्रिका)
10 मार्च 2013 ई.    पम्पापुर, रामनगर, नैनीताल जनपद।


प्रस्तुत कविता संग्रह में प्रदेश की लोक संस्कृति, सामाजिक सरोकारों, जीवन दर्शन, राजनीतिक प्रदूषण के साथ ही प्राकृतिक बिंबों को प्रदर्शित करती एवं वर्तमान हालातों की विषमताओं व विद्रूपताओं के बावजूद सकारात्मक सोच से आगे बढ़ने का संदेश देने वाली 114 कुमाउनीं कविताएं संग्रहीत हैं। इनमें तुकांत, लयबद्ध, गीत, गजल एवं आधुनिक जापानी हाइकू शैली की कविताएं भी शामिल हैं। दैनिक जीवन के बहुत छोटे तिनाड़ (तिनके), ढुड. (पत्थर), चिनांड़ (चिन्ह), सिंड़ुक (सींक), म्यर कुड़ (मेरा घर), अरड़ (ठंडा), रींड़ (ऋण) बुड़ बोट (बूढ़ा पेड़), बा्टक कुड़ (रास्ते का घर) व गाड़िकि रोड जैसे बिंबों के साथ ही राजअनीति, पहाड़ाक हाड़, इतिहास, पछ्याण (पहचान), बखत (समय), ज्यूनि अर मौत (जिंदगी और मौत), पनर अगस्ता्क दिन तथा घुम्तून हुं (पर्यटकों से अपील), बाग ऐगो, इंटरभ्यू में, गाड़ ऐ रै, हमा्र गौं में, परदेश जै बेर व मिं रूढ़िवादी भल (मैं रूंढ़िवादी ही ठीक) जैसी कविताएं मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों विषयों पर कटाक्ष करने के साथ ही इनसे उठने वाले सवाल उठाने के साथ उनके जवाब भी देती नजर आती है। साथ ही गहरे अंधेरे के बाद अवश्यमेव उजाला होने का विश्वास भी जगाती है।

पृष्ठ संख्या: 160, कुल कवितायेँ: 114, मूल्य पुस्तक: रुपए 250, मूल्य : PDF फॉर्मेट रुपये 150। 

पुस्तक P.D.F. फोर्मेट में रूपए 150 में (S.B.I. नैनीताल के खाता संख्या 30972689284 में जमाकर) ई-मेल से भी मंगाई जा सकती है।

प्रकाशक: जगदम्बा कम्प्यूटर्स एंड ग्राफ़िक्स, हल्द्वानी (नैनीताल), उत्तराखंड। 

दोस्तो,
मेरी  चुनिन्दा कुमाउनी कवितायें मेरे ब्लॉग 'ऊंचे पहाड़ों से.… जीवन के स्वर' के लिंक को क्लिक कर के देख सकते हैं। . 

बधाइयों, शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के लिए सभी मित्रों / अग्रजों का धन्यवाद, आभार, सुविधा के लिए पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है। 


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Mobile: 9412037779, 9675155117.

रिकार्ड भीड़ ने दी नैनीताल शरदोत्सव को विदाई

नैनीताल। नैनीताल शरदोत्सव 2013 को आखिरी दिन रिकार्ड भीड़ ने उत्साह के साथ नाचते-झूमते हुए अलविदा कहा। इस मौके पर इंडियन आइडिल के साथ ही देश-दुनिया में अपने प्रदर्शन से नाम कमा चुके मूलत: प्रदेश के ही कलाकारों, रुद्रपुर की कनिका जोशी व देहरादून के प्रियंका नेगी व कपिल थापा की गायकी के जादू पर धारचूला के सत्यवान सिंह नपलच्याल 'सत्या' की अगुवाई वाले डी-मानियाएक्स ग्रुप के हैरतअंगेज नृत्य ने ऐसा जादू बिखेरा की दर्शक स्थिर नहीं रह पाए, और जो जहां था वहीं झूमता नाचता नजर आया। कनिका ने सुप्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगीत कैले बजै मुरुली से शुरुआत की और प्रियंका व कपिल के साथ व अलग हिंदी फिल्मों के कई नए-पुराने डांस नम्बर गीतों से खूब जादू चलाया। उत्साह का आलम यह था कि मध्य रात्रि के करीब मजबूरन आयोजकों को कार्यक्रम के समापन की घोषणा करनी पड़ी। समापन के मौके पर डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी ने कलाकारों और उनके परिजनों को स्मृति चिह्न बांटे एवं आयोजन में सहयोग देने वाले प्रशासनिक अधिकारियों, नगर पालिका प्रशासन एवं नगर की जनता का आभार जताया। 

