गुरुवार, 19 मई 2011

महंगाई नैनीताल की मोमबत्तियां बुझाने पर उतारू

पेट्रोल के मुकाबले दोगुनी वृद्धि हो रही कच्ची मोम के दामों में
नैनीताल की पहचान हैं मोमबत्तियां, तीन वर्षों में डेढ़ गुने हो गये दाम, 30 फीसद घटी बिक्री
नवीन जोशी, नैनीताल। आगरा का पेठा, हापुण के पापड़, बरेली का सुरमा व अल्मोड़ा की बाल मिठाई की तरह ही नैनीताल की मोमबत्तियां भी देश—दुनिया में अपनी पहचान रखती हैं। केंद्र की यूपीए सरकार के दूसरे बीते तीन वर्षों के कार्यकाल में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में जो रिकार्ड वृद्धि हुई है, नैनीताल का मोमबत्ती उद्योग इसकी सर्वाधिक व सीधी मार झेल रहा है। इस दौरान कच्चे मोम के दामों में पेट्रोल के मुकाबले दोगुनी वृद्धि हुई है। इसके प्रभाव में मोम के दाम डेढ़ गुने तक हो गये हैं, लिहाजा बिक्री 30 फीसद तक घट गई है। हालात ऐसे ही रहने पर आने वाले वर्ष इस उद्योग को पूरी तरह खत्म कर सकते हैं।
नैनीताल में किसी दुकान पर रसीले फलों को देखकर आपके मुंह में पानी आ जाए, और पड़ताल करने पर पता चले कि वह फल नहीं सजावटी मोमबत्तियां हैं तो आश्चर्य न करें। दरअसल, नैनीताल की मोमबत्तियां होती ही इतनी सुंदर हैं कि आप नैनीताल आएं  और मोमबत्तियां लिये बिना लौट जाएं , ऐसा संभव नहीं है। लेकिन बीते तीन दशकों में पहले इस उद्योग में चीन का बर्चस्व शुरु हुआ, और अब यह देश में बढ़ी पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि की लगातार व जबर्दस्त मार झेलते हुऐ दम तोडऩे की राह पर है। गौरतलब है कि मोमबत्तियां पैराफीन वैक्स की बनी होती हैं, जो एक पेट्रोलियम उत्पाद है। उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि तीन वर्ष पूर्व कच्चा मोम 9 से 10 रुपये किग्रा के भाव मिलता था, जो अब 14 से 15 के भाव हो गया है, यानी इस दौरान पेट्रोल के दामों में जो 23 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हुई, उसके प्रभाव में मोम करीब दोगुनी महंगी हो गई। नगर में सजावटी मोमबत्तियों का कारोबार करीब पांच करोड़ रुपये का है, और करीब चार हजार लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं, जिनमें 6 फीसद महिलाएं  हैं। वर्तमान हालातों की बात करें तो 7 के दशक में अनिल ब्रांड की मोमबत्तियों से इस उद्योग की शुरुआत करने वाली सीए एंड कंपनी सहित दर्जनों इकाइयां बंद हो चुकी हैं। अब केवल एक दर्जन ही उत्पादक बचे हैं। नगर की फोर सीजन केंडल शोप के स्वामी इस्लाम सिद्दीकी की मानें तो बढ़ती महंगाई के प्रतिफल में सजावटी मोमबत्तियों की बिक्री करीब 30 फीसद कम हो गई है। वह इसके लिये साफ तौर पर केंद्र की यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल की नीतियों को जिम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि सरकार को दम तोड़ रहे नगर व प्रदेश की पहचान से जुड़े इस उद्योग को बचाने के प्रयास करने चाहिए।
ग्लोबलवार्मिंग के कारण भी घट रही बिक्री
नैनीताल। सुनने में यह बात अटपटी लग सकती है, परंतु मोमबत्ती उद्योग से जुड़े लोग बढ़ती गर्मी को भी मोमबत्तियों की घटती बिक्री से जोड़कर देख रहे हैं। कैंडिल विक्रेता इस्लाम सिद्दीकी के अनुसार यह मोमबत्तियां अधिकतम 48 डिग्री सेल्सियस का तापमान सह सकती हैं, किंतु मैदानों में पारे के 5 डिग्री तक पहुंचने पर गलने की संभावना से भी लोग मोमबत्तियां कम खरीद रहे हैं।

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