सोमवार, 4 जुलाई 2011

कहां तो चिराग तय था हर घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए


एक जिले के लिए थी 550 करोड़ की दरकार, पूरे सूबे के लिए मिली इतनी धनराशि
नवीन जोशी नैनीताल। नैनीताल नगर के लिए काले दिन के रूप में याद किया जाने वाला 18 सितंबर 2010 जनपद व राज्य का काला दिन साबित हो गया। इस दिन पहाड़ पर आपदाओं के ‘पहाड़’ टूट पड़े, लेकिन अगर कोई न टूटा तो वह थे नेता-राजनीति और सुस्त लापरवाह मशीनरी। ऐसे में एक जनपद नैनीताल द्वारा आपदा से निपटने के लिए शासन से की गई 550 करोड़ रुपयों की दरकार को पूरा करके ही केंद्र सरकार 13 जिलों के प्रदेश को देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली और आपदा पीड़ित राज्यवासियों से 2100 करोड़ की ‘देनदारी’ कबूल कर चुकी राज्य सरकार भी देनदारी चुकाने के लिए कोई और इंतजाम नहीं कर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाई। 
नैनीताल जिला प्रशासन ने गत वर्ष आई आपदा से निपटने में शुरुआत में करीब 1. 4 करोड़ के मुआवजे देने में जो मुस्तैदी दिखाई उसे वह आगे कायम नहीं रख सका। डीएम नैनीताल शैलेश बगौली के अनुसार इसका कारण जरूरत का केवल 10 फीसद धनराशि (करीब 60 करोड़) मिल पाना रहा। बगौली के अनुसार जिले में आपदा से केवल परिसंपत्तियों की ही 350 करोड़ की क्षति हुई थी जबकि सुरक्षात्मक कायरे के लिये 250 करोड़ भी बेहद जरूरी थे, लेकिन तस्वीर का एक पहलू यह भी है जिला स्तर से 59.01 करोड़ की जिन 853 योजनाओं को स्वीकृत दी गई। इनमें से भी आपदाओं का नया बरसाती सत्र आने तक केवल 32.28 करोड़ की 420 योजनाएं ही पूरी हो पाई हैं। यानी इनसे अधिक 433 योजनाएं अभी अधूरी हैं। इनमें से नगर के करीब ही भवाली रोड पर टूटा पहाड़ के पास ध्वस्त हुई सड़क हो या आपदा से सर्वाधिक प्रभावित बेतालघाट क्षेत्र में सुरक्षात्मक कार्य शुरू भी नहीं हो पाये हैं। अल्मोड़ा मार्ग छड़ा व क्वारब के पास ध्वस्त हो चुका है। हालांकि डीएम आस्त हैं कि पहाड़ के हर ब्लाक में दो से तीन व मैदानी ब्लाकों में एक-एक टीम और नोडल अधिकारी बनाकर प्रशासन आगे आपदा से निपटने को मुस्तैद है। गत वर्ष जैसी आपदा आई तो बचाव के लिए संसाधनों की कमी बरकरार है। वर्तमान हालातों पर सत्तारूढ़ भाजपा के जिलाध्यक्ष भुवन हबरेला का कहना है कि केंद्र सरकार से मिली उपेक्षा के कारण ऐसे हालात हैं। उन्होंने कायरे में ढिलाई बरतने वाले अधिकारियों पर राज्य सरकार का कड़ा रुख होने की बात भी कही। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का कहना है कि राज्य सरकार जब पहले मिली धनराशि ही खर्च नहीं कर पाई है तो वह किस आधार पर केंद्र से धन न मिलने का रोना रो सकती है।

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