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

राहुल के पीएम बनने की कल्पना मूर्खता: कोश्यारी


नैनीताल (एसएनबी)। वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने गत दिवस दागी जनप्रतिनिधियों संबंधी अध्यादेश को बकवास कहने वाले राहुल गांधी को ही नॉनसेंस करार दिया है। वह शुक्रवार को नैनी जिला कारागार परिसर में पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे। राहुल गांधी के भावनात्मक भाषणों पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कोश्यारी ने कहा कांग्रेस के उपाध्यक्ष के बयानों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया जा सकता। वह अपनी पार्टी में जिस पद पर हैं उसके भी योग्य नहीं हैं, लिहाजा उनके लिए प्रधानमंत्री बनने की कल्पना मूर्खता है। उन्होंने कहा, "जो व्यक्ति प्रधानमंत्री द्वारा तैयार विधेयक को 'नॉनसेंस' कहता है, वह खुद 'नॉनसेंस' है।"

कोश्यारी शुक्रवार को रुद्रपुर से गिरफ्तार 27 पार्टी कार्यकर्ताओंसे मिलने पार्टी नेताओं के साथ नैनी जिला कारागार पहुंचे थे। इस दौरान कोश्यारी मीडियाकर्मियों के सवालों के जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा आसन्न पंचायत चुनावों में अपनी हार की संभावनाओं को देख कांग्रेस सरकार बौखला गई है। इसलिए प्रदेश में सद्भावना का माहौल बिगाड़ना चाहती है। सरकार ने यदि तुरंत पार्टी नेताओं पर दर्ज मुकदमे वापस न लिए और बंदी बनाए कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा न किया तो प्रदेश भर में जेल भरो आंदोलन चलाया जाएगा। इस मौके पर देवेंद्र ढैला, गोपाल रावत, हेम आर्या, मनोज साह, संतोश साह, नितिन कार्की, सहित बड़ी संख्या में भाजपाई साथ रहे। किसी की नजर ना लगे, यह दुआ कीजिए : एक प्रश्न के जवाब में कि उनकी नैनीताल लोस सीट से दावेदारी पर कई लोगों की नजर लगी हुई है। इस पर कोश्यारी ने चुटकी ली और दुआ कीजिए कि किसी की नजर लग ना जाए। 

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

बड़े परदे पर आयी राजुला-मालूशाही की प्रेम कहानी

देश के प्रमुख महानगरों व थियेटरों में शुरू होने वाली पहली फिल्म होगी नगर के अनिल घिल्डियाल और अभिनेता हेमंत पांडे हैं प्रमुख भूमिका में
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश की प्रसिद्ध प्रेमकथा राजुला-मालूशाही पर आधारित फिल्म राजुला शुक्रवार से देश के महानगरों के प्रमुख पीवीआर सिनेमाघरों में शुरू होने जा रही है। प्रदेश से जुड़ी फिल्मों के मामले में इसे पहला और ऐतिहासिक अवसर बताया जा रहा है। फिल्म में प्रदेश की लोक भाषाओं- कुमाउनीं व गढ़वाली के साथ ही हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी किया गया है। इस फिल्म में नगर के कलाकार अनिल घिल्डियाल के साथ ही सिने कलाकार हेमंत पांडे प्रमुख भूमिका में हैं। फिल्म राजुला में मुख्य खलनायक- मथुरा मामा का किरदार निभा रहे घिल्डियाल ने फिल्म की कहानी का खुलासा करते हुए बताया कि फिल्म में गढ़वाल की पृष्ठभूमि से जुड़ा एवं इंग्लैंड से पढ़ाई कर लौटा नायक दिल्ली में राजुला- मालूशाही नाटक देखते हुए प्रदेश की इस अप्रतिम प्रेमकथा पर शोध करने निकलता है। वहीं कुमाऊं की रहने वाली नायिका भी इसी प्रेम कथा पर अलग से शोध कर रही है। संयोग से दोनों मिल जाते हैं और शोध करते हुए दोनों में राजुला- मालूशाही की तरह ही प्रेम हो जाता है और वह फिल्म के कई दृश्यों में राजुला-मालूशाही के ऐतिहासिक किरदारों में प्रवेश करते हुए उस दौर की सांस्कृतिक झलक को प्रस्तुत करते जाते हैं। इस तरह दिल्ली के साथ नैनीताल से मुन्स्यारी तक फिल्माई गई यह फिल्म प्रदेश के पर्यटन, स्थापित्य एवं लोक संस्कृति की झलक पेश करती है। इसके साथ ही मनुष्य की संवेदनशीलता के जाति, धर्म, पंथ और क्षेत्र की सीमाओं से कहीं दूर होने का संदेश भी देती है। फिल्म का निर्माण हिमाद्रि प्रोडक्शन के लिए रमा उप्रेती ने निर्देशक नितिन उप्रेती, कहानीकार नितिन कुमार व मनोज चंदोला आदि के साथ मिलकर किया है। बताया गया है कि गत दिवस मुंबई में आयोजित फिल्म राजुला के प्रीमियर शो को बॉलीवुड से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली हैं। 

