बुधवार, 12 जनवरी 2011

काकड़ीघाट (नैनीताल) में मिला था नरेद्र को राजर्षि विवेकानंद बनाने का आत्मज्ञान

यहाँ हुए थे  ‘नरेंद्र’ को अणु में ब्रह्मांड के दर्शन

उत्तराखंड में भी सिमटी हैं स्वामी विवेकानंद की यादें

नवीन जोशी, नैनीताल। भारत को दुनिया में आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रस्तुत करने वाले व युवाओं को सृष्टि के कल्याण के लिए 'जागो, उठो और कर्म करो' का मूल मंत्र देने वाले युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद को आध्यात्मिक ज्ञान नैनीताल जनपद के काकड़ीघाट में प्राप्त हुआ था। विवेकानंद की देवभूमि यात्रा यहीं से प्रारंभ हुई थी। यहां स्वामी जी के अवचेतन शरीर में सिहरन हुई। वह पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गए। बाद में उन्होंने इसका जिक्र करते हुए कहा था कि उनको काकड़ीघाट में पूरे ब्रह्माण्ड के एक अणु में दर्शन हुए। यही वह ज्ञान था जिसे उन्होंने 11 सितंबर 1893 को शिकागो में पूरी दुनिया के समक्ष रखकर देश का मान बढ़ाया। स्वामी विवेकानंद और देवभूमि का गहरा संबंध रहा है। वह तीन बार देवभूमि आए। 
उनकी पहली आध्यात्मिक यात्रा 1890 में साधु नरेंद्र के रूप में गुरु भाई अखंडानंद के साथ जनपद के काकड़ीघाट से प्रारंभ हुई। वह पहले नैनीताल आये थे, और यहाँ तत्कालीन खेत्री के महाराज के आतिथ्य में रहे थे। कुछ दिन नैनीताल में बिताने के बाद वह पैदल ही काकड़ीघाट पहुंचे, जहाँ उन्होंने कोसी नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे लम्बी तपस्या की, फलस्वरूप उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ कि समूचा ब्रह्माण्ड एक अणु में समाया है। इसी अद्वैत दर्शन के आधार पर उन्होंने  लोगों को बताया कि सूक्ष्म ब्रह्मांड व वृहद ब्रह्मांड ठीक उसी प्रकार एक ही पटल पर स्थित हैं जैसे आत्मा शरीर के अंदर निवास करती है। 
वह अल्मोड़ा की ओर बढ़े। अल्मोड़ा से पूर्व वर्तमान मुस्लिम कब्रिस्तान करबला के पास चढ़ाई चढ़ने और भूख-प्यास के कारण उन्हें मूर्छा आ गई। वहां एक मुस्लिम फकीर ने उन्हें ककड़ी (पहाड़ी खीरा) खिलाकर ठीक किया। उन्होंने कसार देवी के समीप स्थित एक गुफा में भी कुछ समय तक साधना की। इसका जिक्र स्वामी जी ने 1898 में दूसरी बार अल्मोड़ा आने पर किया। अल्मोड़ा में वह लाला बद्री शाह के आतिथ्य में रहे। यह स्वामी विवेकानंद का नया अवतार था। इस मौके पर हिंदी के छायावादी सुकुमार कवि सुमित्रानंदन ने कविता लिखी थी- 
‘मां अल्मोड़े में आए थे जब राजर्षि  विवेकानंद, तब मग में मखमल बिछवाया था, दीपावली थी अति उमंग’
स्वामी जी अल्मोड़ा से आगे चंपावत जिले के मायावती अद्वैत आश्रम भी गए, और तपस्या कर आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया।  उनके अनुयायी कैप्टन जेम्स हेनरी सीवर व सार लौट एलिजाबेथ सीवर ने वर्तमान में मायावती स्थित इस आश्रम की स्थापना की थी। वहां आज भी उनका प्रचुर साहित्य संग्रहित है। अल्मोड़ा में स्वामी जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम से मठ और कुटी आज भी मौजूद है। काकड़ीघाट में भी स्वामी जी के आगमन की यादें और वह "बोधि वृक्ष" पीपल का पेड़ आज भी मौजूद हैं।

2011 में होगा युग परिवर्तन
नैनीताल। स्वामी जी ने भविष्यवाणी की थी कि उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के जन्म (1836) के साथ ही युग परिवर्तन का दौर शुरू हो गया है। देश धन, बल और विज्ञान आदि से इतर आध्यात्मिक शक्ति से वि गुरु के पद को प्राप्त करेगा। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर के निदेशक प्रो. एनएस राणा बताते हैं कि महर्षि अरविंद ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा था कि युग परिवर्तन का संधि काल 175 वर्ष का होता है। यह 1836 के बाद 175 वर्ष अर्थात 2011 में होगा। यानी स्वामी जी की भविष्यवाणी के हिसाब से यह वर्ष वि में आध्यात्मिक तरीके से युग परिवर्तन का वर्ष साबित हो सकता है।


विवेकानंद सर्किट बनाएं
नैनीताल। स्वामी विवेकानंद के देवभूमि में कुमाऊं प्रवास स्थलों को जोड़कर पर्यटन सर्किट बनाने की मांग सालों से की जा रही है। इस पर अमल नहीं हो सका है। इस सर्किट में नैनीताल से काकड़ीघाट, करबला, अल्मोड़ा और चंपावत के मायावती आश्रम को जोड़े जाने की मांग की जा रही है।


'यह युग परिवर्तन की भविष्यवाणी के सच होने का समय तो नहीं ?'  भी पढ़ें:  http://newideass.blogspot.com/2010/12/blog-post.हटमल

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