बुधवार, 24 अगस्त 2011

एरीज से हवा की ’फितरत‘ पर नजर

एरीज में वायुमंडल में 30-32 किमी तक के प्रदूषण का मापन शुरू हीलियम गैस से भरे गुब्बारों में लगाए गए उपकरणों से एकत्रित किए जाते हैं आंकड़े
नवीन जोशी नैनीताल। नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान ‘एरीज’ से हवा में आने वाले प्रदूषण पर नजर रखी जा रही है। आने वाले दिनों में राज्य के लिए यंह ‘कार्बन क्रेडिट’ मांगने का आधार साबित हो सकता है। एरीज में इसरो, अमेरिका के ऊर्जा विभाग व आईआईएससी बेंगलुरु के सहयोग से परियोजना चल रही है। इसके तहत हर सप्ताह वायुमंडल में हीलियम गैस से भरे गुब्बारों को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। ये गुब्बारे धरती की सतह से 30 से 32 किमी. की ऊंचाई तक जाते हैं। अपने साथ लेकर गए दो उपकरणों ‘ओजोन सौंडे’ व ‘वेदर सौंडे’ की मदद से हवाओं की दिशा, दबाव, तापमान व ओजोन की मात्रा जैसे आंकड़े एकत्र करते हैं। इतनी ऊंचाई तय करने में गुब्बारों को करीब एक से डेढ़ घंटे लगते हैं, इस दौरान यह लगातार आंकड़े देते रहते हैं। इस परियोजना के वैज्ञानिक डा. मनीष नजा का कहना है कि नैनीताल के वायुमंडल में चूंकि अपना प्रदूषण नहीं है। यहां के वायुमंडल से प्राप्त प्रदूषण व ओजोन गैस के आंकड़े पूरी तरह से बाहर से आने वाली हवाओं के माध्यम से लाए होते हैं। इसलिए वायुमंडल में आने वाली हवाओं की दिशा का अध्ययन किया जा रहा है। आने वाले तीन माह में इस बाबत ठोस तरीके से कहा जा सकेगा कि देश-दुनिया के किस क्षेत्र के प्रदूषण का यहां के वायुमंडल पर प्रभाव पड़ रहा है। अब तक के अध्ययनों से यह देखा गया है कि पहाड़ पर अप्रैल-मई में लगने वाली जंगलों की आग के कारण पांच किमी से ऊपर के वायुमंडल में ओजोन की अत्यधिक मात्रा रिकार्ड की गई है। शेष समय मात्रा सामान्य है। 
मैदानी क्षेत्रों पर भी नजर : 
एरीज में एक अन्य परियोजना ‘गंगा वैली ऐरोसोल एक्सपेरीमेंट’ के तहत हर दिन चार छोटे गुब्बारे भी हवा में छोड़े जा रहे हैं। इनके माध्यम से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप हो रही ग्लोबल वार्मिग व ग्लोबल कूलिंग तथा सौर विकिरण पर पड़ रहे प्रभाव का आकलन किया जा रहा है। मौसम वैज्ञानिक डा. मनीष नजा के अनुसार भविष्य में पंतनगर और लखनऊ से भी इस प्रकार के आंकड़े लिए जाएंगे। उपग्रह से प्राप्त चित्रों में इन क्षेत्रों में काफी मात्रा में औद्योगिक प्रदूषण देखा गया है, जिसका अब विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। 
उपकरण लौटाने पर इनाम : 
बैलून के जरिए वायुमंडल में छोड़े जाने वाले उपकरण करीब चार घंटे में धरती पर कहीं भी आ गिरते हैं। हालांकि जीपीएस सिस्टम से जुड़े इन उपकरणों के गिरने के बावजूद पूरी जानकारी एरीज में होती है। इसके बावजूद यहां के अधिकारियों ने इनकी सूचना देने व लौटाने पर पांच सौ व एक हजार रुपये के इनाम घोषित किए हैं। इन उपकरणों पर इनाम की जानकारी और लौटाने का पता भी लिखा होता है। इसलिए यदि आपको कहीं ऐसे पता व सूचना लिखे वैज्ञानिक उपकरण मिल जाएं तो इन्हें एरीज को लौटाकर इनाम ले सकते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

Suresh kumar ने कहा…

बहुत ही अच्छी जानकारी ..

डॉ. नवीन जोशी ने कहा…

Thank you Suresh Kumar ji to comment and appreciate.