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

'दास' परंपरा के कलाकारों का नहीं कोई सुधलेवा


नैनीताल (एसएनबी)। सदियों से प्रदेश की लोक संस्कृति को समाज की उलाहना के बावजूद सहेजे हुए 'दास' परंपरा के कलाकारों की राज्य बनने के बाद भी किसी ने सुध नहीं ली। राज्य सरकार के उनकी कला को संरक्षित करने के दावे भी ढपोल शंख ही साबित हुए। बावजूद वह अब भी इस परंपरा को निभाए जा रहे हैं, और आगे की पीढ़ी को भी इसे थमाने की कोशिश है, लेकिन सशंकित भी हैं कि ऐसा कर भी पाएंगे या नहीं। 
नगर के पाषाण देवी मंदिर में इन दिनों नवरात्र के मौके पर रोज दूरस्थ बागेश्वर जनपद के रीमा क्षेत्र के जारती गांव निवासी दास परंपरा के कलाकार अनीराम व उनके भाई रमीराम अपनी दूसरी पीढ़ी के बेटों सुभाष, हरीश व ह्यात के साथ जमे हुए हैं, और रोज सुबह तड़के से लेकर अलग- अलग समयों पर अपनी विशिष्ट पोषाक के साथ गले में बड़े घुंघरुओं का छल्ला डालकर विजयसार (ढोल, दमुवा, नगाड़ा व भौंकर के समन्वय) पर नौबत (सुबह चार बजे देवताओं के स्नान की पूजा के समय का विशिष्ट संगीत) तथा निराजन (देवताओं के भोग के समय का अलग संगीत) आदि बजाते हुए अपना योगदान दे रहे हैं। रमी राम बताते हैं, विजयसार के साथ देवताओं के आह्वान का यह कार्य उन्हें विरासत में मिला है। अपने गृह क्षेत्र स्थित मूल नारायण के मंदिर में यह उनकी रोज की दिनर्चया का हिस्सा है। लोक संस्कृति में बिना दासों के द्वारा संगीत का यह योगदान दिए बिना देवताओं की दैनिक पूजा संभव ही नहीं है। बचे समय में शादी-बारात में भी जाते हैं, लेकिन बीते दशकों में बैंड बाजे के आने से शादियों में पहाड़ी ढोल-दमुवा, नगाड़े, तुतरी व बीन बाजे के कलाकार इस पैतृक कार्य से बेरोजगार हो गए हैं। केवल नाकुरी पट्टी क्षेत्र में ही उन जैसे गिने-चुने कलाकार राज्य सरकार की किसी योजना की उन्हें जानकारी भी नहीं है। उनके पास प्रदेश के लोक देवता मूल नारायण, प्रदेश की प्रसिद्ध प्रेम कथा राजुला-मालूशाही , जागर, जुन्यार आदि का पारंपरिक ज्ञान है, लेकिन उसके संरक्षण की किसी योजना से भी वह अनजान हैं। बताते हैं कि वाद्य यंत्रों की मढ़ाई में ही हजारों रुपये खर्च होते हैं। परिवार चलाना बेहद मुश्किल हो रहा है। वहीं पाषाणदेवी मंदिर में नवाह ज्ञान यज्ञ करा रहे आचार्य भगवती प्रसाद जोशी का कहना है कि पहाड़ में गुरुओं (पंडितों) और दासों की किसी भी धार्मिक आयोजन में समान व बड़ी भूमिका रहती है। पंडित तो किसी प्रकार पंडिताई को जारी रखे हुए हैं, लेकिन दासों की कला संरक्षण के अभाव में विलुप्ति की कगार पर है। वह इस कला को संरक्षित करने के उद्देश्य से हर वर्ष इन्हें बुलाते हैं। 

शनिवार, 28 सितंबर 2013

डीएनए जांच में चूक को लेकर एनडी का तर्क सिरे से खारिज


नवीन जोशी, नैनीताल। पितृत्व विवाद में फंसे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के डीएनए जांच में त्रुटि होने और एक लाख मामलों में से एक मामले में त्रुटि की संभावना जताकर स्वयं को निदरेष साबित करने की दलील को फारेंसिक विशेषज्ञ स्वीकार नहीं कर रहे हैं। नैनीताल में आयोजित देशभर के फारेंसिक मेडिसिन व टॉक्सीकोलॉजी विज्ञान विशेषज्ञों की 12वीं अखिल भारतीय कांग्रेस में यह मुद्दा अनेक विशेषज्ञों की जुबान पर था। अधिकतर का कहना था कि इस विशुद्ध वैज्ञानिक तकनीक को तकरे के आधार पर गलत नहीं ठहराया जा सकता। वहीं एम्स दिल्ली की वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीएनए प्रयोगशाला की प्रभारी डा. अनुपमा रैना ने भी कहा तिवारी द्वारा इस मामले में दिया जा रहा तर्क बेतुका है।
उन्होंने बताया कि केवल एक निषेचित अंडे के टूटकर दो भ्रूण के रूप में विकसित होने वाले दो जुड़वा भाइयों या जुड़वां बहनों का डीएनए समान हो सकता है जबकि सामान्यतौर पर जुड़वां पैदा होने वाले भाई-बहन अथवा दो से अधिक बच्चों के पैदा होने की स्थिति में भी (उनके अलग-अलग निषेचित अंडों से विकसित होने की वजह से) डीएनए समान नहीं होते। शनिवार को नगर के सूखाताल स्थित टीआरएच में डा. रैना ने एक भेंट में बताया कि डीएनए से किसी भी व्यक्ति की सौ फीसद सही पहचान होती है। दो लोगों के डीएनए नमूने मिलने की संभावना बेहद न्यूनतम (100 बिलियन यानी 10 करोड़ मामलों में ही कभी गलती से एक) हो सकती है। बेटे के डीएनए से पितृ पक्ष और बेटी के डीएनए से मातृ पक्ष की पीढ़ियों और उनके मूल के साथ ही व्यक्ति की उम्र, लिंग आदि की जानकारी भी आसानी से पता लगाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि देश के चर्चित प्रियदर्शिनी मट्टू और जेसिका लाल हत्याकांडों की गुत्थियां डीएनए जांचों से ही सुलझी हैं। केदारनाथ में विशेषज्ञ डीएनए नमूने लें तो बेहतर : केदारनाथ की त्रासदी में प्रदेश सरकार द्वारा अज्ञात व सड़े-गले शवों के डीएनए नमूने लिये जाने के बाबत पूछे जाने पर डा. अनुपुमा रैना का कहना है कि सामान्यत: पुलिसकर्मी डीएनए नमूने लेने में सक्षम नहीं होते। विशेषज्ञों को ही नमूने लेने चाहिए। केदारनाथ जैसे ठंडे स्थानों पर जमीन में दबे शवों के तीन-चार माह तक भी डीएनए नमूने लिए जा सकते हैं। 
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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

पुलिसकर्मी भी नहीं जाना चाहते पहाड़

डीजीपी ने अपने कार्यकाल को संतोषजनक बताया पर कार्यकाल छोटा रहने का अफसोस भी 
नैनीताल(एसएनबी)। दो दिन बाद सेवानिवृत्त हो रहे पुलिस महानिदेशक सत्यव्रत बंसल ने अपने कार्यकाल को संतोषजनक बताया है। अलबत्ता अपना यह दर्द जुबां पर लाने से स्वयं को रोक नहीं पाए कि उनका कार्यकाल बहुत छोटा एक वर्ष का ही रहा, जबकि अधिनियम में भी दो वर्ष के न्यूनतम कार्यकाल का जिक्र है। एक वर्ष किसी जिम्मेदारी को समझने में ही लग जाता है। डीजीपी ने कहा कि 839 पुलिसकर्मियों की भर्ती शीघ्र की जाएगी। उन्होंने यह कहने में गुरेज नहीं किया कि पुलिसकर्मी पहाड़ी जनपदों में जाने से बचते हैं। 
शुक्रवार को डीआईजी कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में अपने कार्यकाल में आई चुनौतियों के सफलतापूर्वक निर्वहन और कानून-व्यवस्था, पुलिस के आधुनिकीकरण और सीसीटीएनएस को आगे बढ़ाने की सफलताएं गिनाते हुए उन्होंने माना कि 1200 से अधिक पुलिसकर्मियों की कमी और अन्य व्यवस्थाओं की वजह से कम्युनिटी पुलिसिंग को यथोचित जारी नहीं रख पाए। उन्होंने बताया कि सरकार ने 839 पुलिस कर्मियों की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। इन कर्मियों की नियुक्ति जल्द होगी। इसके बाद व्यवस्थाएं बेहतर होने की उम्मीद है। डीजीपी सत्यव्रत बंसल ने दावा किया कि उनके एक वर्ष के कार्यकाल के दौरान अपराधों को दर्ज करने के साथ ही विवेचना और पैरवी के स्तर पर सुधार हुए और अपराध नियंतण्रमें रहे। वह स्वयं बड़े अपराधों की मॉनीटरिंग करते थे। इस दौरान राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति की प्रदेश यात्रा, केदारनाथ में तबाही और इस दौरान 628 शवों को खोज निकालने, उनके डीएनए नमूने लेने और उनका अंतिम संस्कार करने जैसे कायरे में पुलिस ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने कुमाऊं मंडल के पुलिस अधिकारियों की बैठक भी ली। इस मौके पर डीआईजी जीएन गोस्वामी, एसएसपी डा. सदानंद दाते सहित मंडल भर के पुलिस कर्मी मौजूद थे। पूर्व में पुलिसकर्मियों द्वारा ट्रांसफर में राजनीतिक हस्तक्षेप संबंधी बयान देने वाले डीजीपी सत्यव्रत बंसल ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधिकांश पुलिसकर्मी प्रदेश के चार मैदानी जिलों को छोड़कर शेष नौ पहाड़ी जिलों में नहीं जाना चाहते। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने प्रदेश की दो डीआईजी रेंजों को समाप्त करने को प्रदेश सरकार का निर्णय बताया। इसके साथ ही माना कि छोटी इकाइयों में बेहतर पर्यवेक्षण हो पाता था। अवैध खनन के मामले में उन्होंने कहा कि खनन रोकना अकेले पुलिस विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, वरन वह संबंधित विभागों की कार्रवाई में सहयोग के लिए तैयार है। कश्मीर में आतंकी घटनाओं के संदर्भ में उन्होंने थाने- कोतवालियों को भी आंख-कान खुले रखने की नसीहत दी। देहरादून के चर्चित गोलीकांड में उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल के बयान के बाद विधायक प्रणव सिंह चैंपियन के नाम पर कोई संदेह नहीं बचा है और केस डायरी में उनका नाम आ गया है, जो मुकदमे में भी शामिल कर लिया जाएगा।

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

आपदा के कारण आबादी क्षेत्रों में बढ़ रहे गुलदार !


बाघों की घटती संख्या भी है बड़ा कारण : हरीश धामी
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में हालिया दिनों में गुलदारों के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में आने, आदमखोर बनकर मानव-वन्य जीव संघर्ष बढ़ाने के पीछे प्रदेश में गत दिनों आई आपदा बड़ा कारण है, जबकि देश में बाघों की लगातार घटती संख्या प्रमुख कारण है। यह मानना है नैनीताल जनपद को पांच दिनों के अंदर दो आदमखोर गुलदारों से निराभय करने वाले शिकारी, क्षेत्र पंचायत सदस्य हरीश धामी का। गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही रामनगर में आदमखोर को केवल एक गोली से 40 मीटर की दूरी से मारकर ढेर करने वाले धामी का मानना है कि मानव के जीवन के दुश्मन बनने वाले गुलदारों और कृषि को नुकसान पहुंचा रहे जंगली सुअरों से निजात दिलाना एक तरह की समाज सेवा ही है। हालांकि वह ईश्वर से यह प्रार्थना भी करते हैं कि काश उन्हें वन्य जीवों के खिलाफ हथियार उठाने की जरूरत ही न पड़े। 
जनपद के देवीधूरा ग्राम निवासी धामी जन्मजात शिकारी कहे जा सकते हैं। हिंसक वन्य जीवों के करीब तक निडरता से पहुंचना और उसे एक गोली में ढेर कर देना धामी को विरासत से मिला है। उनके दादा धनसिंह धामी को अंग्रेजों के दौर से जारी वन्य जीवों से सुरक्षा के मद्देनजर हिंसक जीवों को मारने का अधिकार मिला हुआ था। हालांकि पिता की मौत के बाद उनके परिवार पर एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें अपने दादा की यही बंदूक बेचनी पड़ गई। लेकिन बाद में हालात सुधरने पर वह वापस 12 बोर की एक लाइसेंसी बंदूक ले आए, जिससे उन्होंने गत छह सितम्बर को वन विभाग की टीम से लगातार 57 दिन जंगलों की खाक छानने के बाद जिले के जंतवालगांव, सूर्याजाला व लमजाला क्षेत्रों में चार लोगों को जिंदा खा जाने वाले आदमखोर गुलदार को ढेर कर दिया था, और चार दिन के बाद ही रामनगर के काब्रेट टाइगर रिजर्व के सांवल्दे गांव क्षेत्र में पेड़ पर शिकार की तलाश में बैठे गुलदार को भी इसी बंदूक से मौत की नींद सुलाकर क्षेत्रवासियों के बीच हीरो बन गए। "राष्ट्रीय सहारा" से एक भेंट में धामी बताते हैं गुलदार पेड़ पर चढ़ने की क्षमता रखने वाला व स्वभाव से बेहद शातिर व धूर्त किस्म का जानवर होता है। यह छुपकर किसी पर भी हमला बोल सकता है। बीते दिनों प्रदेश में आई आपदा के बाद इसकी आबादी क्षेत्रों में अधिक उपस्थिति हुई है। रानीखेत और अल्मोड़ा शहरों में घरों के अंदर गुलदारों के घुसने की घटनाएं भी बीते माह प्रकाश में आई। संभव है कि आपदा में उसके प्राकृतिक भोजन हिरन प्रजाति के वन्य जीवों के हताहत हो जाने जैसे कारणों से वह आबादी क्षेत्रों की ओर आ रहे हों। देश- प्रदेश में बाघों की घटती संख्या भी गुलदारों की तेजी से बड़ी संख्या के पीछे बड़ा कारण हो सकता है। धामी बताते हैं कि उनकी सफलता के पीछे नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते, उप प्रभागीय वनाधिकारी यूसी तिवारी, रानीबाग के वन दरोगा आनंद लाल आर्य और दैनिक श्रमिक मुन्ना आदि के सहयोग की उनकी सफलता में मुख्य भूमिका रही।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

गुरुओं का हो रहा 'पलायन', चेले भगवान भरोसे

नवीन जोशी, नैनीताल। चेलों यानी छात्रों के ज्ञान अर्जित कर बेहतर अवसरों के लिए 'प्रतिभा पलायन' की खबरें तो आपने खूब सुनी होंगी, लेकिन गुरुजनों का भी 'प्रतिभा पलायन' होता है। विश्वविद्यालय अधिनियम में उपलब्ध 'असाधारण छुट्टी' की व्यवस्थाओं का लाभ उठाकर कुमाऊं विवि के आधा दर्जन से अधिक प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर तीन से पांच वर्ष की लंबी छुट्टी पर चले गए हैं, और बेहतर सुविधाओं की मौज उड़ा रहे हैं। वहीं कुविवि में अपने मूल पदों पर भी उनका कब्जा बरकरार है। विवि की मजबूरी है कि इन पदों को रिक्त मानकर नई नियुक्तियां भी नहीं की जा सकतीं, लिहाजा मात्र 10 से 25 हजार के मानदेय पर उन्हें छह-छह माह के सीमित समय के लिए रखा जा रहा है। इससे यह संविदा भी अपना भविष्य अनिश्चित होने के मानसिक दबावों में हैं, और छात्रों को स्तरीय शिक्षा मिल पा रही है। देश के अन्य विवि सहित कुविवि में भी व्यवस्था है कि उच्च शिक्षा लेने जैसी 'असाधारण' परिस्थितियों में पहले तीन और दूसरी बार और दो यानी कुल पांच वर्ष के लिए विवि कार्य परिषद का अनुमोदन प्राप्त कर बिना वेतन के लंबे अवकाश पर जा सकते हैं। इस व्यवस्था का लाभ उठाकर विवि के अनेक प्रोफेसर लंबे अवकाश पर चले गए हैं और आईआईएम काशीपुर, उत्तराखंड मुक्त विवि व बनारस हिंदू विवि सरीखे अन्य संस्थानों में अधिक वेतन-सुविधाओं की मौज उड़ा रहे हैं। ऐसे में स्थिति यह है कि कुमाऊं विवि का तीन वर्ष पूर्व तक विवि के लिए बेहद लाभदायक रहा स्ववित्त पोषित आधार पर चलने वाला आईपीएसडीआर संस्थान यहां के तत्कालीन निदेशक डा. आरसी मिश्रा के जाने के बाद से अस्तित्वहीन हो गया है, और विवि की आय का एक बड़ा हिस्सा भी प्रभावित हुआ है। प्रोफेसरों के विवि छोड़कर जाने के पीछे विवि की अंदरूनी राजनीति भी एक बड़ा कारण बतायी जा रही है, जिसके तहत विरोधी विचारधारा के शिक्षकों को विवि छोड़ने को मजबूर कर दिया जाता है, और बाद में चहेतों को संविदा पर रखा जाता है। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी का कहना है कि विवि अधिनियम में ऐसी व्यवस्था है, लिहाजा वह इससे अधिक कुछ नहीं कह सकते। एबीबीपी के जिला संयोजक निखिल का कहना है कि शिक्षकों का बेहतर सुविधाओं के लिए अपने मूल छात्रों को उनके बेहतर शिक्षा के अधिकार से वंचित कर जाना भले विवि अधिनियम में गलत न हो, पर यह नैतिक रूप से गलत है। बेहतर हो कि ऐसे शिक्षक त्यागपत्र देकर ही अन्यत्र जाएं।

कुमाऊं विवि में 23 पदों को संविदा शिक्षकों से भरने की नौबत

नैनीताल। कुमाऊं विवि में प्रोफेसरों के लंबे अवकाश पर जाने के कारण रिक्त सहित कुल 23 पदों पर संविदा पर शिक्षकों की नियुक्तियां की जा रही हैं। विवि के कुलसचिव की ओर से जारी विज्ञप्ति में साफ किया गया है कि यह नियुक्तियां नितांत अस्थायी तौर पर केवल 31 दिसम्बर 2013 तक के लिए ही की जा रही हैं। इनमें डीएसबी परिसर नैनीताल के लिए संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, जंतु विज्ञान व सांख्यिकी विभागों में एक-एक, फार्मेसी व भूविज्ञान विभाग में दो-दो व भौतिकी विभाग में तीन सहित कुल 15 पद तथा एसएसजे परिसर अल्मोड़ा के लिए समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, वनस्पतिविज्ञान, गणित, सांख्यिकी व सूचना प्रोद्योगिकी में एक-एक तथा शिक्षा विभाग में दो सहित कुल आठ पद शामिल हैं।

लंबे अवकाश पर जाने वाले शिक्षक


  1. डा. केएन बधानी-एसोसिएट प्रोफेसर-वाणिज्य विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल।
  2. डा. आरसी मिश्रा-प्रोफेसर- वाणिज्य विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल। 
  3. डा. गिरिजा प्रसाद पांडे-एसोसिएट प्रोफेसर-इतिहास विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल।
  4. डा. एचएस अस्थाना-एसोसिएट प्रोफेसर-मनोविज्ञान विभाग, एसएसजे अल्मोड़ा परिसर। 
  5. डा. दुर्गेश पंत- प्रोफेसर-कम्प्यूटर विभाग, एसएसजे परिसर, अल्मोड़ा। 
  6. डा.एचएस झा, प्रोफेसर-समाजशास्त्र, डीएसबी परिसर, नैनीताल। 
  7. डा. विजय जुयाल- प्रोफेसर-फाम्रेशी, भीमताल परिसर। 
  8. प्रो.एचपी शुक्ला- अंग्रेजी विभाग, डीएसबी परिसर नैनीताल।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

आदमखोरों की होगी डीएनए सैंपलिंग

पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के प्रयोग असफल रहने के बाद उठाया जा रहा कदम 
नैनीताल वन प्रभाग से होगी शुरुआत, मल से लिये जाएंगे डीएनए के नमूने
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक आदमखोर बाघों व गुलदारों की पहचान उनके पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के जरिए की जाती रही है, लेकिन इन प्रविधियों की असफलता और अब गांवों के बाद शहरों में भी अपनी धमक बना रहे आदमखोरों की त्रुटिहीन पहचान के लिए वन विभाग अत्याधुनिक डीएनए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग इनकी पहचान के लिए करने जा रहा है। इसकी शुरुआत नैनीताल वन प्रभाग से होने जा रही है। इस नई तकनीक के तहत वन विभाग ग्रामीणों के सहयोग से वन्य पशुओं के मल (स्कैड) को एकत्र करेगा। मल का हैदराबाद की अत्याधुनिक सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण कर डाटा रख लिया जाएगा और आगे इसका प्रयोग आदमखोरों की सही पहचान में किया जाएगा। 
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार कोई भी हिंसक वन्य जीव अपने जीवन पर संकट आने जैसी स्थितियों में ही आदमखोर होते हैं। बीते दिनों में नैनीताल जनपद के चोपड़ा, जंतवालगांव क्षेत्र में चार लोगों को आदमखोर गुलदार अपना शिकार बना चुके हैं। रामनगर के जिम काब्रेट पार्क से लगे क्षेत्रों में आदमखोर बाघों से अक्सर मानव से संघर्ष होता रहा है। दिनों-दिन ऐसी समस्याएं बढ़ने पर वन विभाग ने पहले इन हिंसक वन्य जीवों के पदचिह्नों की पहचान की तकनीक निकाली, लेकिन बेहद कठिन तकनीक होने के कारण कई बार बमुश्किल प्राप्त किए पदचिह्न किसी अन्य वन्य जीव के निकल जाते हैं और उनके इधर- उधर आने-जाने की ठीक से जानकारी नहीं मिल पाती। इससे आगे निकलकर निश्चित स्थानों पर थर्मो सेंसरयुक्त कैमरे लगाकर इनकी कैमरा ट्रैपिंग का प्रबंध किया गया, किंतु यह प्रविधि भी कुछ ही स्थानों पर कैमरे लगे होने की अपनी सीमाओं के कारण अधिक कारगर नहीं हो पा रही है। नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते का दावा है कि इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने सीसीएमबी हैदराबाद जाकर अध्ययन किया है व वहां के डीएनए सैंपलिंग विशेषज्ञों ने हिंसक जीवों के आतंक से निजात दिलाने के लिए यह नया तरीका खोज निकाला है। डा. धकाते बताते हैं कि नई विधि के तहत शीघ्र ही आदमखोरों की अधिक आवक वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों व विभागीय कर्मियों को एक दिवसीय 'कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम' चलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। ग्रामीणों को विभाग प्लास्टिक के थैले उपलब्ध कराएगा, जिसमें ग्रामीण कहीं भी जानवर का मल मिलने पर थोड़ा सा एकत्र कर लेंगे। बाद में विभाग इसे सीसीएमबी हैदराबाद भेजेगा और त्रुटिहीन तरीके से उस क्षेत्र में सक्रिय हिंसक जीव की पहचान एकत्र कर ली जाएगी। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर निदेशक व जंतु विज्ञानी प्रो. बीआर कौशल ने भी डीएनए सैंपलिंग के इस तरीके के बेहद प्रभावी होने की संभावना जताते हुए कहा कि मल में जानवर की लार, सलाइवा, हड्डी या पेट की आंतों के अंश होते हैं, जिनसे उस जानवर का डीएनए सैंपल प्राप्त हो जाता है।

बाघों की मौत के वैज्ञानिक अन्वेषण के निर्देश दिए

नैनीताल । नैनीताल उच्च न्यायालय ने काब्रेट पार्क में बाघों की मौत मामलों में वन अफसरों की लापरवाही को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने निदेशक सीटीआर को बाघों की मृत्यु का वैज्ञानिक अन्वेषण करने के निर्देश दिये हैं। खंडपीठ ने गौरी मौलखी की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि काब्रेट पार्क में बाघों की मौत का सही अन्वेषण नहीं किया जा रहा है। वन अफसर जांच में बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्धारित मापदंडों का सरासर उल्लंघन कर रहे हैं।